‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ ही नहीं ‘बेटी को बसाओ’ भी

punjabkesari.in Sunday, Aug 20, 2017 - 01:00 AM (IST)

केंद्रीय बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालयों की संयुक्त पहल के रूप में केंद्र सरकार ने बालिकाओं के संरक्षण और उनके सशक्तिकरण के लिए 22 जनवरी, 2015 को ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना आरंभ की थी।

इस योजना में कम ङ्क्षलगानुपात वाले सभी राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों से 100 जिलों का चयन पायलट जिलों के रूप में किया गया है। इसका उद्देश्य पक्षपाती लिंग चुनाव प्रक्रिया की समाप्ति व ब"िायों के अस्तित्व एवं सुरक्षा तथा शिक्षा को सुनिश्चित करना तथा इसे प्रोत्साहन देना है।

आज भारत में महिलाओं ने सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में भारी तरक्की की है। चंदा कोचर, अरुंधति राय और शिखा शर्मा (बैंकिंग), एकता कपूर, अश्विनी यार्डी, चिक्की सरकार (मीडिया), संगीता पेंडूरकर, स्वाति पीरामल (स्वास्थ्य और चिकित्सा), ज्योत्सना सूरी, प्रिया पॉल (होटल) आदि महिलाओं ने सफलता के झंडे गाड़े हैं परंतु इसके बावजूद आज महिलाओं का वैवाहिक जीवन संकट में घिरता जा रहा है।

इसी कारण सामान्य जीवन में भारत में ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ के नारे को आगे बढ़ाने में कुछ कठिनाइयां आ रही हैं। महिलाओं के विवाह टूट रहे हैं तथा बड़ी संख्या में अदालतों में विवाह-विवाद लंबित हैं। विभिन्न कारणों से पतियों से अलग रह रही या उनके साथ कानूनी लड़ाई में उलझी महिलाओं को हम तीन श्रेेणियों में बांट सकते हैं :

1. वे महिलाएं जिनके बच्चे नहीं है और न ही उन्होंने कंसीव किया है। 
2. जिनका एक बच्च है और 
3. वे महिलाएं भी जिनके 2 या उससे अधिक बच्चे हैं। 
अधिकांश महिलाओं की ओर से सामान्यत: ससुराल वालों पर मारपीट के आरोप लगाए जाते हैं। शुरू-शुरू में तो पुलिस वर पक्ष के सारे परिवार को ही पकड़ लेती थी। अब वह समूचे परिवार को नहीं पकड़ती परंतु तलाक की प्रक्रिया आसान न होने और झगड़े लम्बे ङ्क्षखचते जाने के कारण अदालतें ऐसे मामलों से भरी पड़ी हैं।

अमृतसर की अदालतों में ऐसे मामलों की संख्या लगभग 1200, पटियाला में 918, जालंधर में लगभग 1500 और लुधियाना में गुजारा भत्ता, घरेलू ङ्क्षहसा और तलाक आदि के 7766 के लगभग मुकद्दमे लंबित हैं।

इसके कुछ कारण तो निम्र हैं परंतु अन्य कारण भी हो सकते हैं :
1. टी.वी. : अधिकांश सीरियलों में बहू या सास में से किसी एक को पीड़ित व दूसरे पक्ष को साजिशकत्र्ता के रूप में ही दिखाया जा रहा है। सास-बहू के रिश्तों में कटुता पैदा करने में ये सीरियल भी भूमिका निभा रहे हैं।

2. मोबाइल : विशेषकर नवविवाहित जोड़ों के गृहस्थ जीवन में समस्याएं खड़ी करने में इनका बहुत बड़ा योगदान है। जरा-जरा सी बात पर बेटियां अपनी माताओं को फोन लगाकर अपने पति या अपने ससुराल वालों  की शिकायतों का पिटारा खोलती रहती हैं।

3. मां : आज परिवार छोटे हो रहे हैं। आमतौर पर परिवार में एक  लड़का या लड़की ही होने के कारण बच्चे मां-बाप के लाडले होते जा रहे हैं जब बेटी अपनी मां से अपने ससुराल पक्ष की छोटी-छोटी बातों की शिकायत करती है तो मां भी अपनी बेटी को ससुराल पक्ष को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए उकसाती है जिससे बात बढ़ जाती है।

4. विवाह उसी शहर में : पुराने जमाने में बेटियों की शादियां कुछ दूरी पर होती थीं। माना जाता था कि ससुराल व मायके में इतनी दूरी तो अवश्य हो कि बीच में एक नदी हो ताकि ससुराल से मायके में आना-जाना आसान न रहे। बेटी को भी विदाई पर यही सीख दी जाती थी कि इस घर से तेरी डोली जा रही है अब तेरी अर्थी उसी घर से उठे।

परंतु आज एक ही शहर में और कम दूरी पर ससुराल व मायका होने पर जब बेटी अपनी मां से ससुराल पक्ष की शिकायत करती है तो मां भी उसे सब छोड़ कर आ जाने को कह देती है और बेटी भी मायका निकट होने के कारण देर नहीं लगाती।

5. बौद्धिक असमानता : सामान्यत: माता-पिता बेटी के लिए ऐसा परिवार ढूंढते हैं जहां एक ही लड़का हो ताकि बेटी को कोई रोक-टोक न रहे। इसी चक्कर में लड़की के माता-पिता लड़के की शिक्षा और बौद्धिक एवं आॢथक स्तर के अंतर पर भी ध्यान नहीं देते। चाहे लड़का कम पढ़ा-लिखा ही क्यों न हो, उसके पिता की अ‘छी-खासी जायदाद होनी चाहिए।

उक्त तथ्यों के प्रकाश में इतना ही कहना काफी है कि जितना जरूरी ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा है उतना ही ‘बेटी को बसाना’ भी जरूरी है और यह लक्ष्य उपरोक्त बातों पर ध्यान देकर ही पाया जा सकता है। वैवाहिक संबंधों में कटुता के कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं जो समाज को तलाशने चाहिएं क्योंकि लड़की के न बसने से ससुराल और मायका दोनों ही पक्ष संकट में पड़ जाते हैं।    —विजय कुमार 


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