जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति हेतु करें ऐसा कार्य

punjabkesari.in Tuesday, Oct 11, 2016 - 10:30 AM (IST)

सत्त्वं राजस तम इति गुणः प्रकृतिसंभवाः निबधनंती महाबाहो देहे देहिनां अव्ययं


जब पुरुष(आत्मा) प्रकृति(सृष्टि) के साथ-सत्त्व, राजस और तम- इन तीनों गुणों के रूप में जुड़ जाता है तब सृष्टि में एक जीव का जन्म होता है। प्रकाश, आनंद और ज्ञान यह  सारे सत्त्व गुण के लक्षण होते हैं, इच्छाएं, आसक्ति और उससे जुड़े कर्म राजस गुण के लक्षण होते हैं और अंधकार, अज्ञान और निद्रा ये तम गुण के लक्षण होते हैं। मनुष्य में उसकी इच्छाओं और आत्मिक उन्नति के स्तर के आधार पर कम/अधिक मात्रा में ये तीनों गुण पाएं जाते हैं।


आम लोग तम गुण के प्राबल्य के आधीन होते हैं, जो कि पशुओं और अन्य नीच योनि के जीवों में भी मुख्य रूप से पाया जाता है। भगवद गीता के अनुसार जब कोई इंसान अपना शरीर तम गुण के आधीन होकर छोड़ता है, तो उसका अगला जन्म पशुओं की योनियों में होता है और वह नर्कों में प्रवेश करता है। इसी कारण से तम गुण को कम कर हमें सत्त्व और राजस गुण की मात्रा खुद में बढ़ाने का प्रयास सन्तानक्रिया के द्वारा  करना चाहिए।



मनुष्य में जब राजस गुण का प्राबल्य होता है तो वह उत्साह से अपनी भौतिक इच्छाओं तथा आसक्तियों को पूरा करने के लिए कर्म करने हेतु प्रवृत्त होता है। हर कर्म से उसकी समान और विरुद्ध प्रतिक्रिया जुड़ी होती है, हर भोग से रोग जुड़ा हुआ होता है। राजस गुण के प्रभाव तले मनुष्य भौतिक इंद्रियों के सुखों में फंसकर रह जाता है और उनके साथ आने वाले दुखों का सामना करता है। मनुष्य की भौतिक इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता और कोई चाहे भौतिक जगत में जो कुछ भी पा ले, वह कभी संतुष्ट नहीं होता। हर दम और ज्यादा पाने की अभिलाषा करता है। इसी कारण उस व्यक्ति का निम्न योनियों में जन्म और मृत्यु का क्रम शुरू हो जाता है, हर जन्म पिछले जन्म से ज्यादा निम्न और पीड़ादायी होता है। इसी कारण से राजस गुण को कम करके सत्त्व गुण को बढ़ाना जरूरी होता है।



सत्त्व गुण के प्राबल्य से मनुष्य ध्यान और साधना करना शुरू कर देता है, सेवा और दान द्वारा खुद की शुद्धि करने लगता है, जिसके फलस्वरूप उसे ज्ञान और परमानंद का अनुभव होता है। जब कोई मनुष्य सत्त्व गुण के प्राबल्य में शरीर छोड़ता है तो उसका जन्म सूक्ष्म लोकों में देव और ऋषियों की योनी में होता है। सत्त्व गुण को बढ़ाने हेतु  आप भी आज किसी अनजान व्यक्ति या किसी गाय या कुत्ते को भोजन दे कर देखे की कैसा महसूस होता है।



ये तीनों गुण भौतिक सृष्टि से सम्बंधित होते हैं और व्यक्ति को भौतिक सृष्टि से बांध देते हैं। इन तीनों गुणों से ऊपर उठकर ही हम इस जन्ममृत्यु के दुष्ट चक्र से बाहर निकलकर अंतिम सत्य अर्थात देवत्व में विलीन हो पाएंगे। जब हम तम, राजस और सत्त्व गुणों के प्रभाव से ऊपर उठ जाते हैं तो हम 'गुण अतीत' हो जाते हैं - यह अवस्था केवल एक गुरु की सहायता से ही पाई जा सकती है। जब गुरु उनके ज्ञान(शक्ति) का शिष्य में स्थानांतरण करते हैं, तो शिष्य गुण अतीत बन जाता है किंतु ज्ञान का अस्तित्व केवल सात्विक वातावरण में ही रह सकता है। यह सन्तानक्रिया द्वारा संभव है। दान और सेवा को अपने जीवन का भाग बनाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, ताकि हम अपने गतजन्मों के नकारात्मक कर्मों को परिवर्तित कर सकें। केवल ऐसा होने के पश्चात ही हम ज्ञान की ओर बढ़ेंगे और हमें जन्ममृत्यु के दुष्ट चक्र से मुक्ति मिल सकेगी।


योगी अश्विनि जी 
dhyan@dhyanfoundation.com


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