सेना की भारी चूक ‘अलर्ट के बावजूद’ ‘उड़ी’ के बाद एक और बड़ा आतंकी हमला

punjabkesari.in Friday, Feb 15, 2019 - 03:50 AM (IST)

28 से अधिक वर्षों से पाक अधिकृत क्षेत्रों में चल रहे प्रशिक्षण शिविरों में प्रशिक्षण प्राप्त आतंकवादियों ने लगातार जम्मू-कश्मीर में हिंसा का तांडव जारी रखा हुआ है जो भारतीय सुरक्षा बलों तथा आम नागरिकों के जान-माल को भारी क्षति पहुंचा रहे हैं जो हमें यह सोचने पर विवश करता है कि आतंकवादियों के प्रति हमारी नीति सही है या नहीं। 

पाकिस्तानी सेना और उसके पाले हुए आतंकवादियों द्वारा जारी हिंसा की छिटपुट घटनाओं के बीच तमाम चेतावनियों के बावजूद 18 सितम्बर, 2016 को बारामूला शहर के उड़ी सैक्टर में नियंत्रण रेखा के निकट सेना के 12 ब्रिगेड मुख्यालय पर आतंकवादियों के हमले में सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे। उड़ी में अत्यंत महत्वपूर्ण भारतीय सेना के इस ठिकाने पर इस हमले को सुरक्षा बलों की बहुत बड़ी चूक बताया गया था। उड़ी पर हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान की सीमा में स्थित आतंकवादियों के 7 ठिकानों पर 29 सितम्बर, 2016 को सर्जीकल स्ट्राइक करके 38 आतंकी मार गिराए थे। 

भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा घाटी में आतंकवादियों के विरुद्ध अभियान भी जारी है तथा गृह मंत्रालय के अनुसार 2018 में कम से कम 250 चरमपंथी मारे गए। सरकार की ओर से कहा गया कि घाटी में आतंकवाद अंतिम सांसें ले रहा है परंतु यह दावा सत्य की कसौटी पर खरा नहीं उतरा। पाक समर्थित आतंकियों ने अपने खतरनाक इरादों का प्रमाण 14 फरवरी को एक बार फिर दिया जब जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में अवंतीपुरा के गौरीपुरा इलाके में बाद दोपहर 3.20 बजे श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग पर सी.आर.पी.एफ. के काफिले पर फिदायीन के आत्मघाती हमले को अंजाम देकर 44 जवानों को शहीद व कम से कम 22 जवानों को घायल कर दिया गया। 

इस काफिले में 2545 से अधिक जवान शामिल थे। बताया जाता है कि आतंकवादियों ने सड़क के किनारे ही एक गाड़ी में लगभग 350 किलो आई.ई.डी. प्लांट किया था और जैसे ही सी.आर.पी.एफ. का लगभग 78 गाडिय़ों का काफिला वहां से गुजरा, आई.ई.डी. से लैस वाहन में सवार आतंकी ने काफिले में चल रही बसों को टक्कर मार दी। इसके बाद वहां जोरदार ब्लास्ट हो गया और वाहन धू-धू कर जलने लगे। उड़ी के सैन्य शिविर पर हमले के बाद आतंकवादियों का यह सबसे बड़ा हमला है। दूसरी ओर सी.आर.पी.एफ. के सूत्रों के अनुसार जब काफिला वहां से गुजरा तो सड़क के किनारे खड़े एक चौपहिया वाहन जिसमें आई.ई.डी. लगाया गया था, में विस्फोट हो गया। सबसे अधिक संभावना है कि यह एक रिमोट कंट्रोल्ड व्हीकल आई.ई.डी. था। 

7 दिन पूर्व संसद भवन पर हमले के दोषी अफजल गुरु तथा जे.के.एल.एफ. के संस्थापक मोहम्मद मकबूल बट की फांसी की बरसी से ठीक पहले 8 फरवरी को सुरक्षा एजैंसियों ने एक अलर्ट जारी किया था। इस अलर्ट में कहा गया था कि ‘‘आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों की तैनाती और उनके आने-जाने के रास्ते, सभी सी.आर.पी.एफ. तथा पुलिस के कैम्प पर आई.ई.डी. से बड़ा हमला कर सकते हैं। अत: इलाके को सुरक्षित (सैंसिटाइज)किए बिना वे उस क्षेत्र में ड्यूटी पर न जाएं।’’ परंतु इसके बावजूद यह चूक हुई और आतंकी बड़ा हमला करने में सफल हो गए। प्रतिबंधित जैश-ए-मोहम्मद ने हमले की जिम्मेदारी ले ली है। इसके प्रवक्ता मोहम्मद हसन ने कहा है कि ‘‘इस हमले को आदिल अहमद उर्फ वकास कमांडो ने अंजाम दिया है तथा हमले में सुरक्षा बलों के दर्जनों वाहन नष्ट कर दिए गए हैं।’’ 

जैसा कि हर हमले के बाद होता है, इस हमले की भी सर्वत्र निंदा की जा रही है परंतु प्रश्र तो यह है कि यदि हम अपनी महत्वपूर्ण सीमाओं, अपनी सेनाओं और महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों की ही सुरक्षा नहीं कर सकते तो फिर भला आम नागरिकों की सुरक्षा कैसे की जा सकती है! ऐसे में गुप्तचर तंत्र द्वारा दी गई चेतावनियों को निम्रतम स्तर तक पहुंचाने की व्यवस्था करने, सैनिकों के आवागमन के दौरान व सैन्य काफिले की सुरक्षा के लिए विशेष सुरक्षा प्रबंध करने, आंतरिक सुरक्षा की नियमित समीक्षा करके इस समस्या का स्थायी समाधान तलाश करने और किसी भी स्तर पर पाई जाने वाली त्रुटियों को तत्काल दूर करने की आवश्यकता है।—विजय कुमार  


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