लंदन जाने के लिए छिपे थे विमान के लैंडिंग गियर में, -60 डिग्री ठंड और 40,000 फीट की ऊंचाई में एक भाई ने तोड़ा दम, दूसरा जिंदा बचा!

punjabkesari.in Monday, Sep 22, 2025 - 06:47 PM (IST)

नेशनल डेस्क: दो भाई सिर्फ़ एक सपना लेकर निकले थे — लंदन पहुंचने का। ना पासपोर्ट था, ना टिकट, ना ही पैसे। मजबूरी इतनी थी कि दोनों दिल्ली एयरपोर्ट पर एक प्लेन के लैंडिंग गियर में छिप गए। जहां प्लेन 40,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था और बाहर का तापमान -60 डिग्री था, वहां इंसान का ज़िंदा रहना लगभग नामुमकिन होता है। इस खतरनाक सफर में एक भाई की मौत हो गई, लेकिन दूसरा चमत्कारिक रूप से जिंदा बच गया। ये कहानी है.. साल 1995 की जब पंजाब में आतंकवाद की आखिरी लहर थम रही थी, लेकिन पुलिसिया सख्ती और शक का माहौल अब भी कायम था। इसी माहौल में लुधियाना के दो नौजवान भाई - प्रदीप सैनी (22) और विजय सैनी (18) - पुलिस के शक के घेरे में आ गए। उन पर आरोप था कि वे खालिस्तानी उग्रवादियों की मदद कर रहे हैं। बार-बार की पूछताछ, हिरासत और दबाव ने उन्हें इस कदर तोड़ दिया कि उन्होंने एक असंभव सा फैसला कर लिया - देश छोड़ने का।

कोई पासपोर्ट नहीं, कोई टिकट नहीं - फिर भी उड़ान भर दी
लंदन में बसे जान-पहचान वालों के सहारे उन्होंने वहां जाने का सपना देखा। लेकिन जेब खाली थी और पासपोर्ट भी नहीं। एक तस्कर से संपर्क किया, जिसने 150 पाउंड लेकर उन्हें वादा किया कि वह उन्हें प्लेन के लगेज सेक्शन में छुपाकर लंदन पहुंचा देगा। पर जल्द ही ये तस्कर गायब हो गया। अब उनके पास न पैसे थे, न मददगार- सिर्फ डर और जुनून था।

10 दिन एयरपोर्ट रैकी, और फिर मौत की सवारी
सितंबर 1996 में दोनों भाई दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचे। 10 दिनों तक वहां के हर कोने को देखा, समझा - और एक रात ब्रिटिश एयरवेज की फ्लाइट में घुसने का मौका पा लिया। फ्लाइट को लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट जाना था, लगभग 10 घंटे का सफर और 40,000 फीट की ऊंचाई पर। दोनों भाई प्लेन के लैंडिंग गियर यानी पहिए के पास बनी जगह में छिप गए। इस जगह पर बैठना किसी मौत को गले लगाने से कम नहीं होता। -60 डिग्री तापमान, ऑक्सीजन की बेहद कमी, और तेज इंजन की गूंज - लेकिन उनके पास कोई और रास्ता भी तो नहीं था।

 एक भाई की मौत, दूसरा हाइबरनेशन में बचा
लैंडिंग के बाद सामान उतारते वक्त ग्राउंड स्टाफ को किसी के कराहने की आवाज आई। देखा तो प्रदीप अधमरी हालत में था, उसके कान के पर्दे फट चुके थे। जब उसे होश आया, उसका पहला सवाल था - मेरा भाई विजय कहां है? अगले दिन रिचमंड इलाके में एक लाश मिली, जिसे प्रदीप ने पहचान लिया। वो विजय सैनी था। डॉक्टरों के मुताबिक विजय की मौत शायद उड़ान शुरू होते ही हो गई थी। उसके शरीर ने तापमान और ऑक्सीजन की कमी सह नहीं पाई।

कैसे बचा प्रदीप?
डॉक्टरों के मुताबिक, प्रदीप की बॉडी हाइबरनेशन मोड में चली गई थी - यानी शरीर ने अपने सभी फंक्शन धीमे कर दिए ताकि कम ऊर्जा में ज़िंदा रहा जा सके। यही कारण था कि वो बच गया।

कोर्ट ने माना - मजबूरी थी, कोई मंशा नहीं
हालांकि प्रदीप को लंदन पहुंचने के बाद गैरकानूनी घुसपैठ के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन कोर्ट में उसने बताया कि वह भारत में पुलिसिया प्रताड़ना से तंग आकर वहां आया है। लंबी सुनवाई चली, लेकिन 2014 में कोर्ट ने फैसला दिया  "अगर यह इंसान इतना बड़ा रिस्क लेकर लंदन आया है, तो इसका दर्द सच्चा है।"

अब लंदन में है नई ज़िंदगी
प्रदीप को आखिरकार ब्रिटिश नागरिकता मिल गई। अब वह शादीशुदा है, दो बच्चों का पिता है और उसी हीथ्रो एयरपोर्ट पर एक कैटरिंग कंपनी में ड्राइवर के रूप में काम करता है।


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Content Writer

Anu Malhotra

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