इस ऋण से मुक्ति के लिए हिंदू धर्म में निभाई जाती है श्राद्ध परंपरा

punjabkesari.in Wednesday, Sep 06, 2017 - 11:48 AM (IST)

श्राद्ध पितृत्व के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। सनातन धर्मानुसार प्रत्येक शुभ कार्य के आरंभ करने से पहले मां-बाप तथा पितृगण को प्रणाम करना हमारा धर्म है। क्योंकि हमारे पुरखों की वंश परंपरा के कारण ही हम आज जीवित हैं। सनातन धर्म के मतानुसार हमारे ऋषि-मुनियों ने हिंदू वर्ष में सम्पादित 24 पक्षों में से एक पक्ष को पितृपक्ष अर्थात श्राद्धपक्ष का नाम दिया। पितृपक्ष में हम अपने पितृगण का श्राद्धकर्म, अर्ध्य, तर्पण तथा पिण्डदान के माध्यम से विशेष क्रिया संपन्न कर करते हैं। धर्मानुसार पितृगण की आत्मा को मुक्ति तथा शांति प्रदान करने हेतु विशिष्ट कर्मकाण्ड को 'श्राद्ध' कहते हैं।


पितृऋण से मुक्ति: शास्त्र कहते हैं की पितृऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध से बढ़कर कोई कर्म नहीं है। श्राद्धकर्म का अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में सर्वाधिक महत्व कहा गया है। इस समय सूर्य पृथ्वी के नजदीक रहते हैं, जिससे पृथ्वी पर पितृगण का प्रभाव अधिक पड़ता है इसलिए इस पक्ष में कर्म को महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों के अनुसार एक श्लोक इस प्रकार है।


श्लोक: एवं विधानतः श्राद्धं कुर्यात्‌ स्वविभावोचितम्‌। आब्रह्मस्तम्बपर्यंतं जगत्‌ प्रीणाति मानवः॥


अर्थात् जो व्यक्ति विधिपूर्वक श्राद्ध करता है, वह ब्रह्मा से लेकर घास तक सभी प्राणियों को संतृप्त कर देता है तथा अपने पूर्वजों के ऋण से मुक्ति पाता है। अतः स्वयं पर पितृत्व के कर्जों के मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com


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