जब ‘सुपर जासूस’ अजीत डोभाल ने SCO बैठक बीच में छोड़ कूटनीतिक मंच से दिया था देश की एकता का संदेश
punjabkesari.in Sunday, Aug 31, 2025 - 04:51 PM (IST)

नेशनल डेस्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने चीन गए। वहां उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की और दोनों देशों के रिश्तों को मजबूत करने पर बात की। यह मुलाकात इसलिए खास थी क्योंकि अभी अमेरिका के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों में तनाव है, जिससे भारतीय सामानों को नुकसान हो रहा है। इस यात्रा ने पांच साल पहले की एक घटना को याद दिलाया, जब ‘सुपर जासूस’ अजीत डोभाल ने एससीओ की बैठक बीच में छोड़ कर कूटनीतिक मंच से देश की एकता और सीमाओं की रक्षा का मजबूत संदेश दिया था।
जब अजीत डोभाल ने बीच में ही छोड़ दी थी
सितंबर 2020 में जब दुनिया में कोविड-19 महामारी फैल रही थी, कई देशों की बैठकें ऑनलाइन होने लगीं। उस समय शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की एक वर्चुअल बैठक हुई, जिसमें पाकिस्तान के प्रतिनिधि डॉ. मोईद यूसुफ ने एक नया नक्शा दिखाया। उस नक्शे में भारत के कुछ हिस्से, जैसे जम्मू-कश्मीर और जूनागढ़, पर पाकिस्तान का दावा था। यह एससीओ के नियमों के खिलाफ था, क्योंकि एससीओ में ऐसे द्विपक्षीय मुद्दे नहीं उठाए जाते। भारत ने तुरंत इस नक्शे का विरोध किया। रूस जो बैठक का अध्यक्ष था, पाकिस्तान से नक्शा हटाने को कह रहा था लेकिन पाकिस्तान अपनी बात पर अड़ा रहा। इस पर भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने बैठक छोड़ दी थी। यह कदम एससीओ के नियमों के उल्लंघन के कारण था और रूस ने भी पाकिस्तान के इस व्यवहार की आलोचना की।
पर्दे के पीछे के ‘सुपर जासूस’ अजीत डोभाल
अजीत डोभाल का सफर किसी जासूसी थ्रिलर से कम नहीं है। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उन्होंने पाकिस्तान में मुस्लिम मौलवी का वेश धारण करके खुफिया जानकारी जुटाई। उनकी यह भूमिका भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण रही। इसके बाद उन्होंने मिज़ोरम विद्रोह के दौरान शांति वार्ता में योगदान दिया, जिसके कारण 1986 में मिज़ो शांति समझौता संभव हुआ। साल 1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर के दौरान डोभाल ने स्वर्ण मंदिर के अंदर आतंकवादियों के खिलाफ खुफिया जानकारी जुटाई। 1999 में कंधार विमान अपहरण के दौरान उन्होंने बातचीत में अहम भूमिका निभाई और बंधकों की रिहाई सुनिश्चित की। 2014 में इराक में आईएसआईएस द्वारा बंदी बनाए गए 46 भारतीय नर्सों की वापसी में उन्होंने समन्वय किया। 2016 में नियंत्रण रेखा के पार आतंकवादी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाने में भी डोभाल की भूमिका रही।
अजीत डोभाल का एससीओ की बैठक से बहिर्गमन भारत की संप्रभुता के प्रति भारत के अडिग रुख का प्रतीक था। यह संदेश दिया गया कि भारत अपने क्षेत्रीय विवादों को बहुपक्षीय मंचों पर नहीं लाने देगा और किसी भी तरह की चुनौती स्वीकार नहीं करेगा। रूस के समर्थन से इस कदम को और मजबूती मिली और डोभाल की कूटनीतिक चतुराई की प्रशंसा हुई।