यह किस्मत की पोटली खोल सकती है धन के द्वार

punjabkesari.in Monday, Oct 26, 2015 - 04:17 PM (IST)

शास्त्रों में लक्ष्मी प्राप्ति के लिए चार प्रमुख दिन बताए गए हैं। यह साल के वो चार ऐसे महूर्त हैं जब धन की देवी माहलक्ष्मी स्वयं धरती पर विचरती हैं। साल का पहला महूर्त होता है अक्षय तृतिया, साल का दूसरा महूर्त है शरद पूर्णिमा, साल का तीसरा महूर्त है कार्तिक अमावस्या अर्थात दीपावली और साल का चौथा महूर्त है कार्तिक पुर्णिमा अर्थात देव दीपावली। यह चार ऐसे महूर्त हैं जिस पर देवी महालक्ष्मी अपने वरद हस्तों से खुलकर समस्त संसार पर धन वर्षा करती हैं परंतु शास्त्रों में लक्ष्मी को चपला कहा गया है अर्थात धन की देवी कहीं टिकती नहीं है। पौराणिक व तंत्र शास्त्रों में धन की देवी की स्थिर रखने के लिए अनेक यतन, प्रयास व अनुष्ठान बताए गए हैं। परंतु यह अनुष्ठान व प्रयास अत्यंत कठिन व ख़र्चीले हैं जिसे आज के बिज़ी मॉडर्न टाइम में आम व्यक्ति के लिए करना लगभग असंभव जैसा है परंतु पौराणिक व तंत्र शास्त्रों में धन की देवी को अपने घर व प्रतिष्ठान में स्थिर रखने के लिए कुछ सरल उपाय व सामाग्री भी बताई गई है।

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इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को बताते हैं की कैसे इस दुर्लभ सामाग्री को हम किस्मत की पोटली बनाकर धन की देवी लक्ष्मी को अपने घर व प्रतिष्ठान में कैसे बांधकर स्थिर कर सकते हैं। इस किस्मत की पोटली को चमत्कारिक, दुर्लभ एवं ऐसी बहुमूल्य वस्तुओं को एक साथ सम्मिलित कर निर्मित किया जा सकता है जो देवी महालक्ष्मी को अत्यधिक प्रिय हैं। भारतीय धर्मग्रंथों में ऐसा उल्लिखित है कि यदि देवी महालक्ष्मी का पूजन इन सामग्रियों के साथ तथा इनका उपयोग कर शास्त्रसम्मत विधि से किया जाय तो सभी अभीष्ट अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं। शास्त्रों में महालक्ष्मी के आठ स्वरूप बताए गए हैं और महालक्ष्मी को समुद्र-वासनी भी कहा गया है अर्थात महालक्ष्मी का वास कमल वन में समुद्र के मध्य है। शास्त्रों ने समुद्र, नदी व पोखर से मिलने वाले सभी दुर्लभ प्रदार्थों को लक्ष्मी प्रिय बताया है अतः इस किस्मत की पोटली में अष्ट लक्ष्मी हेतु आठ दुर्लभ सामग्री होती है। 

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इस किस्मत की पोटली में पहला स्थान है प्राकृतिक पीली कौड़ी का इसे लक्ष्मी कौड़ी अथवा कुबेर कौड़ी कहा जाता है। दूसरे स्थान पर समुदी मोती शंख, इस दुर्लभ समुद्री शंख के ऊपरी छोर पर मोती की आकर्ति बनी होती है। इस पोटली पर तीसरे स्थान पर आता है अमूल्य गोमती चक्र, यह लक्ष्मी प्रिय एक ऐसा पत्थर है जो गोमती नदी में मिलता है तथा विभिन्न मुहुर्तों के अवसर पर भी इनकी पूजा लाभदायक मानी जाती है। इस पोटली में चौथे स्थान पर आता है एकक्षी लघु श्रीफल अर्थात एक आंख वाला लगू नारियल जिसे शास्त्रों ने लक्ष्मी पुत्र कहकर संबोधित किया है। इस पोटली के पंचवे स्थान पर आता है मुक्ता मणि अर्थात मोती, इसे अत्यधिक शुभ और नवरतनों में से एक माना गया है। छठे स्थान पर अत्यंत दुर्लभ वस्तु "समुद्री झाग" आता है जिसका प्रयोग तंत्र व षट्कर्म में लिया जाता है। सातवें स्थान पर समुद्री सीप होता है और आठवें स्थान पर कमल के बीज अर्थात कमल गट्टे होते हैं। यह सभी वस्तुएं प्राकृतिक रूप से जल स्तोत्रों से पाई जाती हैं।
 
