भारतीय विश्वविद्यालय बनते जा रहे हैं ‘लड़ाई के अड्डे’

punjabkesari.in Wednesday, Apr 27, 2016 - 12:37 AM (IST)

छात्रशक्ति को संगठित करने का प्रथम प्रयास 1840-1860 में‘मध्य बंगाल मूवमैंट’ के रूप में किया गया। इसके बाद 1920 में नागपुर में ‘आल इंडिया कालेज स्टूडैंट्स कांफ्रैंस’ हुई जिसका उद्घाटन ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय ने किया था। कराची में 26 मार्च 1931 को पं. जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में एक अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन आयोजित किया गया था तथा इस छात्र-शक्ति का देश की आजादी के संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान रहा।

देश की स्वतंत्रता के बाद राजनीति को प्रभावित करने वाले कुछ बड़े आंदोलनों में छात्र संघों व छात्र शक्ति की बड़ी भूमिका रही। इनमें 1969 में तेलंगाना को अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन, 1975 में इन्दिरा गांधी द्वारा लगाए आपातकाल के विरुद्ध, 1981 में असम आंदोलन तथा बोफोर्स घोटाले के बाद वी.पी. सिंह के भ्रष्टïाचार विरोधी आंदोलन तथा मंडल कमीशन के विरुद्ध आरक्षण आंदोलन शामिल हैं।

पर पिछले कुछ समय से लगने लगा है कि हमारे विश्वविद्यालय राष्टï्रहित की बजाय विभिन्न गुटों की आपसी प्रतिद्वंद्विता और खून-खराबे के रुझान के चलते ‘पढ़ाई’ का कम और ‘लड़ाई’ का ज्यादा माध्यम बनते जा रहे हैं :

09 फरवरी को दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जे.एन.यू.) में आतंकवादी अफजल गुरु की बरसी मनाई गई और उसमें भारत विरोधी नारे लगाए गए। इस मामले में छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को जुर्माना तथा कुछ अन्य को जुर्माना व कुछ अवधि के लिए विश्वविद्यालय से निष्कासन की सजा दी गई है। 

16 फरवरी को बंगाल के जादवपुर विश्वविद्यालय में छात्रों के एक वर्ग ने जे.एन.यू. के आंदोलनकारी छात्रों, अफजल गुरु व गिलानी के समर्थन में नारे लगाए जिस पर प्रतिद्वंद्वी छात्र गुटों में भारी मारपीट हुई। 

19 मार्च को अलीगढ़ मुस्लिम वि.वि. में टी-20 मैच में पाकिस्तान पर भारत की विजय के बाद छात्रों के दो धड़ों में भिड़ंत हो गई। 22 मार्च को हैदराबाद विश्वविद्यालय में कुलपति पी.अप्पाराव के विरुद्ध छात्रों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया, उनके दफ्तर में तोड़-फोड़ की, उन्हें 6 घंटे तक बंधक बनाए रखा और पुलिस पर पथराव किया। 

छात्र रोहित वेमुला नामक दलित रिसर्च स्कॉलर द्वारा जनवरी में आत्महत्या तथा 5 दलित छात्रों के निलंबन के लिए अप्पाराव, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी, केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री बंंडारू दत्तात्रेय तथा अन्यों  को दोषी ठहरा रहे हैं तथा इन्हें हटाने की मांग कर रहे हैं

31 मार्च को एन.आई.टी. श्रीनगर में वल्र्ड टी-20 कप में भारत की हार पर कश्मीरी छात्रों द्वारा जश्र मनाने का गैर-कश्मीरी छात्रों द्वारा विरोध करने पर छात्रों में मारामारी के बाद पुलिस ने लाठियां बरसाईं। 31 मार्च को राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ के मेवाड़ विश्वविद्यालय में भी भारत की हार पर छात्रों के दो धड़ों में लड़ाई हो गई तथा जम्मू-कश्मीर के 9 छात्रों एवं मेवाड़ वि.वि. के एक वार्डन को गिरफ्तार किया गया। 

09 अप्रैल को चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में छात्रों के 2 धड़ों में संघर्ष के परिणामस्वरूप गोली चलने से 3 छात्र घायल हो गए। 18 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर में राजौरी स्थित डी.जी.एस.बी. विश्वविद्यालय में छात्रों के 2 समूहों के बीच लड़ाई में 4 जीपें जला दी गईं। 

और अब 24 अप्रैल को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के परिसर में छात्रों के दो गुटों के बीच हुए खूनी संघर्ष में 2 छात्रों की मृत्यु के बाद मृतक छात्रों के साथियों ने विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर के कार्यालय  को आग लगा दी, फाइलें जला डालीं और जमकर तोड़-फोड़ की। । 
 
उक्त घटनाओं से स्पष्टï है कि हमारे चंद छात्र संघों के सदस्य एक सृजनात्मक शक्ति के रूप में काम न करके अपनी शक्ति का नकारात्मक उपयोग ही कर रहे हैं जिससे सिवाय युवा शक्ति की बर्बादी के कुछ मिलने वाला नहीं है। बेशक छात्र संघ छात्रों के हितों की रक्षा के लिए हैं परंतु छात्र हितों के नाम पर इनमें घुस आई राजनीति देश का और छात्रों का नुक्सान कर रही है। इस वर्ष तो विश्वविद्यालयों में यह कुप्रवृत्ति तेजी से उभर कर सामने आई है जिससे संदेह होने लगा है कि हमारे देश में  उच्च शिक्षा प्राप्त छात्र-छात्राओं से देश के भावी कर्णधार और खेवनहार बनने की उम्मीद ही कहीं खत्म न  हो जाए।                                         —विजय कुमार

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