शादीशुदा हैं तो दोबारा करें विवाह, बदलें अपनी बिगड़ी तकदीर और पाएं अपार धन संपत्ति

punjabkesari.in Monday, Nov 16, 2015 - 04:40 PM (IST)

दांपत्य में सुख-शांति बनाए रखने हेतु पति व पत्नी को मिलकर कोशिश करनी होती है। परिवार एक ऐसी गाड़ी की तरह है जिसमें पति-पत्नी के रूप में पहिए होते हैं जिसे दोनों को मिलकर खींचना होता है। इन दोनों पहियों में से अगर एक भी खराब हो जाए तो गाड़ी चलाना मुश्किल हो जाता है। परिवार को समृद्ध व खुशहाल बनाने के लिए पत्नियों की तरह पतियों की भी बहुत खास भूमिका होती है। अगर दोनों मिलकर कोशिश करते हैं तभी परिवार में सुख-शांति बनी रह सकती है व जहां सुख-शांति है वहीं धन और खुशहाली का निवास होता है। 

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुंडली में विवाह मुख्यतः सप्तम भाव से देखा जाता है। सप्तम भाव से दांपत्य के सुख-दुख, जीवनसाथी, विलासीता, व सांझेदारी का विचार किया जाता है। कुंडली के सातवें भाव अर्थात वैवाहिक जीवन पर शुक्र का आधिपत्य माना गया है। शास्त्रों में शुक्र ग्रह को वैवाहिक जीवन हेतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। पाराशर होरा शास्त्र, लाल किताब व रावण संहिता जैसे ग्रन्थों में इस संदर्भ में अनेक मत दिए हैं।  

कालपुरुष सिद्धांतानुसार कुंडली दूसरे व सप्तम भाव पर शुक्र का आधिपत्य होता है। दूसरे भाव से व्यक्ति की धन संपत्ति व सांतवे भाव से वैभव विलिसिता, पार्टनर्शिप व बिज़नेस देखा जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र अगर किसी दुष्ट ग्रह से पीड़ित हो अथवा ट्रिक भाव में चला गया है, अस्त है अथवा बाली नहीं है तब ऐसी स्थिति में व्यक्ति को पैसों की तंगी, बिज़नेस में नुकसान, वैभव में कमी व दुर्भाग्य का सामना भी करना पड़ता है। कुंडली में शुक्र की स्थिति दांपत्य में प्रेम व कलह दोनों ही दे सकती है। नैसर्गिक व परिसपरिक दृष्टिकोण से शुक्र की कुछ ग्रहों के साथ मित्रता है व कुछ ग्रहों के साथ शत्रुता है। 

ज्योतिष के दार्शनिक खंड अनुसार दैत्यगुरु शुक्रदेव सूर्य, मंगल व गुरु से शत्रुता रखते है। चंद्र, शनि, बुध से मित्रता रखते हैं तथा राहू व केतू के साथ इनके सम संबंध होते हैं। कुंडली के दूसरे, चौथे सातवें व बहरवें भाव में शुभ फल देते हैं। पहले, पांचवें व छठे भाव में अशुभ फल देते हैं। शुक्र मीन में उच्च व कन्या में नीच का फल देते हैं। 

लाल किताब के सिद्धांतानुसार कुंडली में शुक्र ग्रह जीवनसाथी, जननांग, कामक्रीड़ा, आखें, वीर्य, गर्भाशय, अंडकोश, मासिक धर्म, संभोग, व्यसन, व्यभचार, चर्मसुख, कपड़े, भोग विलासिता, संगीत, एंटरटेनमेंट को दर्शाता है। शुक्र शादी के साथ-साथ तलाक का भी कारक है। जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र अच्छा व बलवान होता है वह व्यक्ति रोमांटिक व गुड लुकिंग एवं ऐश्वर्यवान होता है। जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में शुक्र उच्च स्थान प्राप्त व बली होता है वह रसिक होता है तथा उन्हे विपरीत लिंग का साथ प्रिय होता है परंतु जब जन्मकुंडली में शुक्र की स्थिति अशुभ होती है तो यह व्यक्ति को लूस कैरक्टर, व्यभचारी व महा पापी बनाता है। 

जन्मकुंडली के सप्तम स्थान में अगर शुक्र की युति शनि व सूर्य से हो जाए तो ऐसी स्थिति में सूर्य नीच होकर शुक्र को खराब कर देता है। ऐसी स्थिति यह तीन ग्रहों की युति से बना यह अशुभ योग दांपत्य पर अनिष्ट प्रभाव देता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति लूस कैरक्टर बनाकर विवाहेतर संबंध बनवाता है तथा दांपत्य कलह करवाता है।

लाल किताब व रावण संहिता के उपाय खंड में शुक्र को अच्छा बनाने व मंद शुक्र को दुरुस्त करने हेतु कुछ सटीक उपाय बताए गए हैं। जो की निम्नलिखित है....

1. जीवनसाथी का यथोचित सम्मान करें।

2. नियमित रूप से जननांगो को दही से धोएं।  

3. कांसे की घाघर में सतनजा भरकर धर्मस्थल में दान करें। 

4. सूर्य के रहते अर्थात दिन के समय कामक्रीड़ा अर्थात संभोग न करें। 

5. शरीर के विभिन्न अंगों पर अवांछित बाल न रखें। नियमित रूप से अवांछित बाल साफ करते रहें। 

6. राहू या मंगल के दुष्प्रभाव से पड़े मंद शुक्र को ठीक करने के लिए जीवनसाथी से ही दो बार विवाह संपन्न करें।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com


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