बंगलादेश में हिंदुओं तथा मंदिरों पर हमलों को लेकर ‘बयानवीर’ तथा ‘सरकार’ चुप क्यों

punjabkesari.in Thursday, Nov 03, 2016 - 02:16 AM (IST)

पूर्वी पाकिस्तान के बंगलाभाषी लोगों को पश्चिमी पाकिस्तान के शासकों के अत्याचारों से मुक्ति दिलवाने में भारतीय सेनाओं ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई जिसके चलते 26 मार्च, 1971 को बंगलादेश अस्तित्व में आया।

दोनों देशों के नेताओं ने 40 वर्षों से चला आ रहा सीमा विवाद सुलझाने के लिए 6 जून, 2015 को भूमि सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके अंतर्गत भारत और बंगलादेश की मुख्य सीमा के भीतर विवादास्पद इलाकों की अदला-बदली और लोगों को नागरिकता देने पर सहमति व्यक्त की गई। 

इस समझौते के परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने, नशीले पदार्थों, नकली मुद्रा, मवेशियों तथा अन्य वस्तुओं की तस्करी, अवैध घुसपैठ आदि रोकने में मदद मिल रही है। 

बंगलादेश के राष्टपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना इस समय बंगलादेश की प्रधानमंत्री हैं जिनके परिवार का बंगलादेश के स्वतंत्रता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान रहा है। 

वहां के हिन्दू, बौद्ध, ईसाई व शिया जैसे अल्पसंख्यक सामान्यत: शेख मुजीब की पार्टी के समर्थक हैं और बंगलादेश के साथ भारत के लम्बे सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक संबंध भी हैं परंतु इसके बावजूद पिछले 4 दशकों से ये बंगलादेश में नस्ली भेदभाव का शिकार हो रहे हैं।

 अल्पसंख्यक परिवारों की बहू-बेटियों से बलात्कार तथा उन पर अन्य अत्याचार  बढ़ गए हैं। उनका जब्री धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है और उनके धर्म स्थलों पर भी लगातार हमले  किए जा रहे हैं। 

बंगलादेश में 2012 में एक फेसबुक पोस्ट को लेकर बौद्धों के विरुद्ध भारी हिंसा हुई और 25,000 से अधिक लोग सड़कों पर उतर आए जिन्होंने 50 से अधिक बौद्ध परिवारों को लूट लिया व 10 बौद्ध मठ नष्टï कर दिए गए। 

2013-14 में बंगलादेश में हुई नस्ली हिंसा में हिन्दुओं के 1500 मकानों और लगभग 50 मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। दिसम्बर, 2015 में दिनाजपुर जिले में एक हिन्दू मंदिर पर कट्टरपंथियों ने देसी बमों से हमला करके भारी क्षति पहुंचाई। इस वर्ष जनवरी से अब तक बंगलादेश में 4 हिन्दू पुजारियों सहित कम से कम 40 अल्पसंख्यकों की हत्या की जा चुकी है और यह सिलसिला अभी भी जारी है।

नस्ली हिंसा की नवीनतम घटना में 30 अक्तूबर को 10,000 कट्टरपंथियों ने 100 से अधिक मकानों को जलाने व लूटपाट करने के अलावा हिन्दुओं की आस्था के केंद्र दत्त बाड़ी मंदिर, घोषपाड़ा मंदिर, नमाशूद्र पाड़ा मंदिर, जगन्नाथ और गौड़ा मंदिरों सहित 17 हिन्दू मंदिरों पर हमला करके उन्हें भारी क्षति पहुंचाई तथा अनेक देव प्रतिमाओं को खंडित कर दिया।

इन हमलों में विभिन्न मंदिरों के कुछ पुजारियों सहित 100 से अधिक लोग घायल हुए। बताया जाता है कि ये हमले कथित रूप से रविवार दोपहर को एक व्यक्ति द्वारा मक्का स्थित ‘मस्जिद अलहराम’ के संबंध में किए गए फेसबुक पोस्ट के बाद भड़के विवाद के चलते किए गए। 

30 अक्तूबर को हुई इस घटना के संबंध में हमें अपने अनेक पाठकों के फोन और ई-मेल  प्राप्त हुए हैं जिनमें उन्होंने कहा है कि बंगलादेश की सत्ता पर एक भारत समर्थक नेता के आसीन होने के बावजूद वहां हिन्दुओं तथा अन्य अल्पसंख्यकों पर हमलों का जारी रहना अत्यंत ङ्क्षचताजनक है। 

इस समय जब बंगलादेश में इतने बड़े पैमाने पर हिन्दुओं पर हमले व हिंदू धर्म स्थलों पर तोड़-फोड़ की गई है, हमारे बयानवीरों व अयोध्या में राम मंदिर के लिए अभियान चलाने वालों ने एक शब्द भी मुंह से नहीं निकाला। लोगों द्वारा बंगलादेश में हिन्दुओं पर हमलों और मंदिरों में तोड़-फोड़ के संबंध में ‘बयानवीरों’ की चुप्पी पर प्रश्नचिन्ह लगाने से स्पष्टï है कि हमारे बयानवीरों को लोगों की समस्याओं से तो कोई लेना-देना नहीं है उन्हें तो बस किसी न किसी तरह चर्चा में बने रहने से मतलब है। 

भारत सरकार को भी बंगलादेश सरकार के साथ यह मुद्दा गंभीरतापूर्वक उठाना चाहिए था जो अब तक उठाया नहीं गया। इससे जहां बंगलादेश में सक्रिय कट्टरपंथी तत्वों के हौसले बुलंद हो रहे हैं वहीं बंगलादेश के हिंदू तथा अन्य अल्पसंख्यकों में हताशा बढ़ रही है कि आखिर उनकी सरकार उनकी समस्याओं की ओर से उदासीन क्यों है। इस हालत में कहीं ऐसा न हो कि बंगलादेश में हावी हो रहे ‘इस्लामिक कट्टरवादी’ तत्व अपनी सरकार पर हावी हो कर भारत विरोधी गतिविधियों में जुट कर पाकिस्तान की भांति ही बंगलदेश से भी हमारे सम्बन्ध बिगडऩे का कारण बन जाएं!        
 


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