अपने लोकतंत्र के प्रति पूर्ण संवेदनशीलता, खुले मन व पूरी निष्ठा से स्वयं को समर्पित करने का दिन

punjabkesari.in Monday, Aug 15, 2016 - 01:19 AM (IST)

आज भारत 70 वर्ष का हो गया है। इन सात दशकों में हमारे राजनीतिक  दलों, अर्थ तंत्र, कार्यकारिणी के कामकाज में बड़े बदलाव आए हैं। ये बदलाव अवश्यंभावी थे और कुछ बेहद जरूरी भी। हालांकि, इस बीच लोकतंत्र तथा एक राष्ट्र के रूप में एकजुट रहने की हमारी भावना आज भी यथावत है। 

कई झटकों तथा खींचतान की इस भावना को कई बार आजमाया गया। कई बार हिंसक, क्रोधी व दिशाहीन ताकतों ने हमारे राष्ट्र की बुनियाद को लगभग हिला दिया परंतु हमने अपना अस्तित्व कायम रखा। 

यहीं यह महत्वपूर्ण प्रश्न हमारे समक्ष आ जाता है कि क्या हम केवल किसी तरह से अपना ‘अस्तित्व बचाए’ रख कर ही संतुष्ट हैं या हम ‘फलना-फूलना’ भी चाहते हैं? क्या हम फिर से अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहेंगे या हिंसा का मार्ग अपनाने से असहमत होते हुए बहुलतावादी संस्कृति के स्थान पर एकलवादी (सिंगुलर) समाज का निर्माण करना चाहते हैं? सभी को साथ लेकर चलने या कइयों को अलग करने की राह पर हम चलेंगे? 

 
प्रत्येक राष्ट्र की राह में कभी न कभी वह समय आता है जब उसे अपने आप में नयापन लाना पड़ता है परंतु इसे किस तरह से अंजाम दिया जाए यह एक महत्वपूर्ण सवाल है।
 
रणनीतिकार (स्ट्रैटेजिस्ट) मार्टिन रीव्स तथा इकोलॉजी व इवोल्यूशन बायोलॉजी के प्रोफैसर सिमोन लेवन ने हाल ही में विभिन्न पारिस्थितिकियों के जीवित रहने के कारणों का अध्ययन करते हुए इसके लिए कुछ आवश्यक गुणों की सूची तैयार की है। वास्तव में उन्होंने इन नियमों को कारोबार से लेकर देशों तक पर लागू करके देखा और पाया कि वे एक समान रूप से दोनों ही जगहों पर काम करते हैं। 
 
मानव प्रतिरोधी तंत्र का अध्ययन करते हुए उन्होंने पाया कि हमारे शरीर के 6 प्रमुख गुण हैं। बहुतायत, विविधता, अनुकूलन, दूरदर्शिता, जुड़ाव तथा आरोह-अवरोह में समभाव।
 
उन्होंने पाया कि जो व्यक्ति अथवा कम्पनियां अपना अस्तित्व बचा सकी थीं उनमें कई प्रकार की प्रणालियों की बहुतायत थी। उनके पास ये प्रणालियां आपात स्थिति या संकट आने से पहले से मौजूद थीं तथा एक के काम न करने पर उन्हें दूसरी से मदद मिल सकती थी। हमारे शरीर में रोगों से लडऩे के लिए टी सैल, बी सैल, नैचुरल किलर सैल से लेकर एंटीबॉडीज होते हैं। वास्तव में हमारा शरीर किसी नए रोग का प्रतिरोध करने के अलावा पुराने रोगों की जानकारी को भी सहेज कर रखता है ताकि उन रोगों के दोबारा होने पर उनका सामना बेहतर ढंग से किया जा सके। 
 
कोरिया में 1400 वर्ष पहले स्थापित तथा बौद्ध मंदिरों का निर्माण करने वाली एक जापानी कंस्ट्रक्शन कम्पनी ‘कोंगो गूमी कम्पनी लिमिटेड’ का अध्ययन करते हुए उन्होंने पाया कि 100 कर्मचारियों तथा 10 मिलियन डॉलर रैवेन्यू का यह पारिवारिक स्वामित्व वाला बिजनैस 39वीं पीढ़ी में जाकर बिका। वह भी इसलिए क्योंकि इसने बुद्धिमानी से अपने आॢथक तंत्र को आधुनिक रूप नहीं दिया था। 
 
जनवरी 2012 में कोडक कम्पनी के बंद होने तथा इसकी प्रतियोगी फूजी कम्पनी के बचे रहने का भी उन्होंने अध्ययन किया तो पाया कि दूरदर्शिता भी एक आवश्यक गुण है। फूजी तेजी से हुए तकनीकी बदलावों में भी टिकी रह गई क्योंकि उसने कैमिस्ट्री, मैटीरियल साइंस एवं ऑप्टिक्स के अपने ज्ञान का नए सिरे से प्रयोग किया था। उसने कॉस्मैटिक फार्मेसी में नए उत्पाद लांच किए। इनमें से कुछ उत्पाद चल निकले तथा कुछ नहीं चले परंतु कम्पनी का अस्तित्व बरकरार रहा। 
 
तो इस सारी सीख का प्रयोग हम अपने राष्ट्र की कहानी में कैसे कर सकते हैं? हमें विविधता को अपनाना होगा ताकि हर किसी के अनुभव का मोल पड़े, हमें बदलावों के प्रति खुला दृष्टिकोण रखना होगा ताकि नए आविष्कार हो सकें और उन्हें स्वीकार किया जा सके। हमें प्रभावी भी बनना होगा ताकि  विकास हर किसी तक पहुंच सके। 
 
ये वे सामान्य बातें हैं जिनको कोई भी देश अथवा प्रतिष्ठान अपनाना चाहेगा, परंतु हमारे जैसे विविधतापूर्ण देश में इन्हें लागू किस प्रकार करना है, यह विचारणीय विषय है। भारत अपना अस्तित्व बनाए रखने वाला विश्व का सबसे पुराना देश है और हमने स्वयं की कई बार पुनर्खोज की है। हमारे ऊपर तभी दूसरे लोग विजय पा सके हैं जब हमने नए विचारों और नई अवधारणाओं की ओर से अपने मन-मस्तिष्क को मूंद लिया। अत: आज के शुभ दिन हम सब को पूर्ण संवेदनशीलता और खुले मन के साथ यह शुभ संकल्प करने की आवश्यकता है कि हम पूरी निष्ठा के साथ स्वयं को अपने लोकतंत्र के प्रति समर्पित करेंगे।
 

सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News