चीन द्वारा देश में मुसलमानों का दमन, विदेश में मुस्लिम आतंकियों का समर्थन

punjabkesari.in Monday, Oct 01, 2018 - 03:40 AM (IST)

मुस्लिम कट्टरवाद पर लगाम लगाने के लिए चीन अल्पसंख्यकों की धार्मिक आजादी खत्म करने से लेकर उन्हें प्रताडि़त करने की सख्त नीति पर चल रहा है। अनुमान है कि चीन में बसे उइघर, कजाक, हुई, उज्बेक तथा अन्य अल्पसंख्यकों में से 10 लाख से अधिक लोगों को जबरन कथित सुधार शिविरों में भेजा जा चुका है। 

ये शिविर वास्तव में जेल से कम नहीं जहां डाले जाने वालों को वर्षों तक बाहर आने नहीं दिया जाता। ये शिविर मुस्लिमों के प्रति चीन की बेहद कठोर नीति का हिस्सा हैं जिसके अंतर्गत अदालती स्वीकृति के बगैर वर्षों तक कैद करने, कड़ी निगरानी रखने, राजनीतिक तथा धार्मिक सोच बदलने को मजबूर करने से लेकर कट्टरवादियों को खत्म करने के लिए प्रताडि़त किया जा रहा है। अमेरिकी कांग्रेस ने भी इसे अल्पसंख्यकों को बंधक बनाने की विश्व की सबसे बड़ी कार्रवाई बताया है। 

लगभग 1 करोड़ 20 लाख मुस्लिम अल्पसंख्यकों की आबादी वाले सुदूरवर्ती पश्चिम में 2009 में छिड़े दंगों के बाद से चीन ने वहां अल्पसंख्यकों पर पाबंदियां लगानी शुरू कर दीं जो 2016 के बाद और भी कठोर हो चुकी हैं। सख्ती इतनी अधिक है कि वे अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन तक नहीं कर सकते हैं। हिजाब पहनने या लम्बी दाढ़ी रखने पर भी पूछताछ शुरू हो जाती है और हल्का-सा भी शक होते ही उन्हें सुधार शिविरों में बंधक बना लिया जाता है। चीन इन पगों को देश के सुदूरवर्ती पश्चिमी हिस्सों में संतुलन तथा सद्भावना कायम करने के प्रयास बताते हुए अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के आरोपों को नकारता है। उसके अनुसार वहां नागरिकों को धार्मिक आजादी है परंतु अल्पसंख्यकों पर सख्ती से साफ है कि सच्चाई कुछ और ही है। 

शिविरों से छूटे लोगों के बयानों से पता चलता है कि वहां अल्पसंख्यक किस कदर भय में हैं। पहचान पत्र पास न रखने से लेकर हिजाब पहनने तथा नमाज अदा करने पर भी अल्पसंख्यकों को शिविर में डाल दिया जाता है। यहां तक कि फोन में ‘हैप्पी ईद’ जैसा कोई धार्मिक मैसेज मिलना भी मुसीबत को दावत दे सकता है। इन शिविरों में बेहद कम जगह में कई हजार लोगों को रखा जाता है और रोज दो घंटे राष्ट्रभक्ति के गीत गाने, अनुशासन संबंधी 10 बिंदुओं को याद करने से लेकर स्व-आलोचना सत्रों जैसी विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने को मजबूर किया जाता है। 

इन्कार करने पर हाथ-पैर जंजीरों में जकड़ दिए जाते हैं। रात को कैदियों को बारी-बारी से नजर रखनी होती है कि सो रहा कोई भी कैदी निगरानी कैमरों की ओर न तो पीठ करके सोए और न ही मुंह ढंके। हर बार भोजन से पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का आभार व्यक्त करने से लेकर टॉप चीनी नेताओं के नाम याद रखने को भी उन्हें कहा जाता है। इस तरह उन्हें सुधारने के नाम पर मानसिक रूप से प्रताडि़त किया जाता है। अनुमान है कि शिनजियांग प्रांत की मुस्लिम जनसंख्या के 10 प्रतिशत यानी लगभग 11 लाख लोगों को सुधार शिविरों में डाला जा चुका है। कितने ही अल्पसंख्यक परिवार सालों से अपने प्रियजनों के शिविरों से लौटने का इंतजार कर रहे हैं जिनमें बुजुर्ग, महिलाएं तथा बच्चे तक शामिल हैं परंतु किसी को नहीं पता कि वे कब लौटेंगे? 

हालांकि, उसका दोगलापन इस बात से जाहिर हो जाता है कि वह अपने यहां मुस्लिम समुदाय पर लगाम लगाने के लिए मानवाधिकारों की खुल कर अनदेखी करने वाला चीन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ भारत के कदमों को अवरुद्ध करने की कोशिश करता है। इसी का प्रमाण है कि पाकिस्तानी आतंकवादी समूह जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की ओर से ‘ग्लोबल टैरेरिस्ट’ घोषित करवाने के भारत के प्रयासों को उसने बार-बार वीटो किया है। हाल ही में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने मसूद का पक्ष लेते हुए तर्क दिया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों के साथ-साथ सीधे जुड़े पक्षों (भारत-पाकिस्तान) के बीच इस मुद्दे पर सहमति नहीं है और मसूद के खिलाफ सबूत भी अपर्याप्त हैं। 

दूसरी ओर भारत में कई घातक आतंकवादी हमलों के आरोपी मसूद को ‘ग्लोबल टैरेरिस्ट’ घोषित करने के प्रस्ताव का अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्रांस तक समर्थन करते हैं। इतना ही नहीं, मसूद द्वारा स्थापित संगठन जैश-ए-मोहम्मद को पहले ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों की सूची डाला जा चुका है। ऐसे में चीन भले ही कोई भी तर्क क्यों न दे, यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान से दोस्ती निभाने के लिए ही वह आतंकवाद के खिलाफ भारत के प्रयासों में रोड़े अटका रहा है।


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Pardeep

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