चीनी राष्ट्रपति की पाकिस्तान यात्रा के भारत के लिए निहित अर्थ

punjabkesari.in Monday, Apr 20, 2015 - 04:32 AM (IST)

केन्द्र में भाजपा नीत नरेन्द्र मोदी की सरकार उनके हाल ही के 3 देशों फ्रांस, जर्मनी और कनाडा के दौरे में राफेल विमान समझौते और वैमानिकी के अन्य क्षेत्रों में निवेश अनुबंधों पर संतुष्ट नजर आ रही है, भारत द्वारा अर्थव्यवस्था के मामले में चीन से आगे निकल जाने की बातें पुन: चर्चा में हैं। ऐसे समय भारत सरकार चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सोमवार को होने जा रहे पाकिस्तान दौरे की अनदेखी नहीं कर सकती।

हालांकि इस यात्रा का विस्तृत विवरण अभी घोषित नहीं किया गया है परन्तु इतना तय है कि राष्ट्रपति जिनपिंग पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे के लिए 46 बिलियन डालर के निवेश  की योजना को अमली जामा पहनाएंगे।

‘चीन-पाक आर्थिक कोरीडोर’ नामक यह योजना जिनपिंग के मस्तिष्क की उपज है, जिसके अंतर्गत पूर्व और पश्चिम को जोडऩे वाले पुरातन ‘सिल्क रूट’ जैसा ही एक आधुनिक सड़क मार्ग तैयार किया जाएगा। पाक के योजना मंत्री एहसान इकबाल के अनुसार, ‘‘यह पाकिस्तान के लिए एक गेम चेंजर के समान है क्योंकि इस सड़क सम्पर्क द्वारा न सिर्फ बीजिंग को मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के बाजारों से जोडऩा वांछित है बल्कि यह पाकिस्तान को चीन और ईरान के बीच एक ‘पुल’ बना देगा।’’
 
हालांकि भारत की भी पाक के रास्ते भारत-ईरान के बीच एक तेल पाइप लाइन बिछाने की योजना थी जिसमें अफगानिस्तान सहित अन्य देशों को भागीदार बनाया जाना था परन्तु पाक द्वारा इस बारे उत्साह न दिखाने व मार्ग असुरक्षित होने के कारण यह परियोजना कागजों में सिमट कर रह गई।
 
हालांकि चीन सरकार मुख्यरूप से पाकिस्तान व अफगानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता को लेकर ङ्क्षचतित है लेकिन चीन द्वारा भेजे जाने वाले हजारों वर्करों और इंजीनियरों की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान हजारों सैनिकों पर आधारित एक विशेष सुरक्षाबल गठित करने जा रहा है जो स्थानीय वर्करों के साथ मिल कर इस परियोजना पर काम करेंगे।
 
पाकिस्तान में कोयला आधारित बिजली प्लांटों की स्थापना की भी चीन की योजना है। भारी बिजली संकट के शिकार पाकिस्तान में चीन द्वारा 15.5 बिलियन डालर से 2018 तक बिजली उत्पादन में 10,400 मैगावाट वृद्धि करने की योजना है।  इसके अलावा 6,600 मैगावाट बिजली 18.3 बिलियन डालर की लागत से तैयार करने को भी अपनी योजना में चीन ने शामिल कर रखा है। इससे नवाज शरीफ सरकार मजबूत होगी जिसने पाकिस्तान के लोगों को नौकरियां देने के अलावा देश में बिजली उत्पादन बढ़ाने और सड़कों के निर्माण का वायदा कर रखा है।
 
आलोचकों के अनुसार यह भारत के लिए चिंता की कुछ बात अवश्य है क्योंकि पहले ही कैरी लुगार बर्मान कानून के अंतर्गत 2010 से 2014 के बीच पाकिस्तान को अमरीका 5 बिलियन डालर से अधिक की सहायता दे चुका है। इसमें से 2 बिलियन डालर तो सिर्फ बुनियादी ढांचा खड़ा करने के लिए ही दिए गए हैं परन्तु चीन द्वारा पाकिस्तान में उक्त निर्माण कार्य शुरू करना सिर्फ एक दोस्ताना पड़ोसी की सद्भावना नहीं है यह उसकी तीन तरफा रणनीति का हिस्सा है। 
 
पहली बात तो यह है कि जिस काम में अमरीका सफल नहीं हो सका, उसमें सफल होकर चीन अपने प्रयास को इस क्षेत्र के भौगोलिक-राजनीतिक  नक्शे के पुननर्धारण के एक ऐतिहासिक अवसर के रूप में देखता है। 
 
इस समय जबकि ज्यादातर अमरीकी सेनाएं अफगानिस्तान से बाहर आ चुकी हैं, अफगान राष्ट्रपति गनी तथा तालिबान विद्रोहियों में शांति वार्ता शुरू करवाने की चीन कोशिश कर रहा है। चीन के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र शिन जियांग में काफी संख्या में मुस्लिम आबादी है। अफगानिस्तान में शांति स्थापित करके चीन सरकार उन्हें तालिबानी जेहादियों से दूर रखने की इच्छुक है। इससे चीन को ईरान से सम्पर्क के लिए सीधा रास्ता व अमरीका-ईरान परमाणु समझौते के बाद तेल आपूतकत्र्ता के रूप में भी एक महत्वपूर्ण साथी मिल जाएगा।
 
‘वन बैल्ट, वन रोड’ वाली इस परियोजना द्वारा चीन बीजिंग से बलोचिस्तान तक 2000 मील लम्बा यह गलियारा बनाने जा रहा है। बलोचिस्तान में गवादर नामक बंदरगाह तक यह रोड न केवल यूरोप से व्यापार के लिए एक सस्ता वैकल्पिक मार्ग होगा बल्कि जब से पाक सरकार ने यह बंदरगाह चीन को सौंपी है चीनी जल सेना को भारतीय जल सेना का मुकाबला करने के लिए अरब सागर में मौजूदगी की सुविधा भी मिल गई है। 
 
इस परियोजना से पाकिस्तान और चीन का आॢथक विकास होगा या नहीं यह तो भविष्य ही बताएगा परन्तु इससे भारत के लिए सुरक्षा संबंधी जोखिम अवश्य उत्पन्न हो गया है। उस समय जबकि भारत अभी दिल्ली से चीन की सीमा तक मजबूत चौड़ी सड़कें भी नहीं बना सका, चीन ने बीजिंग से तिब्बत तक तथा भारतीय सीमा के पार सड़कें बना भी ली हैं जिनसे युद्ध की स्थिति में चीन को अपनी सेनाएं तथा खाद्य आपूत और अन्य सैन्य सामग्री सीमा तक पहुंचाने में सहायता मिलेगी। अत: भारत को भविष्य में अपनी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की तैयारी करने के मामले में ज्यादा सतर्क और ज्यादा सक्रिय रहने की आवश्यकता है।

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