शुभ संदेश या सुखद भविष्य की सूचना देता है पशु-पक्षियों का दिखाई देना

punjabkesari.in Thursday, Jan 05, 2017 - 09:45 AM (IST)

भारतवर्ष हिंदू संस्कृति से तथा हिंदू संस्कृति में ज्योतिष अपने आप में एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। सदियों से ज्योतिष की अखंड ज्योति प्रज्वलित हो रही है। उसकी ज्योति राज्यकालीन पृष्ठावलोकन से कभी घटी और कभी अत्यधिक बढ़ी है। इसके प्रत्यक्ष प्रमाण के लिए प्राचीन इतिहास साक्षी है। आज से हजारों वर्ष पूर्व वेदों का निर्माण हुआ, वेदों में ऋग्वेद सर्व प्राचीन माना जाता है। ऋग्वेद में ज्योतिष को समुचित स्थान मिला है।


वेद काल में प्रत्येक मांगलिक कार्य, शुभ कार्य, धार्मिक कार्य से लेकर अन्य सभी कार्य इसके बिना होते नहीं थे। यहां तक कि स्त्रियां शुभ घड़ी में ही बाल धोती, केश विन्यास करती थीं। घर से बाहर जाने के लिए शुभ समय की प्रतीक्षा की जाती थी और शुभ समय में घर से बाहर जाया जाता था।


धार्मिक कार्यों में ज्योतिष का प्रयोग होने से यह केवल पुरोहितों की विद्या मात्र रह गई। फलस्वरूप प्रत्येक धर्म के व्यक्ति इसे नहीं अपना सके परन्तु यह विचार शनै: शनै: समाप्त होता जा रहा है। प्रत्येक धर्म आज इसे विज्ञान की दृष्टि से प्रयोग में लाने लगा है। वास्तविक पहलू भी यही है। इसे विज्ञान ही माना जाना युक्तियुक्त है क्योंकि यह शास्त्र गणित पर आधारित है। जहां तक ज्योतिष गणित द्वारा फलादेश का प्रश्र है, वह अपने स्थान पर प्रामाणिक है। 


पशु-पक्षियों द्वारा भविष्य ज्ञान
पुराविदों ने पशु-पशियों द्वारा भविष्य ज्ञान की ओर संकेत दिया है। पशु-पक्षियों का समय विशेष पर दिखाई देना तथा वाणी द्वारा भविष्य का संकेत करना भी शत-प्रतिशत सही देखा गया है। तब हमें पुराविदों के ज्ञानर्जन पर गर्व होता है। आज भी यह ज्ञान यथावत ग्रहण किया जाता है। यदि इस ज्ञान में कोई तथ्य न होता तो किसी विशेष काल तक ही यह प्रयोगात्मक होता।


पुराविदों ने कुछ पशु-पक्षियों को अनिष्ट फल का कारक माना है तथा कुछ को शुभ संदेश का। प्रात:काल की बेला में कौआ दिख जाने पर दिन-भर परेशानी का द्योतक होता है तथा किसी विशिष्ट दिशा की ओर संकेत शब्द ध्वनि करना उस दिशा से भावी घटना होने की सूचना देता है। कौवे का स्पर्श भी अनिष्ट फलकारक होता है। पशु-पक्षी इसके लिए दोषी नहीं कहला सकते, उनके संस्कार और उनका जीवन ही ऐसा है। जैसे कौओं का भोजन पदार्थ मृत जीवों से तथा जीवित पशुओं से होता है। 


 ‘कुत्ता’ एक वफादार पशु माना जाता है। अनेक घरों में उसका निवास होता ही है परन्तु वह कभी भावी सूचना के लिए किसी समय विशेष पर विशेष वाणी का प्रयोग करता है, कान फडफ़ड़ाने लग जाता है तो वह व्यक्ति को घटना का संकेत करता है, तब भी यदि व्यक्ति सतर्क न हो तो उस पशु को दोषी ठहराया जाना कहां तक न्याय सिद्ध होगा? कुत्ता इस प्रकार के शब्द व हाव-भाव तभी प्रकट करता है, जब घटना शीघ्र ही होने वाली हो। शीघ्र घटना की सूचना या भावी संदेश इसके द्वारा मिलते हैं।


‘बिल्ली’ वैसे बहुत ही कोमल देह की होती है परन्तु उसके नेत्र बहुत डरावने होते हैं। वह भी भावी आकस्मिक घटना की सूचक है। किसी व्यक्ति के घर के बाहर निकलते ही यदि बिल्ली रास्ता काट कर भाग जाए तो निश्चित ही उस कार्य विशेष में बाधा उत्पन्न होगी तथा मार्ग में घटना स्थिति भी होना संभावित है।


इसी प्रकार कुछ पशु-पक्षियों का दिखाई देना शुभ संदेश या सुखद भविष्य की सूचना देते हैं। ऐसे ही प्रात:काल घर से बाहर निकलते समय गाय का दिखाई देना शुभ व सफलता की सूचना देता है। पक्षियों में तोते, कबूतर, हंस और मोर का दिखाई देना शुभ माना जाता है।


पशुओं में गाय, हिरण, खरगोश के अतिरिक्त जिनके देखने मात्र से सुखद वातावरण निर्मित हो, वे सभी पशु तात्कालिक लाभ व सफलता के सूचक होते हैं परन्तु शेर, भैंस या बैल के दिखाई देने से परेशानी, अकस्मात दुर्घटना अथवा कार्य में विघ्न होना संभावित है। उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि हमारे प्राचीन ज्योतिष शास्त्र में पशु-पक्षियों द्वारा भी भविष्य फल कथन के संकेत प्राप्त होते हैं। इन तथ्यों को हम अपने जीवन में कभी भी अपनाकर देख सकते हैं।


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