जानिए,आचार्य चाणक्य के बारे में कुछ ऐसे तथ्य,जिनसे अधिकतर लोग हैं अनभिज्ञ

punjabkesari.in Friday, Feb 10, 2017 - 11:33 AM (IST)

आचार्य चाणक्य जीवन दर्शन के ज्ञाता थे। उन्होंने जीवन में जो अनुभव प्राप्त किया उसका चाणक्य नीति में उल्लेख किया। चाणक्य की नीतियों पर अमल करके व्यक्ति खुशहाल जीवन यापन कर सकता है। आचार्य चाणक्य को कौटिल्य भी कहा जाता था। चाणक्य की नीतियों के बारे में तो अधिकतर लोग जानते हें, लेकिन उनके जीवन से जुड़े कुछ पहलू हैं, जिनके बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं। जानिए, चाणक्य के जीवन के कुछ रोचक तथ्य-

आचार्य चाणक्य के मुंह में उनके जन्म के समय से ही एक दांत था। कुछ दिनों के बाद उनके घर जैन मुनि पहुंचे थे। जिन्होंने चाणक्य का दांत देखकर कहा था कि ये बालक राजा बनेगा। 

 

मुनि की बात सुनकर चाणक्य के माता-पिता ने घबरा कर उनसे कहा कि वे चाहते हैं कि उनका पुत्र जैन मुनि या आचार्य बने। उनकी बातें सुन मुनि ने कहा इसका ये दांत निकलवा दीजिए फिर ये राजा का निर्माता बनेगा। 

 

आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को उसके मामा से धन देकर खरीदा था क्योंकि उसका मामा उससे काम करवाता था अौर बिना धन दिए उसे छोड़ने को तैयार नहीं था। 

 

आचार्य चाणक्य के दो अौर नाम भी थे। जिनसे उन्हें इतिहास में जाना जाता है। वे नाम हैं विष्णु गुप्त अौर कौटिल्य। विद्वानों का मानना है कि विष्णु गुप्त चाणक्य का मूल नाम था।

 

कौटिल्य ऐसे पहले विचारक थे, जिन्होंने कहा था कि राज्य अपना विधान यानी संविधान खुद बनाए। लगभग 2300 वर्ष पहले संविधान का ये पहला विचार कौटिल्य का था। तब कही और इसकी कल्पना भी नहीं की गई थी।

 

कौटिल्य के ऊपर बिंदुसार की माता की हत्या का झूठा आरोप लगने पर उन्होंने आहत होकर अपने पद को छोड़ दिया था। जो आरोप बाद में गलत साबित हुआ।

 

आचर्य चाणक्य के जन्म स्थान के बारे में प्राचीन जैन ग्रंथ परिशिष्ट पर्व के अनुसार गोल्य नाम के जनपद में हुआ था। उनके पिता का नाम चणक व माता का नाम चणेश्वरी था।

 

आचार्य चाणक्य ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए एक ऑडिटिंग सिस्टम लागू करने की बात कही थी। इसके साथ ही उन्होंने कर्मचारी अौर अधिकारियों को एक ही विभाग में लंबे समय तक न रखने की बात भी कही। 

 

कौटिल्य का अर्थशास्त्र राज्य चलाने अर्थात संविधान का ब्लू प्रिंट था, लेकिन उनके पास न राज्य था और न राजा इसलिए उन्हें एक योग्य व्यक्ति की तलाश थी। जो चन्द्रगुप्त के रूप में पूरी हुई।

 

चाणक्य चंद्रगुप्त को भोजन में बहुत कम मात्रा में जहर भी देते थे क्योंकि चाणक्य चाहते थे की चंद्रगुप्त शत्रु द्वारा किए जाने वाले किसी भी जहरीले आघात का सामना कर सके।
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News