‘प्याज फिर रुला रहा है’ थम नहीं रहीं आकाश छूती कीमतें

punjabkesari.in Friday, Nov 08, 2019 - 12:25 AM (IST)

1981 में अच्छी-भली चल रही केंद्र की जनता सरकार के गिरने में प्याज की बढ़ी कीमतें भी एक मुख्य कारण थीं और 1977 में बुरी तरह हार कर सत्ताच्युत हुई इंदिरा गांधी को सत्ता में लौटने का अवसर मिल गया था तथा इसे लोगों ने ‘अनियन इलैक्शन’ का नाम दिया था।

लेकिन इंदिरा गांधी की सरकार को भी प्याज ने रुलाया और नवम्बर, 1981 में इसके 6 रुपए किलो हो जाने के विरुद्ध रोष व्यक्त करने के लिए लोकदल के रामेश्वर सिंह राज्यसभा में प्याजों की माला पहन कर ही चले आए। प्याज की कीमतों में भारी वृद्धि के कारण ही 1998 में दिल्ली के चुनावों में भाजपा हार गई थी। इसी प्रकार 2013 में पुन: प्याज की आकाश छूती कीमतों ने शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार को संकट में डाल दिया तथा 2014 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस हार गई।

इस वर्ष भी प्याज उत्पादक राज्यों में बेमौसमी वर्षा के कारण इसकी पैदावार को क्षति पहुंचने के चलते इसके भाव आकाश छूने लगे हैं और यह न सिर्फ ‘दुर्लभ वस्तुओं’ की श्रेणी में आ गया है बल्कि बड़ी संख्या में लोगों ने प्याज खाना छोड़ भी दिया है और गरीबों की थाली से प्याज गायब होता जा रहा है।

नवीनतम समाचारों के अनुसार देश के विभिन्न भागों में प्याज 60 रुपए प्रति किलो से भी ऊपर, पंजाब में 70 रुपए और दिल्ली में 100 रुपए किलो के आसपास बिक रहा है।  व्यापारिक सूत्रों के अनुसार दिल्ली तथा आसपास के इलाकों में प्याज के भाव एक सप्ताह में 45 प्रतिशत बढ़े हैं।

जहां सरकार प्याज का दूसरे देशों को निर्यात बंद करके अफगानिस्तान, मिस्र, तुर्की और ईरान आदि से आयात करने का प्रयास कर रही है वहीं केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान ने इसके दामों में गिरावट बारे पूछे एक प्रश्र के उत्तर में यह कह कर चौंका दिया कि वह कोई ज्योतिषी नहीं हैं जो इसका उत्तर दे सकें।

किसी समय प्याज गरीबों के रोटी खाने का एक अच्छा साधन था और लोग प्याज, नमक व हरी मिर्च के साथ मजे से रोटी खा लेते थे लेकिन अब तो गरीबों की रोटी का यह सहारा भी उनसे छिनता जा रहा है। इस कारण लोगों में सरकार के विरुद्ध रोष भी पनप रहा है। अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं की महंगाई से तो जनता पहले ही दुखी थी अब प्याज की कीमतों ने रही-सही कसर पूरी कर दी है।    —विजय कुमार 


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