200 रुपए की मासिक पैंशन से भी वंचित देश के 6 करोड़ बुजुर्ग

punjabkesari.in Tuesday, Oct 09, 2018 - 04:20 AM (IST)

‘वल्र्ड इक्विलिटी लैब’ के अनुसार भारत में आर्थिक असमानता 1980 से लगातार बढ़ रही है और देश में आर्थिक विकास के बावजूद पिछले डेढ़ दशक में देश में निर्धनता उन्मूलन में आशा से काफी कम प्रगति हुई है। इस कारण शोषण को बढ़ावा मिला है। वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार रूस के बाद भारत विश्व का सर्वाधिक अर्थिक असमानता वाला देश है। 

केंद्रीय सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के अंतर्गत देश के ग्रामीण इलाकों में दिहाड़ीदार मजदूरों को कम से कम 100 दिन का रोजगार देने की गारंटी का प्रावधान है परंतु इसके अंतर्गत ग्रामीण इलाकों में कोई भी राज्य पूरे 100 दिन का रोजगार नहीं दे पाया और 3 वर्षों में देश में औसतन 45.2 दिन ही रोजगार दिया जा सका है। 

जहां तक देश में बुजुर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का प्रश्र है इस मामले में हमारा देश नेपाल, बोलिविया, बोत्स्वाना, इक्वेडोर तथा अन्य गरीब देशों से भी पीछे है। जहां नेपाल अपनी बुजुर्ग जनसंख्या पर अपनी जी.डी.पी. की 0.7 प्रतिशत राशि खर्च करता है वहीं बोलिविया और लेसोथो भी अपनी जी.डी.पी. का 1.3 प्रतिशत हिस्सा खर्च करते हैं परंतु भारत इस मद में केवल 0.04 प्रतिशत राशि ही खर्च करता है। एन.जी.ओ. हैल्पएज इंडिया द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत की जी.डी.पी. बोलिविया, लेसोथो, नेपाल और इक्वेडोर की तुलना में कम से कम 10 गुणा अधिक है लेकिन बुजुर्गों को दी जाने वाली पैंशन की राशि से इसका कोई मेल नहीं है। 

इस रिपोर्ट के अनुसार हम कम आय वाले देश से ऊपर उठकर कम मध्य आय वाला देश बन गए हैं और हम कुछ महाशक्तियों से भी आगे निकलने की दिशा में बढ़ रहे हैं लेकिन बुजुर्गों के लिए पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा प्रावधान करने के मामले में हम पिछड़े ही दिखाई देते हैं। हाल ही में विश्वभर में मनाए गए वरिष्ठï नागरिक दिवस के अवसर पर जारी की गई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में 8 करोड़ से अधिक बुजुर्ग 200 रुपए मासिक की नाममात्र राशि की पैंशन पाने के ही अधिकारी हैं लेकिन यह भी मात्र 2.23 करोड़ बुजुर्गों को ही मिल रही है तथा लगभग 5.80 करोड़ बुजुर्ग इससे वंचित हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार देश में 93 प्रतिशत श्रम शक्ति असंगठित क्षेत्र से आती है। असंगठित क्षेत्र से आने वाले कर्मचारी देश की जी.डी.पी. में बड़ा योगदान डालते हैं परंतु उन्हें किसी पैंशन योजना में शामिल नहीं किया गया। अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक के अनुसार, ‘‘यह स्थिति किसी स्कैंडल से कम नहीं है। न सिर्फ यह रकम अत्यंत हास्यास्पद है बल्कि लाभपात्र को महंगाई से सुरक्षा का तत्व भी इसमें गायब है। यदि 2018 में स्थिति इस कदर खराब है तो 2026 में क्या हालत होगी जब देश में 60 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों की संख्या 17.3 करोड़ हो जाएगी?’’ इस रिपोर्ट में इस तथ्य की ओर इंगित किया गया है कि किस प्रकार पैंशनरों की सूची में से लाखों बुजुर्गों के नाम हटा दिए गए हैं। बिना कोई कारण बताए बिहार में 10 लाख बुजुर्गों के नाम पैंंशन प्राप्त करने वालों की सूची में से काट दिए गए हैं। 

इसके अलावा ‘डिजीटलाइजेशन’ और ‘आधार’ संबंधी आवश्यकताओं के चलते भी इस सूची से अनेक नाम कट गए हैं। यही नहीं बैंकों के माध्यम से पैंशन वितरण की थोपी हुई व्यवस्था से भी लोगों की मुश्किलें बढ़ी हैं। पहले तो उन्हें बैंक खाता खोलने में दिक्कत आती है और फिर पैंशन प्राप्त करने में। निश्चय ही आज भारत में अधिकांश बुजुर्ग दोहरी मार झेल रहे हैं। यही नहीं जहां कहीं पैंशन मिलती भी है वहां भी बुजुर्गों से अपने जीवित रहने का प्रमाण पत्र लाने आदि की शर्तें पूरी करवाने के कारण उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है जिस पर उनका कुछ खर्चा भी हो जाता है। एक ओर अधिकांश बुजुर्ग संतानों की ओर से उपेक्षित हैं तथा दूसरी ओर सरकार द्वारा दी जाने वाली नाममात्र पैंशन मिलने में भी अनेक अड़चनें होने के कारण उनकी स्थिति और भी दयनीय हो गई है जो सरकार के अर्थिक प्रबंधन की विफलता का ही परिणाम है।—विजय कुमार 


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Pardeep

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