देश में ‘सर्वधर्म भाईचारे’ के ‘अटूट बंधन’

punjabkesari.in Wednesday, Sep 06, 2017 - 01:41 AM (IST)

इन दिनों जबकि देश में ‘बीफ’ तथा अन्य संवेदनशील मुद्दों को लेकर वातावरण विषाक्त बना हुआ है, स्वार्थी तत्वों द्वारा साम्प्रदायिक वातावरण खराब करने के प्रयासों के बावजूद देश में लोगों का एक-दूसरे के प्रति व्यवहार बार-बार गवाही दे रहा है कि हमारे भाईचारे के बंधन अटूट हैं:

आतंकवादियों के गढ़ दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल कस्बे में भाईचारे की मिसाल हाल ही में उस समय देखने को मिली जब एक हिन्दू पंडित महिला की मौत पर पूरे गांव खास तौर से मुस्लिम समुदाय के सदस्यों ने शोक मनाया और मुसलमान महिलाएं रोती-बिलखती देखी गईं। महिला के अंतिम संस्कार में भी उन्होंने भाग लिया। मंदिरों के शहर जम्मू की हर दूसरी-तीसरी गली में मुसलमानों के किसी न किसी पीर-फकीर की दरगाह मौजूद है। लोगों का विश्वास है कि इन दरगाहों और मजारों पर सजदा करने से उनकी मुरादें पूरी होती हैं। 

1947 में बंटवारे से पूर्व जम्मू में हिन्दू और मुसलमानों की आबादी लगभग बराबर थी परंतु अब इस शहर में लगभग 10 प्रतिशत मुसलमान ही रह गए हैं। ऐसे में ये दरगाहें हिन्दुओं और सिखों के विश्वास की वजह से ही आबाद हैं। एक महिला पत्रकार हाल ही में जब ‘बाबा बूढन शाह’ की दरगाह पर गई तो वहां उसने एक सरदार जी को सेवा करते हुए देखा। 

इस बार घाटकोपर (मुम्बई) के रामनगर और नालसोपारा में रहने वाले हिन्दू और मुसलमान बच्चों ने गणपति उत्सव मिल कर मनाया। 25 अगस्त को जब इन बच्चों ने सोसायटी में गणपति बिठाया तो इस बार पूजा-अर्चना में सुजल, अलतमश, अरमान, बाबू, जीशान, उसमा, जैद, अल्फाज और अली नामक मुसलमान बच्चों ने हिन्दू बच्चों के साथ मिल कर भाग लिया। इस वर्ष देश के विभिन्न भागों में आई बाढ़ से असम भी अप्रभावित नहीं रहा और वहां बड़ी संख्या में लोगों को राहत शिविरों में रहने को विवश होना पड़ा। नगाव जिले में मिसामुख गांव के मुसलमान अपने गांव के हिन्दू मुखिया की प्रशंसा करते नहीं थकते। 

गांव वासी आमिर के अनुसार, ‘‘बाढ़ आने के दिन से ही वह हमारे परिवार की मदद कर रहे हैं और कई बार रात को हमारे साथ बाढ़ के पानी से घिरे घर पर भी गए। गांव के दूसरे हिन्दू भाई भी इस मुश्किल समय में हमारे साथ हैं। गांव में हिन्दू-मुसलमानों के मकान एक ही कतार में हैं। मैंने अपने घर का आधा सामान एक हिन्दू दोस्त के घर पर रखा है। इस तरह कई हिन्दुओं ने भी अपना कीमती सामान मुसलमानों के घर पर रखा है।’’ साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए श्योपुर (म.प्र.) के  निकटवर्ती बगवाज गांव के रहने वाले जावेद अंसारी ने गांव के ‘इमली वाले हनुमान मंदिर’ के बगल में स्थित अपनी 1905 वर्ग फुट जमीन मंदिर समिति को दान में दे दी है। 

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बैरन बाजार में 67 वर्ष पूर्व 1950 में कुछ लोगों ने आपसी भाईचारे और मेलजोल का संदेश देने के लिए ‘सर्वधर्म मित्र मंडल समिति’ बनाकर आपसी भाईचारे की नींव रखी। इसमें हिन्दू, सिख, ईसाई और मुसलमान मिल कर सेवा करते हैं। इसमें महिलाएं भी शामिल हैं। उन्होंने 1995 में समिति का नाम बदल कर ‘सर्वधर्म गणेशोत्सव समिति’ रख दिया जो अभी तक काम कर रही है। 

और अब 2 सितम्बर को भाईचारे का एक उदाहरण उत्तराखंड में चमोली जिले के जोशीमठ नगर में देखने को मिला। वहां गांधी मैदान में बकरीद की नमाज अदा होनी थी परंतु लगातार हो रही बारिश के चलते मैदान पानी से लबालब भर जाने से श्रद्धालुओं की चिंता बढ़ गई कि अब वे नमाज कैसे अदा कर पाएंगे। कुछ सिखों को जब इसका पता चला तो उन्होंने आपस में सलाह-मशविरा करके वहां की गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सहयोग से गुरुद्वारा परिसर में नमाज अदा करवा दी।  भाईचारे के उक्त उदाहरण अकाट्य प्रमाण हैं कि समाज को धर्म के आधार पर बांटने की स्वार्थी तत्वों की कोशिशें कभी भी कामयाब नहीं हो सकतीं। अंतत: ऐसे तत्वों को मुंह की ही खानी पड़ेगी और भारत का ‘सर्वधर्म समभाव’ का स्वरूप इसी तरह कायम रहेगा।—विजय कुमार 


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