गुजरात के चुनावी चक्रव्यूह से दूर क्यों ‘चाणक्य’

punjabkesari.in Monday, Nov 20, 2017 - 02:00 PM (IST)

नेशनल डेस्क: गुजरात के महासमर में व्यूहरचना का आखिरी दौर शुरू हो गया है, जल्द ही प्रत्याशियों के नाम की घोषणा के साथ कांग्रेस अपने पत्ते खोल देगी। लेकिन इस सबके बावजूद अभी तक गुजरात के सबसे बड़े ‘चाणक्य’ माने जाने वाले अहमद पटेल ने अपना दांव नहीं खेला है। राजनीति के चतुर खिलाड़ी माने जाने वाले अहमद पटेल की गुजरात के सियासी अखाड़े में कम दखलंदाजी को लेकर गुजरात ही नहीं देशभर में कयासबाजी का दौर लगाया जा रहा है।
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का यह तुरुप का इक्का एनवक्त पर भाजपा पर वार करने की योजना बना रहा है, ताकि शाह एंड कंपनी को पलटवार का मौका नहीं मिल सके। हालांकि कांग्रेस के ही एक धड़े में उन्हें मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाए जाने की भी सुगबुगाहट आ रही है। इसमें कितनी सच्चाई है यह कह पाना अभी जल्दबाजी होगी।

यहां बता दें कि इससे पहले हुए चुनावों में गुजरात में अहमद पटेल की तूती बोलती रही है। वह दिल्ली में सबसे ताकतवर नेता रहे, 2004 से 2014 के बीच दिल्ली में अहमद पटेल सरकार में न रहते हुए भी सब कुछ थे। बड़े-बड़े नेताओं को उनसे मिलने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस की सारी कोशिशें नाकाम रही हैं। 2002, 2007 और 2012 के चुनाव में भाजपा की बढ़त बनी रही। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस को लग रहा था कि 2012 के चुनाव में पार्टी जीत के कगार पर थी, लेकिन अहमद का नाम आने से मोदी ने बाजी पलट दी। हालांकि कांग्रेस के खाते में ये उस समय नहीं था कि अहमद पटेल को पार्टी मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। 
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विरोधी बने राहुल के करीबी 
अहमद पटेल ने राज्यसभा चुनाव में अपनी रणनीति और ताकत भी दिखाया कि किस तरह उन्होंने अब के सबसे ताकतवर नेता अमित शाह को पटखनी दी। कांग्रेस में उनके खिलाफ वाला गुट भी राहुल गांधी के करीब हो गया है। माना जा रहा है कि इसी वजह से अहमद पटेल लाइमलाइट से दूर हैं। 

सीएम उम्मीदवार होने की चर्चा 
राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनने मे ज्यादा वक्त नहीं है, राहुल गांधी ने दिखा दिया है कि नए युवा नेता ही उनकी टीम में शामिल होंगे। कांग्रेस ने हाल में ही झारखंड का प्रदेश अध्यक्ष पूर्व आईपीएस अजय कुमार को बनाया और पुराने नेताओं को हाशिए पर ढकेल दिया। न ही सुबोधकांत सहाय की दावेदारी देखी गई न ही प्रदीप बालमूचू जैसे आदिवासी नेता की चली। कांग्रेस अगर भाजपा का किला भेदने में कामयाब हो गई तो अहमद पटेल को सीएम बना सकती है।
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गांधी परिवार से रिश्ता पुराना 
अहमद पटेल का गांधी परिवार से रिश्ता काफी पुराना है। इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव मे इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थीं लेकिन अहमद पटेल भरूच लोकसभा के सांसद बने। राजीव गांधी ने जब नौजवान नेताओं को प्रमोट करना शुरू किया तो अहमद पार्टी के महासचिव बने। 1988 में जवाहरलाल नेहरू के जन्मशती समारोह से पहले जवाहर भवन को पूरा कराने की जिम्मेदारी भी पटेल को दी गई। इससे अहमद पटेल की नजदीकी परिवार से और बढ़ गई। 

बीजेपी के निशाने पर अहमद
बीजेपी को पता है कि अहमद पटेल कांग्रेस की दुखती रग है, जिसकी वजह से सोच समझकर खुद गुजरात के सीएम विजय रूपाणी ने उनके ऊपर आरोप लगाए। इसका खंडन भी किया गया। बीजेपी ने यही तरीका 2012 के विधानसभा चुनाव में अख्तियार किया था। बीजेपी के बड़े नेताओं ने ये कहना शुरू कर दिया था कि अगर कांग्रेस जीतती है तो अहमद पटेल को सीएम बनाएगी। बीजेपी का पत्ता काम कर गया और बीजेपी को भारी बहुमत मिला, अब कांग्रेस के सामने चुनौती है कि इस बार बीजेपी के इस कार्ड का कैसे जवाब देती है।


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