वास्तु नियमों के पालन से साधारण सा उद्योग भी नई ऊंचाइयां प्राप्त करेगा, आजमाएं

punjabkesari.in Friday, Sep 30, 2016 - 03:17 PM (IST)

वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों का पालन करते हुए यदि आप अपनी फैक्टरी व्यावसायिक संस्थान का निर्माण कराएं तो फैक्टरी की आर्थिक प्रगति होगी, उत्पादन बढ़ेगा एवं श्रमिक वर्ग में संतोष बना रहेगा। भूमि चयन एवं भूखंड के आकार से लेकर मुख्य द्वार, मशीनरी, गोदाम, कच्चा माल, अद्र्धनिर्मित व निर्मित उत्पाद, विक्रय व्यवस्था, विद्युत व्यवस्था, श्रमिकों का आराम स्थल एवं निवास इत्यादि प्रत्येक भाग को वास्तु के नियमानुसार बनाने का उत्तम फल मिलता है। 


वास्तु के नियमों के पालन से साधारण सा उद्योग भी नई ऊंचाइयां प्राप्त कर लेता है जबकि पर्याप्त वित्तीय पोषण व प्रबंधकीय योग्यताओं के बावजूद कई इकाइयां घाटा उठाने लगती हैं क्योंकि वास्तु के नियमों का उल्लंघन उनमें मिलता है।


ऊर्जा के संरक्षण का सिद्धांत वास्तु यद्यपि वास्तु पुरुष व विश्वकर्मा पौराणिक संदर्भ है परन्तु इनके मूल में औद्योगिक भूखंड में प्रकृति के ऊर्जा स्रोतों से भरपूर ऊर्जा प्राप्त करके उसे संरक्षित करने व फिर उसे यथासमय व यथास्थान प्रयुक्त करने के उद्देश्य निहित हैं जिसने इस भेद को जान लिया वह असफल हो ही नहीं सकता। सूर्य, ऊर्जा, पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति, भूगर्भीय ऊर्जा, वायुमंडल वर्टिकल वेव्ज, घर्षण व गति के नियम सबका प्रचुर इस्तेमाल करके उचित अनुपात में इनके प्रयोग की व्यवस्था की जाती है।


मुख्य संरचनाएं : भूखंड के उत्तर व पूर्व भाग में यथासंभव खुला स्थान छोड़ें। उत्तर व ईशान कोण में भारी निर्माण करने से संस्था या फैक्टरी के वित्तीय प्रबंध बिगड़ जाते हैं। यदि अग्रि कोण को भारी निर्माण करके असंतुलित कर देंगे तो श्रमिकों से संबंधित समस्याएं उठ खड़ी होंगी। दक्षिण व पश्चिम दिशा में निर्माण भारी करेंगे तो उद्योग में सफलता की संभावना बढ़ जाती है। दक्षिण-पश्चिम भाग, नैऋत्य कोण में भारी निर्माण शुभ परिणाम देते हैं। दक्षिण के निर्माण उत्तर से भारी हो व पश्चिम के निर्माण पूर्व से भारी हों तो शुभ होते हैं।


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