अपने घर को बनाएं ‘फूलों का नगर’, संपन्नता और खुशहाली सदा करेंगी वास

punjabkesari.in Thursday, Jun 29, 2017 - 03:43 PM (IST)

गुरु जी के यहां बहुत से राजकुमार शिक्षा प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से आते थे और गुरुकुल में रहा करते थे। गुरु जी सभी शिष्यों को समान रूप से प्रेम करते और उनमें किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करते थे। यूं तो सभी उनकी बहुत सेवा करते थे पर अमृत और शांतनु दिन-रात की परवाह किए बगैर आश्रम का कार्य किया करते। जब उनकी शिक्षा पूरी हो गई और आश्रम छोडऩे का समय आया तो गुरु जी ने उन दोनों को बुलाकर कहा, ‘‘मैं तुम दोनों से बहुत प्रसन्न हूं, इसलिए तुम्हें दो बातें बता रहा हूं-अगर तुम इन पर अमल करोगे, तो तुम्हारे राज्य में सदा संपन्नता और खुशहाली रहेगी।’’


दोनों राजकुमार एक साथ बोले, ‘‘हम आपकी आज्ञा अवश्य मानेंगे।’’


गुरु जी मुस्कुराकर बोले, ‘‘तुम दोनों जहां तक हो युद्ध टालने की कोशिश करना, अहिंसा का मार्ग अपनाना और सदा प्रकृति की रक्षा करना।’’ 


दोनों राजकुमारों ने सहर्ष हामी भर दी और अपने-अपने राज्य की ओर चल पड़े।
शांतनु ने कुछ दिन तक तो गुरु जी की आज्ञा का पालन किया परंतु राजा बनते ही उसने शिकार पर जाना शुरू कर दिया। हरे-भरे वृक्षों को कटवाकर उसने कई नगर बसाए। धीरे-धीरे उसके राज्य में गिने-चुने पेड़ ही बाकी रह गए जिसकी वजह से पर्यावरण अंसतुलित हो गया और बारिश न के बराबर होने लगी और आए दिन सूखा पडऩे लगा। 


दूसरी ओर अमृत को अपना वचन याद था। उसने राजा बनते ही शिकार पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया और जगह-जगह पेड़ लगवाने शुरू कर दिए। वह जब भी कोई खाली जमीन पड़ी देखता तो वहां पर फूलों के बीज डाल देता और कुछ ही दिनों बाद वहां रंग-बिरंगे सुंदर फूल उग जाते। प्रजा भी अपने राजा को पूरा सहयोग करती और बच्चे से लेकर बूढ़े-कोई भी फूलों को नहीं तोड़ता था।


फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियां मंडराया करतीं और लोग ठगे से इस मनोरम दृश्य को देखने लगते। अमृत एक दिन बराबर में बैठा अपनी प्रजा के बारे में बात कर रहा था तभी एक दूत दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘महाराज, राजा शांतनु ने हमारे राज्य पर आक्रमण करने की योजना बनाई है और वह अपनी विशाल सेना सहित युद्ध करने के लिए दो दिन में आ जाएगा।’’ 


यह सुनकर अमृत परेशान होता हुआ बोला, ‘‘युद्ध होने से तो हजारों सैनिक मारे जाएंगे और मासूम प्रजा भी बर्बाद हो जाएगी।’’


इस पर महामंत्री विनम्र शब्दों में बोला, ‘‘परंतु महाराज, अगर हम युद्ध नहीं करेंगे तो वह हम सबको बंदी बना लेगा।’’ 


यह सुनकर अमृत के मुख पर चिंता की लकीरें उभर आईं और वह बिना कुछ कहे अपने कक्ष में चला गया। बिना कुछ खाए-पिए वह सारी रात और सारा दिन सोचता रहा कि युद्ध को कैसे टाला जाए।


सुबह की पहली किरण के साथ ही वह उठकर बगीचे में चले गए। रंग-बिरंगे फूलों से लदे हुए वृक्षों को देखकर अचानक उनके मन में एक विचार आया और उन्होंने तुरंत महामंत्री को बुलाकर अपनी योजना समझा दी। महामंत्री का चेहरा भी अमृत के साथ खुशी से खिल उठा। इसके बाद राजा आराम से सोने चला गया।


