कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं में हाईकमान के विरुद्ध बढ़ रहा असंतोष

punjabkesari.in Saturday, Mar 26, 2016 - 01:59 AM (IST)

उत्तराखंड में कांग्रेस नीत हरीश रावत सरकार 18 मार्च को संकट में पड़ गई जब पार्टी के 9 असंतुष्ट विधायकों ने श्री रावत के विरुद्ध विद्रोह करते हुए भाजपा के 26 विधायकों के साथ राज्यपाल से मिल कर राज्य सरकार बर्खास्त करने की मांग कर दी। इसी दिन देर शाम राज्य के कृषि मंत्री ‘हरक सिंह रावत’ ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया तथा भाजपा प्रतिनिधिमंडल से भेंट के बाद राज्यपाल ने रावत सरकार को 28 मार्च तक अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए कह दिया। इसके उत्तर में हरीश रावत ने कहा कि वह 28 मार्च को सदन में अपना बहुमत सिद्ध कर देंगे और यदि ऐसा न कर सके तो अपने पद से त्यागपत्र दे देंगे। 

 
इसी बीच पार्टी नेतृत्व ने बागियों के विरुद्ध कार्रवाई करते हुए विद्रोही विधायकों में से एक विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत तथा एक अन्य नेता को पार्टी विरोधी बयानबाजी करने के आरोप में 6 साल के लिए पार्टी से निकालने के अलावा 9 जिलों की कांग्रेस इकाइयों को भी भंग कर दिया। 
 
इसके साथ ही विधानसभा अध्यक्ष ने 9 विद्रोही कांग्रेसी विधायकों को दल-बदल कानून के अंतर्गत नोटिस जारी कर दिया कि उनकी सदस्यता क्यों न समाप्त कर दी जाए। इसे रुकवाने के लिए 8 बागी विधायकों ने (पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने विधानसभा अध्यक्ष के आदेश को चुनौती नहीं दी) हाईकोर्ट में गुहार की जिसे मान्य न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया। अत: उन्हें अब कारण बताओ नोटिस का जवाब देना ही होगा।
 
इस समय जहां कांग्रेस उत्तराखंड में अपनी सत्ता को बचाने की कोशिश में जुटी है वहीं दूसरी ओर हरीश रावत और कांग्रेस के उच्च नेतृत्व से नाराज ‘हरक सिंह रावत’ तथा अन्य विद्रोही कांग्रेसी विधायकों ने राहुल गांधी के खिलाफ भी आवाज बुलंद कर दी है। 
 
इनका कहना है कि राहुल गांधी के पास ‘कन्हैया कुमार’ से मिलने के लिए तो समय है परंतु लगातार हरीश रावत से नाराज चले आ रहे अपनी पार्टी के विधायकों से मिलने के लिए समय नहीं। ‘हरक सिंह रावत’ का कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री हरीश रावत को संभलने का बहुत मौका दिया परंतु वह अपनी ही चलाते रहे। 
 
‘हरक सिंह रावत’ के अनुसार : ‘‘यह संकट पूर्णत: केंद्रीय कांग्रेस नेतृत्व की देन है। जब राहुल जी केदारनाथ आए थे, तब मैंने उनसे बार-बार उत्तराखंड में पार्टी की स्थिति पर विचार  के लिए बैठक बुलाने का आग्रह किया पर उनके पास हमसे मिलने का समय ही कहां है और हमारा भाग्य ऐसा नहीं कि उनसे फोन पर बात कर पाएं।’’
 
‘‘सोनिया जी सबसे मिलती तो हैं लेकिन कभी कोई मसला नहीं सुलझातीं। हमने अम्बिका सोनी (अखिल भारतीय महासचिव तथा प्रभारी) को भी ये सब बातें बताईं लेकिन उनका कहना था कि उनके हाथ में कुछ नहीं है।’’ ‘‘विद्रोह की पहली ङ्क्षचगारी भड़कने के समय ही यदि हाईकमान ने कार्रवाई की होती तो यह आग न भड़कती। 2013 की बाढ़ और भूस्खलन से पीड़ितों की पुकार मैंने राहुल जी तक पहुंचानी थी परंतु उनके पास समय ही नहीं। संकट में कोई हमारी सहायता नहीं करता। हम जीएं तो कैसे?’’
 
‘‘क्या कोई मानेगा कि राज्य का कृषि और बागवानी मंत्री होने के बावजूद मुझे सरकारी बैठकों आदि के बारे में अधिकारियों से ही सूचना मिलती थी और मैं मंडियों के सदस्यों तक की नियुक्ति नहीं कर सकता था?’’
 
‘‘मुख्यमंत्री एक जुंडली से घिरे हुए हैं। उन्हें पता है कि हाईकमान के पास उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के लिए समय नहीं है, अत: वह किसी को भी साथ लेकर चलना जरूरी नहीं समझते। उन्हें खुली छूट है। हम भाजपा का समर्थन नहीं कर रहे, कांग्रेस सरकार गिराने की कोशिश कर रहे हैं।’’ 
 
यह केवल किसी एक राज्य की बात नहीं है, इससे पहले भी कई बार कांग्रेस कार्यकत्र्ता यह शिकायत कर चुके हैं कि राहुल गांधी के पास उनकी बात सुनने का समय नहीं है, सोनिया गांधी वर्करों से मिलती तो हैं परंतु उनकी समस्या नहीं सुलझातीं और राज्यों के प्रभारी यह कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि उनके हाथ में कुछ नहीं है।
 
अत: यदि जल्दी ही कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने अपना यह नजरिया न बदला तो उन्हें इसका खमियाजा भी भुगतना पड़ेगा। वास्तविक कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा करके कृपापात्रों को ही अधिमान देने से कांग्रेस के जनाधार का और क्षरण होगा। अत: पार्टी हाईकमान अपने आप में जल्दी सुधार करे।  

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