नशों की रोकथाम के लिए न्यायपालिका और महिलाएं आगे आईं

punjabkesari.in Thursday, Jul 02, 2015 - 03:12 AM (IST)

शराब तथा अन्य सभी नशे जहर हैं। इनके सेवन सेे होने वाली मौतों से न सिर्फ असंख्य परिवार उजड़ रहे हैं बल्कि अपराधों में भी भारी वृद्धि हो रही है। नकली और सस्ती शराब पीने से भी बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं। 

अभी पिछले महीने ही मुम्बई में विषैली शराब पीने से कम से कम 105 लोगों की मृत्यु हो गई और एक ही झटके में दर्जनों परिवार बर्बाद हो गए। दर्जनों महिलाएं विधवा और बच्चे अनाथ हो गए। 
 
शराब के दुष्परिणामों को देखते हुए ही कुछ समय से शराब के ठेके बंद करवाने के लिए धरने-प्रदर्शन किए जाने लगे हैं। 28 जून को हापुड़ (यू.पी.) में दर्जनों महिलाओं ने लाठी-डंडे लेकर मीरारेती मोहल्ले के देसी शराब के ठेके पर धावा बोल दिया और उसे हटाने की मांग पर बल देने के लिए जम कर नारेबाजी की। महिलाओं ने आरोप लगाया कि उनके पतियों और बच्चों को शराब की लत लग जाने से उनके परिवारों में अशांति फैलने लगी है। 
 
इसी प्रकार 30 जून को औरंगाबाद (महाराष्ट) के अगोता गांव में शराबियों के उत्पात से तंग आई क्रोधित महिलाएं डंडे और झाड़ू लेकर अंग्रेजी शराब के दोनों ठेकों पर पहुंच गईं और सेल्समैनों को बंधक बना लिया। उन्होंने पुलिस द्वारा हस्तक्षेप करने पर उसे भी खूब खरी-खोटी सुनाई।
 
इसी सिलसिले में पंजाब के 21 जिलों की 134 पंचायतों ने अपने गांवों को नशा मुक्त करने के लिए सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव आबकारी विभाग को भेजे थे परंतु इनमें से केवल 107 पंचायतों के प्रस्ताव ही स्वीकार किए गए।
 
शराब के दुष्प्रभावों को देखते हुए पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी अपने लेखों और भाषणों में बहनों से अनुरोध किया करते थे कि यदि उनके पति रात को शराब पीकर आएं तो न ही उन्हें घर में घुसने दें और न ही खाना दें। 
 
एक सुखद बदलाव का संकेत देते हुए कुछ इसी प्रकार का निर्णय बिहार के नालंदा जिले के ‘कुबड़ा बीघा’ गांव की महिलाओं ने अब लिया है। जिनका जीवन गांव के पुरुषों द्वारा अपनी आधी से ज्यादा कमाई शराब में उड़ा देने के कारण नरक बन कर रह गया है।
 
इन महिलाओं ने गांव की मुखिया चित्रलेखा देवी की अध्यक्षता में हुई बैठक में अब इस अन्याय को और बर्दाश्त न करने का क्रांतिकारी निर्णय लेते हुए शराब पीकर घर आने वाले अपने पतियों के लिए घर का दरवाजा न खोलने तथा इस निर्णय को लागू करने के लिए एक समिति गठित करने का भी फैसला लिया है। यही नहीं, गांव में अवैध शराब बनाने पर भी रोक लगा दी गई है।
 
अभी कुछ समय पूर्व ही इसी जिले के कुछ गांवों की महिलाओं ने अवैध शराब की भ_िïयों पर धावा बोल कर सारा सामान तहस-नहस कर दिया था और कुछ ही समय बाद इलाके के मुसलमान उलेमाओं (विद्वानों) तथा मौलवियों ने घोषणा की थी कि वे शराब पीने वाले किसी भी व्यक्ति की मृत्यु पर ‘नमाज-ए-जनाजा’ नहीं पढ़वाएंगे। 
 
इसी बीच  30 जून को एक महत्वपूर्ण निर्णय में राजस्थान उच्च न्यायालय ने भी एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए राज्य में चूरा-पोस्त और अफीम की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ हाल ही में राज्य में दिए गए पोस्त और अफीम के 100 करोड़ रुपयों के ठेकों को फिलहाल स्थगित रखने का भी आदेश दिया है। इससे राजस्थान तथा आसपास के इलाकों में लोगों को इन दोनों नशों से दूर रखने में काफी सहायता मिलेगी। 
 
चूंकि हमारे नेता तो शराब को नशा ही नहीं मानते और हमारी सरकारें इसकी बिक्री से होने वाली भारी-भरकम आय को खोना भी नहीं चाहतीं इसीलिए शराब एवं अन्य नशों के सेवन से होने वाली भारी हानियों के बावजूद उन्होंने इस ओर से पूरी तरह आंखें मूंद रखी हैं और इसलिए शराब के उत्पादन में कमी की बजाय हर वर्ष इसकी वृद्धि को ही बढ़ावा दे रही हैं। 
 
वैसे तो ऊपरी तौर पर दिखावे के लिए हमारे नेतागण नशों पर रोक लगाने की बातें करते रहेंगे परंतु क्रियात्मक रूप से इसे समाप्त करने के लिए कुछ भी नहीं करेंगे।
 
अत: अपने पुरुषों को शराब व दूसरे नशों से दूर रखने के लिए महिलाओं व पंचायतों द्वारा उठाए गए पग व राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा  चूरा-पोस्त वअफीम की बिक्री पर लगाए प्रतिबंध निश्चित ही सराहनीय हैं।  

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