शाम के समय राजा शांतनु ने राज्य की सीमा में अपने हजारों सैनिकों के साथ प्रवेश किया और नगर की खूबसूरती देखकर अचंभित रह गया। चारों तरफ हरे-भरे पेड़ हवा के साथ झूम रहे थे। मोगरा, बेला और चमेली की कलियां चटख रही थीं तथा चारों ओर भीनी-भीनी सुगंध आ रही थी। मालती के गुच्छे लता के सहारे दीवारों पर चढ़े हुए बहुत ही सुंदर लग रहे थे। उसे कुछ पलों के लिए ऐसा लगा मानो वह किसी फूलों के जादुई संसार में आ गया हो। 

 

तभी उसके सेनापति ने कहा, ‘‘महाराज, अब हमें आक्रमण करना चाहिए।’’ 

 

‘‘हां-हां क्यों नहीं।’’कहता हुआ शांतनु आगे की ओर बढ़ा। 


जैसे ही सैनिकों ने तलवारें म्यान से निकालीं और प्रजा को मारने के लिए आगे बढ़े, लाखों मधुमक्खियों ने उन पर धावा बोल दिया। अब उनकी तलवारें भी किसी काम की नहीं रहीं। मधुमक्खियों ने पूरी सेना को काट-काट कर लहू-लुहान कर दिया। वे जान बचाने के लिए वापस भागे। 


इसी बीच शांतनु को भी मधुमक्खियों ने चेहरे पर काट लिया और उसका मुंह सूजकर गुब्बारे की तरह हो गया। अचानक उसका संतुलन बिगड़ गया और वह घोड़े से नीचे गिर पड़ा। उसका सिर किसी नुकीली वस्तु से टकराया और वह बेहोश हो गया। 
जब उसे होश आया तो वह अमृत के राजमहल में था और अमृत उसके माथे पर प्यार से हाथ फेर रहा था। उसकी आंखों से आंसू बह निकले। 


वह रुंधे गले से बोला, ‘‘मैं तुम्हें जान से मारने आया था और तुम्हीं ने मेरी जान बचाई है।’’ 


अमृत उसके आंसू पोंछते हुए बोला, ‘‘मैंने हमेशा गुरु जी की सीख पर अमल किया है। अहिंसा ही मेरा धर्म है।’’


यह सुनकर शांतनु शर्मिंदा होते हुए बोला, ‘‘पर जब तुम्हें पता था कि मैं तुम पर आक्रमण करने वाला हूं तो तुम अपनी सेना लेकर मुझसे युद्ध करने क्यों नहीं आए?’’ 


इस पर अमृत मुस्कुराता हुआ बोला, ‘‘मेरी मधुमक्खियों की सेना गई तो थी तुमसे लडऩे और देखो उन्होंने मेरे वर्षों पुराने मित्र को एक बार फिर मुझसे मिला दिया।’’


अमृत ने शांतनु के चेहरे पर अचरज के भाव देखकर कहा, ‘‘तुमने देखा कि मेरे राज्य में हर कदम पर वृक्ष फूलों से लदे हुए हैं और उनमें सैंकड़ों मधुमक्खियों ने अपने छत्ते बनाए हुए हैं। जब तुम्हारी सेना आई तो मेरे सैनिकों ने गुलेलों से छत्तों पर पत्थर मारे और छिप गए। और गुस्से में वे सारी मधुमक्खियां तुम लोगों पर टूट पड़ीं।’’


शांतनु अमृत की दूरदर्शिता और सूझबूझ देखकर हैरान रह गया और बोला, ‘‘मुझे माफ कर दो और अब मैं चलता हूं।’’ 


यह सुनकर अमृत बड़े प्यार से बोला, ‘‘मैं तुम्हें खाली हाथ नहीं जाने दूंगा क्योंकि मैं तुम्हारे राज्य की सारी स्थिति जानता हूं, तुम जितना चाहे उतना धन ले जा सकते हो और कई बोरों में फूलों के बीज भी हैं उन्हें तुम मिट्टी में दबा देना ताकि जब मैं तुम्हारे यहां आऊं तो तुम्हारे राज्य को खूब हरा-भरा पाऊं।’’ 


शांतनु अमृत का प्यार देखकर खुशी के मारे रो पड़ा और बोला, ‘‘मैं भी अपने राज्य को तुम्हारे जैसा ही ‘फूलों का नगर’ बनाऊंगा।’’ और दोनों मित्र खिलखिला कर जोर से हंस पड़े।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News