बुजुर्गों को अकेला छोडऩा समय से पूर्व मौत के मुंह में धकेलना

punjabkesari.in Friday, Feb 10, 2017 - 11:51 PM (IST)

प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं पर आज जमाना बदल गया है। बुढ़ापे में जब बुजुर्गों को बच्चों के सहारे की सर्वाधिक जरूरत होती है, अपनी गृहस्थी बन जाने के बाद अधिकांश संतानें बुजुर्गों से उनकी जमीन-जायदाद अपने नाम लिखवाकर अपने माता-पिता की ओर से आंखें फेर कर उन्हें अकेला छोड़ देती हैं।

अक्सर ऐसे बुजुर्ग मेरे पास अपनी पीड़ा व्यक्त करने आते रहते हैं जिनकी दुख भरी कहानियां सुन कर मन रो उठता है।कुछ समय पूर्व दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा करवाए गए एक सर्वे के अनुसार दिल्ली के 50 प्रतिशत वरिष्ठï नागरिक अपनी संतानों द्वारा अनादर के शिकार हैं तथा 92.4 प्रतिशत वरिष्ठï नागरिक चाहते हैं कि बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा व अनादर करने वाले बच्चों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था होनी चाहिए।

अमरीका में मैसाचुसेट्स इंस्टीच्यूट आफ टैक्नालोजी के वैज्ञानिकों ने कहा है कि ‘‘वृद्धावस्था में अकेलापन बुजुर्गों की समय से पूर्व मौत का मुख्य कारण है। एक निश्चित आयु के बाद भावात्मक और शारीरिक रूप से अकेलापन हर व्यक्ति के लिए विनाशकारी साबित होता है और वृद्धों के मामले में तो यह बहुत बड़ी समस्या बन गया है।’’

इस रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई है कि, ‘‘अकेलेपन के परिणामस्वरूप व्यक्ति मानसिक तथा शारीरिक रूप से अस्वस्थ होता चला जाता है अत: चिकित्सीय एवं नैतिक दोनों ही पहलुओं से बुजुर्गों को अकेलेपन और उपेक्षा के शिकार नहीं होने देना चाहिए।’’

इन वैज्ञानिकों के अनुसार,‘‘दिमाग के भीतर स्थित एक ‘लोनलीनैस सैंटर’ व्यक्ति में अवसाद का मुख्य कारण है। शरीर में तनाव का स्तर बढ़ जाने से उनकी गतिशीलता और रोजाना के काम करने की क्षमता तेजी से घटती जाती है जो अंतत: जानलेवा साबित होती है।’’

संतानों द्वारा अपने बुजुर्गों की उपेक्षा को रोकने और उनके ‘जीवन की संध्या’ को सुखमय बनाना सुनिश्चित करने के लिए सबसे पहले हिमाचल सरकार ने 2002 में ‘वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून’ बनाया था।इसके अंतर्गत पीड़ित माता-पिता को संबंधित जिला मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत करने का अधिकार दिया गया व दोषी पाए जाने पर संतान को माता-पिता की सम्पत्ति से वंचित करने, सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियां न देने तथा उनके वेतन से समुचित राशि काट कर माता-पिता को देने का प्रावधान है।

कुछ अन्य राज्य सरकारों ने भी ऐसे कानून बनाए हैं। संसद द्वारा पारित ‘अभिभावक और वरिष्ठï नागरिक देखभाल व कल्याण विधेयक-2007’ के द्वारा भी बुजुर्गों की देखभाल न करने पर 3 मास तक कैद का प्रावधान किया गया है तथा इसके विरुद्ध अपील की अनुमति भी नहीं है। इसी कड़ी में अब असम सरकार ने अपने बुजुर्गों की उपेक्षा करने तथा उनकी देखभाल का दायित्व पूरा नहीं करने वाले सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध एक बड़ा कदम उठाते हुए आगामी वित्तीय वर्ष 2017-18 से उनके वेतन में कटौती करने का एक प्रस्ताव लाने का फैसला किया है।

वित्त मंत्री हिमंता विश्वा शर्मा ने सरकारी कर्मचारियों को अपने बुजुर्गों का ध्यान रखने की नसीहत देते हुए कहा कि ऐसा नहीं करने पर सरकार उन्हें दंडित करने के अलावा उनके वेतन का एक हिस्सा काट कर उपेक्षित बुजुर्ग माता-पिता को देगी ताकि वे अपनी जरूरतें पूरी कर सकें। बुजुर्गों की देखभाल की दिशा में असम सरकार द्वारा उठाया गया यह पग सराहनीय है परंतु अभी भी अनेक ऐसे राज्य हैं जहां ऐसा कोई कानून नहीं है। अत: उन राज्यों में भी ऐसा कानून लागू करना आवश्यक है।

इसके साथ ही जिन राज्यों में ऐसे कानून लागू हैं उनका व्यापक प्रचार करने और उन पर कठोरतापूर्वक क्रियान्वयन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है ताकि बुजुर्गों को अपने अधिकारों का पता चले और उन्हें जीवन की संध्या में अपनी ही संतानों की उपेक्षा का शिकार होकर अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए तरसना न पड़े।     —विजय कुमार 


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