डगमगाती जीवन-नौका को बचाना है तो चिंताओं के बोझ को निकाल फैंकें

punjabkesari.in Tuesday, Nov 14, 2017 - 03:03 PM (IST)

जब भी किसी नाव पर उसकी क्षमता से ज्यादा सामान लद जाता है तो वह डगमगाने लगती है। ऐसी स्थिति में नौका को डूबने से बचाने के लिए उसमें लदे हुए सामान में से कुछ सामान नीचे उतार देना जरूरी हो जाता है। सामान कम होने पर नौका के डूबने की आशंका नहीं रहती। यदि सारा सामान ही एक जैसा हो तो कोई भी सामान बाहर फैंका जा सकता है लेकिन यदि सामान कई तरह का हो तो प्रश्न उठता है कि कौन-सा सामान नौका के बाहर फैंका जाए। स्वाभाविक है कि उसी सामान को सबसे पहले बाहर फैंका जाएगा जो या तो बेकार हो या फिर सबसे सस्ता हो।  

 

हमारी जीवन-नौका की भी कमोबेश यही स्थिति होती है। वह भी जब डगमगाने लगती है तो उसमें लदा हुआ फालतू सामान उतार फैंकना जरूरी हो जाता है, ताकि वह आसानी से अपने गंतव्य तक पहुंच सके। अब प्रश्न उठता है कि यह कैसे तय किया जाए कि हमारी जीवन-नौका में कौन-सा सामान फालतू है, जिसे उतार फैंकना जरूरी हो और कौन-सा सामान कीमती है, जिसे हर हाल में बचा कर रखना आवश्यक हो।

 

जीवन में चिंताएं स्वाभाविक हैं लेकिन अक्सर हम फालतू चिंताएं भी पाल लेते हैं, जिनका हमारे जीवन से कुछ लेना-देना नहीं होता। यदि हम इन चिंताओं से मुक्त नहीं हो पाते तो ऐसी निरर्थक चिंताओं का भार हमारी जीवन-नौका के सुचारू प्रवाह में व्यवधान उत्पन्न कर देता है।

 

इसके अलावा जितने भी नकारात्मक विचार अथवा विकार हममें उत्पन्न हो जाते हैं, वे सब हमारी जीवन-नौका को आगे बढने से रोकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने गुण-दोषों का सही विश्लेषण करके व्याप्त दोषों से यथाशीघ्र मुक्त होने का प्रयास करें। साथ ही सचेत रहें कि हमारे अवगुण तो चले जाएं लेकिन सद्गुण किसी भी तरह से कम न होने पाएं। 

 

धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष, ये चार पुरुषार्थ माने गए हैं। इन चारों का ही हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। किसी की भी उपेक्षा करने का सीधा-सा अर्थ है जीवन में असंतुलन। इन्हीं के असंतुलन के कारण हमारी जीवन-नौका डगमगाने लगती है। जीवन रूपी नौका को डूबने से बचाने व उसे सही सलामत पार ले जाने के लिए दुर्गुणों के भार से मुक्ति व कार्यों में संतुलन के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय हो ही नहीं सकता।
 


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