पाकिस्तान-चीन की परमाणु सांठ-गांठ कहीं भारत के लिए खतरे की घंटी तो नहीं
punjabkesari.in Monday, Jun 26, 2023 - 11:15 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमरीका यात्रा से एक दिन पहले 20 जून को नकदी संकट से जूझ रही पाकिस्तान सरकार ने पंजाब के मियांवाली जिले के चश्मा नामक स्थान पर 4.8 अरब डॉलर की लागत से 1,200 मैगावाट क्षमता के एक न्यूक्लियर पॉवर प्लांट की स्थापना के लिए चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
चीन ने यह करार दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करने के संकेत के तौर पर किया है। इस मौके पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी मौजूद थे जिन्होंने अपने संबोधन में इस समझौते को दोनों में बढ़ते आर्थिक सहयोग का प्रतीक करार दिया। शरीफ ने कहा कि चीनी कंपनियों ने विशेष रियायत दी है।
पाकिस्तान और चीन के बीच उक्त समझौते के बीच पाकिस्तान अपने परमाणु सिद्धांत और नीति में बड़ा बदलाव करता नजर आ रहा है क्योंकि गत 24 मई को पाकिस्तान के ‘स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिवीजन’ (एस.पी.डी.), जिसका काम परमाणु नीति के अलावा रणनीति बनाना और देश के परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा करना है, के पूर्व निदेशक रिटायर्ड लैफ्टिनैंट जनरल खालिद किदवई ने पाकिस्तान की परमाणु नीति में बड़े बदलाव की ओर इशारा किया था।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को धरती, आकाश और समुद्र में अपनी परमाणु क्षमता बढ़ाने की जरूरत है ताकि वह भारत को किसी भी तरीके से रोक सके। उसका पूरा भाषण भारतीय सेना की परमाणु योजनाओं का मुकाबला करने के लिए की जाने वाली तैयारी पर ही केंद्रित था।
किदवई ने पाकिस्तान के परमाणु नीति में बड़े बदलाव की जरूरत का इशारा करते हुए कहा कि उसे जीरो मीटर से 2750 किलोमीटर तक मार करने वाले परमाणु हथियारों की जरूरत है जिनका दायरा सिर्फ रणनीतिक ही नहीं बल्कि आप्रेशनल तौर पर भी बढ़ाने की जरूरत है।
किदवई के बयान का अर्थ यह है कि अमरीका की तरह पाकिस्तान भी जीरो मीटर रेंज के आर्टिलरी सैल बनाने की योजना बना रहा है। ऐसे ही सैल सोवियत संघ व यू.के. ने शीत युद्ध के दौर में बनाए थे। अमरीका ने 1950 में एम. 28 व एम. 29 नामक डैविक्रोकेट स्टाइल राइफल सिस्टम विकसित किए थे, जिन्हें उसका सबसे छोटा परमाणु हथियार कहा जाता है।
इन्हें युद्ध के दौरान फ्रंटलाइन हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा एक संभावना यह भी है कि भारत के साथ लगती सीमा के आसपास पाकिस्तान परमाणु लैंड माइन्स बिछाने की योजना बना रहा हो।
सैमीनार में किदवई द्वारा कही गई बातें इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वह पाकिस्तान में परमाणु हथियारों के विकास और शोध के अलावा परमाणु नीति पर नियंत्रण रखने वाली नैशनल कमांड अथारिटी (एन.सी.ए.) के भी सलाहकार हैं।
पाकिस्तान और चीन में न्यूक्लियर पॉवर प्लांट लगाने के समझौते तथा इससे पहले किदवई के बयान की पृष्ठïभूमि में भारत के रक्षा विशेषज्ञ अचंभित हैं और उन्हें लग रहा है कि क्या किदवई ने यह बयान किसी वैज्ञानिक शोध के आधार पर दिया है अथवा पाकिस्तान अपने परमाणु सिद्धांत में बदलाव के लिए किसी तरह का प्रयोग कर रहा है और कहीं यह समझौता बाद में दोनों देशों के बीच परमाणु हथियार बढ़ाने की बुनियाद तो नहीं रखेगा?
चूंकि किदवई ने अपने बयान में यह नहीं बताया कि इस रेंज के परमाणु हथियारों को कैसे विकसित किया जाएगा या परमाणु नीति में कोई बदलाव होगा अथवा नहीं, जब तक स्थिति साफ नहीं हो जाती तब तक इस मामले में किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा जा सकता।
पाकिस्तान की परमाणु नीति शुरू से ही अस्पष्ट रही है और पाकिस्तान द्वारा अब तक विकसित किए गए अधिकतर परमाणु हथियारों का लक्ष्य भारत ही रहा है। पाकिस्तान के पास 60 कि.मी. की रेंज तक मार करने वाली हत्फ-9 बैलिस्टिक मिसाइल भी भारत को लक्ष्य करके ही बनाई गई है।
पाकिस्तान के पास सबसे ज्यादा दूरी पर मार करने वाली परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल शाहीन-3 है और यह 2750 कि.मी. की दूरी तक मार कर सकती है। 2015 में इसका परीक्षण किया गया था और इसका लक्ष्य भी अंडेमान-निकोबार तक ही है। इसका मतलब है कि पाकिस्तान के पूरे के पूरे न्यूक्लियर प्रोग्राम का लक्ष्य सिर्फ भारत ही लगता है।
चीन का भारत की सीमा के साथ लगते पाकिस्तानी पंजाब में परमाणु बिजली संयंत्र लगाना व किदवई का पाकिस्तान की परमाणु नीति में बदलाव के संकेत देना भारत के लिए खतरे की घंटी है। चूंकि पाकिस्तान की परमाणु नीति पहले से ही भारत को लक्ष्य में रखकर बनाई गई है, ऐसे में पाकिस्तानी पंजाब में परमाणु संयंत्र में ही चीन का भारी निवेश सुरक्षा के लिहाज से भारत के लिए निश्चित रूप से चिंता का विषय है।