‘भारत और नेपाल के बीच रिश्ते’ ‘पुन: मजबूती की ओर’

punjabkesari.in Tuesday, Dec 22, 2020 - 02:55 AM (IST)

हिमालय की गोद में बसे भारत के पड़ोसी देश नेपाल में 2015 में नया संविधान लागू होने तथा पहली बार 2017 में हुए चुनावों के बाद प्रधानमंत्री बने ‘के.पी. शर्मा ओली’ की सरकार तीन वर्ष में ही राजनीतिक अंतर्विरोधों के कारण धराशायी हो गई है। एकाएक 20 दिसम्बर की सुबह ‘के.पी. शर्मा ओली’ ने अपने मंत्रिमंडल की आपात बैठक बुलाकर संसद भंग करने की सिफारिश कर दी। इसके कुछ घंटे बाद ही राष्ट्रपति ‘विद्या देवी भंडारी’ ने उनकी सिफारिश स्वीकार कर संसद भंग करके अगले साल 30 अप्रैल और 10 मई को 2 चरणों में देश में चुनाव करवाने की घोषणा कर दी। 

‘ओली’ के इस कदम को असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और जनादेश के खिलाफ बताते हुए इसके विरुद्ध रोष स्वरूप सत्ताधारी ‘नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी’ (एन.सी.पी.) के नेताओं ‘पुष्प कमल दहल प्रचंड’ व ‘माधव नेपाल’ के धड़े सहित तमाम विपक्षी दलों ने सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की घोषणा कर दी। ‘के.पी. शर्मा ओली’ की सिफारिश के विरोध में कुछ संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के गठन की संभावना मौजूद रहने तक संसद भंग करने का नेपाल के संविधान में कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में ‘शेर बहादुर देउबा’ के नेतृत्व वाली ‘नेपाल कांग्रेस’ (एन.सी.) वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में अधिक प्रासंगिक हो सकती है। 

‘पुष्प कमल दहल प्रचंड’ ने ‘ओली’ पर भ्रष्टाचार के अनेक आरोप भी लगाए हैं। उन पर 50 करोड़ रुपए की सड़क निर्माण की अमरीकी योजना में भी पैसे खाने का आरोप लग चुका है। यह भी चर्चा है कि चीनी शासकों ने जेनेवा में ‘ओली’ के बैंक अकाऊंट में भारी-भरकम रकम जमा करवाई है। ‘ओली’ व ‘प्रचंड’ के धड़ों की लड़ाई में भी काठमांडू स्थित चीन की राजदूत ‘हाऊ यानकी’ ने ‘प्रचंड’ और ‘ओली’ के बीच कई बार सुलह-सफाई करवाने की कोशिश की है और उन्हीं के दबाव में आकर ‘ओली’ ने विभिन्न संस्थाओं के सदस्यों व अध्यक्षों की नियुक्ति का अधिकार देने वाला अध्यादेश वापस ले लिया क्योंकि ‘प्रचंड’ का धड़ा इसके विरोध में था। जहां तक भारत का सम्बन्ध है तो प्रधानमंत्री ‘ओली’ को हमारा देश उनके द्वारा बिगाड़े गए रिश्तों के लिए कोसेगा क्योंकि अपने शासनकाल में चीन के इशारे पर ‘ओली’ ने जम कर भारत विरोधी बयानबाजी और कार्य किए। 

* 08 मई, 2020 को प्रधानमंत्री ‘के.पी. शर्मा ओली’ ने भारत द्वारा लिपुलेख दर्रे तक सड़क बिछाने के विरुद्ध रोष व्यक्त किया। 
* 19 मई को चीन के इशारे और ‘के.पी. शर्मा ओली’ के आदेश पर नेपाल सरकार ने देश के अपने नए नक्शे में भारत के 3 इलाकों ‘लिपुलेख’, ‘कालापानी’ व ‘लिपियाधुरा’ को नेपाली क्षेत्र में दिखा दिया। 
* 19 मई को ही नेपाल के प्रधानमंत्री ‘के.पी. शर्मा ओली’ ने नेपाल में कोरोना के प्रसार के लिए भारत को दोषी ठहराया। 
* 19 मई को ‘ओली’ ने नेपाल की संसद में भारत के राजचिन्ह में अंकित  नीति वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ पर भी तंज कसते हुए ‘सिंहमेव जयते’ कहा। ‘ओली’ का कहना था कि सत्य की जीत होती है और जोर-जबरदस्ती के साथ सिंह की तरह जीत हासिल नहीं की जानी चाहिए। 

* 20 मई को ‘ओली’ ने भारत पर टिप्पणी करते हुए दोबारा कहा कि भारतीय वायरस चीन और इटली के मुकाबले अधिक खतरनाक है।
* 08 जून को ‘ओली’ ने चीन की ‘वन चाइना पालिसी’ का समर्थन करके फिर अपने भारत विरोधी रवैये का संकेत दिया जबकि समूचा विश्व हांगकांग की स्वायत्तता के मुद्दे पर चीन की नीतियों का विरोध कर रहा था। 
* 13 जून को भारत के साथ एक नया विवाद खड़ा करते हुए ‘ओली’ ने उत्तराखंड स्थित लिपुलेख और कालापानी के इलाकों को नेपाल के नक्शे में दिखाने को संसद से मंजूरी दिलाई। 
* 29 जून को ‘ओली’ ने भारत के विरुद्ध बयानबाजी करते हुए कहा कि भारत उनकी सरकार को अस्थिर करना चाहता है और नेपाल में स्थित दूतावास इस साजिश में शामिल है। 
* 14 जुलाई को ‘ओली’ ने कहा कि असली अयोध्या नेपाल में है। इससे भारत में लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं और ‘ओली’ के इस बयान पर राजनीतिक और धार्मिक संगठनों ने नाराजगी भी जताई। 

भारत और नेपाल का रोटी-बेटी का रिश्ता है परंतु प्रधानमंत्री ‘ओली’ ने सदियों पुराने इस रिश्ते में दरार डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिसके विरुद्ध नेपाल में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी तथा ‘ओली’ के विरुद्ध आम जनता तथा विरोधी दल सड़कों पर उतर आए हैं तथा उनके प्रदर्शन दिन-ब-दिन उग्र होते जा रहे हैं और स्थिति पर नियंत्रण के लिए काठमांडू में अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात करने पड़ गए हैं। आज नेपाल में जिस तरह का माहौल है उसे देख कर लगता है कि आने वाले चुनाव में ऐसी सरकार आएगी जो ‘ओली’ द्वारा भारत के साथ खराब किए गए रिश्तों को सुधारने की दिशा में काम करेगी और नेपाल के साथ भारत के पहले जैसे सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बहाल होंगे।—विजय कुमार 


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