देश में हो रही राजनीतिक हत्याएं दिखा रहीं विभिन्न दलों का क्रूर चेहरा
punjabkesari.in Thursday, Dec 23, 2021 - 04:43 AM (IST)

देश के विभिन्न भागों में पिछले कुछ समय से राजनीतिक हत्याओं का सिलसिला लगातार जारी है जो इस वर्ष मार्च-अप्रैल में हुए चुनावों के परिणाम आने के बाद और भी तेज हो गया है। स्थिति की गंभीरता मात्र सवा महीने के निम्र उदाहरणों से स्पष्ट है:
* 14 नवम्बर को बंगाल के पूर्वी मिदनापुर में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकत्र्ता भास्कर बेरा को जंगल में ले जाकर पीट-पीट कर उसकी हत्या कर देने के आरोप में तृणमूल कांग्रेस के एक कार्यकत्र्ता को गिरफ्तार किया गया।
* 19 नवम्बर को केरल के पलक्कड जिले में एक आर.एस.एस. नेता की पत्नी ए. संजीत की उनके घर में घुस कर हत्या कर दी गई। भाजपा तथा संघ परिवार ने ‘सोशल डैमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया’ (एस.डी.पी.आई.) तथा इस्लामिक संगठन पी.एफ.आई. पर इस हत्या का आरोप लगाया है।
* 16 दिसम्बर को बिहार के समस्तीपुर जिले में राजद नेता विजय महतो की कुछ बदमाशों ने गला रेत कर हत्या कर दी।
* 18 दिसम्बर को केरल के तिरुवनंतपुरम में ‘सोशल डैमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया’ (एस.डी.पी.आई.) के प्रदेश सचिव एस. शान की बेरहमी से हत्या कर दी गई।
* इसके अगले ही दिन 19 दिसम्बर को सुबह भाजपा के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी.) मोर्चा के प्रदेश सचिव रंजीत श्रीनिवास की उनके घर में घुस कर हत्या कर दी गई। उक्त दोनों हत्याओं के संबंध में 50 के लगभग लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने 3 अगस्त को लोकसभा में बताया था कि पिछले तीन वर्षों (2017 से लेकर 2019) के मध्य देश के विभिन्न हिस्सों में 230 लोगों की राजनीति से प्रेरित हत्याएं हुई हैं। उपरोक्त घटनाओं से स्पष्ट है कि देश में न सिर्फ राजनीतिक ङ्क्षहसा जारी है बल्कि प्रतिद्वंद्वी दलों द्वारा अपने विरोधियों को निपटाने के लिए क्रूरतम तरीके इस्तेमाल किए जा रहे हैं। निश्चय ही यह सच्चे लोकतंत्र का चेहरा नहीं है और इससे लगता है कि समय बीतने के साथ-साथ हमारे लोकतंत्र में भागीदार विभिन्न राजनीतिक दल परिपक्व होने की बजाय प्रतिद्वंद्विता के चलते असहनशील और क्रूर होते जा रहे हैं।—विजय कुमार