दिल्ली में एक और भयानक अग्निकांड 43 मजदूरों की दर्दनाक मौत

punjabkesari.in Tuesday, Dec 10, 2019 - 01:22 AM (IST)

हमारे देश में औसतन प्रतिदिन 62 लोगों की जान विभिन्न अग्निकांडों में जाती है। देश के अन्य भागों की बात तो जानें दें, सर्वाधिक सुरक्षित समझी जाने वाली राजधानी दिल्ली में पिछले कुछ वर्षों में अनेक भयानक अग्निकांड हुए और अब इनमें एक और दर्दनाक अग्निकांड जुड़ गया है : 13 जून, 1997 को उपहार सिनेमा में हुए भीषण अग्निकांड में 59 लोगों की मृत्यु हुई क्योंकि सिनेमा घर में सुरक्षा के इंतजाम नहीं थे। 31 मई, 1999 को लाल कुआं स्थित एक कैमीकल मार्कीट कॉम्पलैक्स में हुए अग्निकांड में 57 लोग मारे गए। 20 जनवरी, 2018 को बवाना इंडस्ट्रीयल एरिया में चल रहे 3 अवैध कारखानों में लगी आग में झुलस कर 17 लोगों की मौत हो गई। 

12 फरवरी, 2019 को करोल बाग के ‘होटल अॢपत’ में लगी आग ने 17 लोगों की जान ले ली। और अब 8 दिसम्बर, 2019 को सुबह-सवेरे उत्तरी दिल्ली के अनाज मंडी इलाके में रानी झांसी रोड पर प्लास्टिक के स्कूल बैग, पर्स और खिलौने जैसी ज्वलनशील वस्तुएं बनाने वाली अवैध 4 मंजिला फैक्टरी में आग लग जाने से फैक्टरी में ही रहने वाले 43 मजदूर मारे गए जबकि बचाए गए 64 लोगों में से 21 बुरी तरह झुलस गए। इमारत की छत और बाहर निकलने के दरवाजे पर ताला लगा होने के कारण आग में फंसे बदनसीब बाहर न निकल सके। इमारत के एक-एक कमरे में 25-30 मजदूर रहते थे। इस फैक्टरी में न संकटकालीन निकासी द्वार था, न नगर निगम से एन.ओ.सी. लिया गया था और न ही आग से बचाव के उपकरण मौजूद थे। 

घनी आबादी और संकरी गली वाला इलाका होने के कारण फायर ब्रिगेड या एम्बुलैंस अंदर तक नहीं जा सकीं अत: फायर ब्रिगेड कर्मचारियों ने इमारत की खिड़कियों में लगी लोहे की छड़ें काट कर कुछ लोगों को बचाया। अग्निकांड के चलते असंख्य परिवारों को बर्बाद कर देने वाली यह इकलौती फैक्टरी नहीं है। अकेले अनाज मंडी क्षेत्र में ही 800 के लगभग अवैध फैक्टरियां बताई जाती हैं जहां हर फैक्टरी में 15 से 20 मजदूर काम करते हैं। इसके अलावा भी दिल्ली के अन्य अनेक इलाकों में चल रही असंख्य फैक्टरियों में ऐसी ही अव्यवस्था व्याप्त है जिनमें हजारों मजदूर मात्र 5-6 हजार रुपए मासिक वेतन पर अपने परिवार वालों का पेट भरने के लिए देश के दूर-दराज के इलाकों से आकर मजदूरी कर रहे हैं। 

पिछले कुछ वर्षों के दौरान दिल्ली का अत्यधिक विस्तार हुआ है लेकिन अग्निकांडों से निपटने के साधन सीमित हैं। अधिकांश मकानों को आवासीय और व्यापारिक दोनों रूप में इस्तेमाल किया जाता है। जामा मस्जिद, चांदनी चौक, खारी बाऊली, रैगरपुरा, किनारी बाजार, दया बाजार, बल्ली मारां, सदर बाजार, सुल्तानपुरी तथा जहांगीरपुरी आदि में इमारतें डिबियों की तरह आपस में गुंथी हुई हैं जिनके ऊपर मकड़ी के जालों की तरह बिजली के तार लटक रहे हैं। अनेक क्षेत्रों में गलियां इतनी संकरी हैं कि वहां फायर ब्रिगेड के वाहनों का पहुंचना और आग पर नियंत्रण पाना बहुत मुश्किल है जबकि 90 प्रतिशत अग्निकांड ऐसे ही क्षेत्रों में होते हैं। 

इस बीच जहां एक ओर ‘आप’ शासित सरकार व भाजपा शासित नगर निगम ने एक-दूसरे को दोषी ठहराने की कवायद भी शुरू कर दी है तो दूसरी ओर हमेशा की तरह मामला शांत करने के लिए केन्द्र और दिल्ली तथा बिहार की सरकारों और दिल्ली भाजपा ने मृतकों के परिजनों को कुल 19 लाख रुपए क्षतिपूर्ति के रूप में देने तथा गंभीर रूप से घायलों को कुल 75-75 हजार रुपए राहत देने की घोषणा कर दी है। अग्नि पीड़ितों को मुआवजा देकर मामला शांत करने बारे उपहार सिनेमा अग्निकांड में अपने 2 बच्चे खोने वाली ‘एसोसिएशन आफ विक्टिम्स आफ उपहार ट्रैजेडी’ की संयोजक नीलम कृष्णमूर्ति का कहना है ‘‘हर अग्निकांड के बाद सरकार पीड़ितों को मुआवजा देने की घोषणा करती है। हमारे राजनीतिज्ञ इसी राशि का इस्तेमाल अग्निशमन के उपाय करने और इसके लिए उपकरण खरीदने में क्यों नहीं करते?’’ 

लिहाजा फैक्टरियों को नागरिक आबादी से बाहर औद्योगिक क्षेत्रों में स्थानांतरित करने के साथ-साथ आवश्यकता इस बात की भी है कि सुरक्षा प्रबंधों संबंधी नियमों के पालन की समुचित जांच के बाद ही फैक्टरी लगाने की इजाजत दी जाए और समय-समय पर उनकी जांच की जाती रहे। जिस प्रकार दिल्ली सरकार अवैध कालोनियों को नियमित कर रही है उसी प्रकार उसे यहां संकरी गलियों में चल रहे कारखाने भी ऐसी जगहों पर स्थानांतरित करने की दिशा में पग उठाने चाहिएं जहां अग्निशमन गाडिय़ां आदि आसानी से पहुंच सकें।—विजय कुमार  


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News