प्लास्टिक बना सबसे बड़ा खतरा

punjabkesari.in Wednesday, Mar 21, 2018 - 08:52 AM (IST)

नेशनल डेस्कः प्लास्टिक अब व्यापक रूप से पर्यावरण में मौजूद है। तटीय किनारों में कचरे के रूप में, झीलों और नदियों, यहां तक कि मिट्टी में भी प्लास्टिक ही दिखाई देता है। हाल ही में पता चला है कि माइक्रो प्लास्टिक के कण ‘सुरक्षित’ बोतलबंद पानी में भी पाए जाते हैं। इससे इस संकट की भयावहता का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। जीवन के लिए प्लास्टिक अब सबसे बड़ा खतरा बन चुका है।

समस्या
भोजन, पानी और हवा में प्लास्टिक

भोजन, पीने के पानी और सांस लेने के लिए हवा में पॉलीथिन टेरेफेथलेट और अन्य रसायनों की मौजूदगी अभी तक स्पष्ट नहीं हो सकी है लेकिन शोध इस बात की ओर इंगित करते हैं कि इन रसायनों के संचय से शरीर का इम्यून सिस्टम गड़बड़ा सकता है।  

5 एम.एम. से कम माइक्रो प्लास्टिक्स के कण पर्यावरण में
प्राथमिक औद्योगिक उत्पादों से निकलने वाले 5 एम.एम. से कम माइक्रो प्लास्टिक्स के कण पर्यावरण में मौजूद हैं। यही नहीं, उपभोक्ता स्क्रबर्स और प्रसाधन सामग्री में इस्तेमाल होने वाले या शहरी अपशिष्ट जल को भी यूं ही फैंक देते हैं। कपड़े धोने से जल निकायों और समुद्र में सिंथैटिक माइक्रोफाइबर्स घुल जाते हैं। पॉलीप्रोपीलीन की उपस्थिति से स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

8 लाख टन कचरा हर साल पहुंचता समुद्र में
समस्या चौंका देने वाली है कि हर साल बोतलों और पैकेजिंग का 8 लाख टन कचरा समुद्र तक पहुंच जाता है। प्लास्टिक के मलबे का बड़ा भाग प्रशांत महासागर में मौजूद है। भारत में प्लास्टिक को लेकर बड़ी समस्या यह है कि एकल उपयोग शॉपिंग बैग अन्य कचरे के साथ डम्पिंग साइटों, नदियों और झीलों तक पहुंच जाता है।

बचने के उपाय
प्रदूषण से निपटने का सबसे कारगर तरीका यही हो सकता है कि प्लास्टिक का उत्पादन और वितरण कंट्रोल किया जाए। सिंगल उपयोग बैग पर प्रतिबंध लगाकर उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर अधिक टिकाऊ बैग उपलब्ध करवाए जाएं।

ऐसे होगा पर्यावरण का बोझ कम
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 को लागू करने के लिए इस साल 8 अप्रैल को कचरे के पृथक्करण की आवश्यकता पर बल दिया गया था। इसके अनुसार पर्यावरण पर बोझ को कम करने के लिए वेस्ट सामग्री को रिसाइकिल कर पुन: उपयोग में लाना होगा। समुदाय की सांझेदारी से अपशिष्ट का पृथक्करण किया जा सकता है और इससे रोजगार के अवसर भी मुहैया हो सकते हैं। हालांकि यह लक्ष्य दीर्घकालिक है।

यूरोपीय संघ का विजन 2030
प्लास्टिक की अर्थव्यवस्था को लेकर यूरोपीय संघ ने विजन 2030 जारी किया है। इसके अनुसार सस्ते और डिस्पोजेबल से टिकाऊ और पुन: प्रयोज्य के रूप में प्लास्टिक की प्रकृति को बदला नहीं जा सकता, क्योंकि अब बोतल बंद सहित पीने के पानी में भी प्लास्टिक है। सरकारों को यह समझना चाहिए कि यह व्यवसाय नहीं हो सकता है।

300 मिलियन टन वैश्विक उत्पादन
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार इसमें कोई संदेह नहीं कि प्लास्टिक का हर साल वैश्विक उत्पादन 300 मिलियन टन से अधिक है। कचरे के रूप में फैंके जाने वाले वेस्ट को नियंत्रित करने में सरकारें असमर्थ हैं।

डब्ल्यू.एच.ओ. आया आगे
खुशी इस बात की है कि पीने के पानी में प्लास्टिक की मौजूदगी से स्वास्थ्य पर पडऩे वाले प्रभाव की समीक्षा करने के लिए डब्ल्यू.एच.ओ. आगे आ गया है।

सब लें संकल्प
नैरोबी में पिछले साल दिसम्बर में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने समुद्री वातावरण में प्लास्टिक की मौजूदगी से निपटने का संकल्प लेकर 18 महीने का समझौता किया था। ऐसा ही संकल्प हर किसी को लेना होगा।


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