अब इस किस्मत की पोटली में लक्ष्मी की प्रिय अष्ट औषधि आती है। नवे स्थान पर है अत्यंत दुर्लभ प्राकृतिक काली हरिद्रा जिसे तांत्रिक कार्यों में प्रयोग में लिया जाता है। दसवें स्थान पर है दुर्लभ औषधि जटामासी जो की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। ग्यारहवें स्थान पर है महालक्ष्मी को अतिप्रिय बिल्व गिरि। बहरवें स्थान पर आती है औषधि स्त्री लौंग अर्थात लक्ष्मीकांता यह बहुमूल्य औषधि अत्यंत विरली ही पाई जाती है। तेरहवें स्थान पर है सूखा आंवला। चौदहवें स्थान पर है सर्व औषधि लक्ष्मी नारायण के प्रिय चंद्रदेव की शतावरी। पन्द्रहवें स्थान पर है "त्रि-चिरमी" अर्थात सफेद काली व लाल चिरमी के बीज। सोलहवें स्थान पर है ज्वार पोखरा अर्थात उगी हुई ज्वार की जड़ समेत कोपल।
 
इस पोटली में दो यंत्रों का समावेश है सत्रहवें स्थान पर है भोजपत्र पर निर्मित अष्टगंध से लिखित स्थिर लक्ष्मी यंत्र। अठारहवें स्थान पर है अष्टधातु पर बना श्रीयंत्र। उन्नीसवें स्थान पर है हिमालय से प्राप्त स्फटिक मणि। बीसवें स्थान पर है चांदी का त्रिकोण टुकड़ा जो शुक्र का प्रतीक है। इक्कीसवें स्थान पर है शुद्ध देसी कर्पूर खंड। बाईसवें स्थान पर है लक्ष्मी को प्रिय रक्त चंदन। तेइसवें स्थान पर है नारायणी स्वरूप अक्षत अर्थात पूरे सबूत चावल। चौबीसवें स्थान पर है श्रीप्रिया गुलाल। पच्चीसवें स्थान पर है शुक्र प्रिय अबीर आर्थर अभ्रक। छब्बीसवें स्थान पर है लक्ष्मी को अतिप्रिय रातरानी इत्र व सत्ताईसवें ओर आखिरी स्थान पर लक्ष्मी जी को विशेष प्रिय है रेशमी लाल वस्त्र जिसमें सारी सामाग्री बांधकर यह अद्भुत पोटली बनाई जाती है।
 
ज्योतिष व वास्तु समावेश: इस अत्यंत भाग्यशाली पोटली को शुभ महूर्त में प्राप्त करना चाहिए। इस किस्मत की पोटली में रखी 27 वस्तुएं भ्रचक्र के सत्ताईस नक्षत्रों व नवग्रहों को संबोधित करती हैं। इस पोटली को शुभ महूर्त में घर की पूजा स्थल अथवा उत्तरपूर्व दिशा अथवा लक्ष्मी की दिशा उत्तर पश्चिम में रखना अति शुभफलदायक होता है। इसके घर में विशेष महूर्त में स्थापना से अकूट लक्ष्मी का वास होता है। वास्तु दोषों से मुक्ति मिलती है तथा धन की देवी सदा स्थिर रहती है। शरद पूर्णिमा, अक्षय तृतीया, दीपावली या कार्तिक पूर्णिमा को घर अथवा प्रतिष्ठान में इस पोटली को रखने से चिरकाल धन की प्राप्ति होती है, दुर्भाग्य दूर होता है तथा घर में धन, अन्न, स्वर्ण व आभूषण की वृद्धि होती है।  
 
लक्ष्मी पोटली प्रयोग सामाग्री: 1. पीली कौड़ी, 2. मोती शंख, 3. गोमती चक्र, 4. एकक्षी लघु श्रीफल, 5. मुक्ता मणि, 6. समुद्री झाग, 7. समुद्री सीप, 8. कमल गट्टे, 9. काली हरिद्रा, 10. जटामासी, 11. बिल्व फल, 12. स्त्री लौंग, 13. सूखा आंवला, 14. शतावरी, 15. त्रि-चिरमी, 16. ज्वार पोखरा, 17. अष्टगंध निर्मित स्थिर लक्ष्मी यंत्र, 18. धातु श्री यंत्र, 19. स्फटिक मणि, 20. चांदी का त्रिकोण टुकड़ा, 21. देसी कर्पूर, 22. रक्त चंदन, 23. अक्षत, 24. गुलाल, 25. अबीर, 26. रातरानी इत्र, 27. रेशमी लाल वस्त्र
 
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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