किस देवता की पूजा करें मेष राशि के जातक?

punjabkesari.in Saturday, Apr 02, 2016 - 04:08 PM (IST)

जीवन में हर कोई किसी न किसी कारण से कभी न कभी, कोई न कोई पूजा-पाठ या अनुष्ठान अवश्य ही करता है। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो सामान्य पूजा-पाठ के माध्यम से ही अपने अभीष्ट को प्राप्त कर लेते हैं किंतु कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो कठिन से कठिन अनुष्ठान करने के बाद भी मनोनुकूल सिद्धि को प्राप्त नहीं कर पाते। इसका कारण क्या है?
 
 
कई बार यह भी होता है कि व्यक्ति किसी की सलाह पर उसे जो भी जिस देवता की पूजा करने के लिए कहता है, करना प्रारंभ कर देता है किंतु हमें अपने उद्देश्य की प्राप्ति नहीं होती। हताश व्यक्ति पूजा-पाठ अनुष्ठान आदि को ही ढकोसला बताने लगता है जबकि ऐसा कतई नहीं होता।
 
 
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अपनी राशि के अनुसार ही देवी-देवताओं की पूजा करने से वांछित फल की प्राप्ति हो सकती है। कौन-सा व्यक्ति किस देवता की पूजा करे, इसके लिए अपने नामाक्षर की राशि तथा राशि के अंशों की जानकारी प्राप्त करके उस अंश के अनुसार देवता की पूजा करने से अवश्य ही लाभ की प्राप्ति होती है।
 
 
प्रत्येक जन्म लग्न में तीस अंश होते हैं। दस-दस अंश का एक भाग बनाकर तीनों अंशों में बांट दिया जाता है चू, चे,. चो, ला, ली, लू, ले तथा अ अक्षरों को मिलाकर मेष राशि का निर्माण होता है। इसमे चू, चे तथा चो (तीन वर्ण) को प्रथम दस अंश, ला, ली तथा लू (तीन वर्ण) को द्वितीय दस अंश तथा ले, लो तथा अ को तृतीय अंश मानकर तीनों अंशों के अलग-अलग देवता माने जाते हैं।
 
 
20 मार्च से 18 अप्रैल के मध्य जन्म लेने वाले जातक को भी मेष राशि का जातक ही माना जाता है। इस अवधि को भी दस-दस दिनों में बांट कर प्रथम दशांश, द्वितीय दशांश तथा तृतीय दशांश के रूप में जाना जा सकता है। प्रथम दशांश के जन्माक्षरों के नाम (जिनके नाम चू, चे, चो से प्रारंभ हुए हों) वाले जातक को या 20 मार्च से 29 मार्च तक जन्म लेने वाले जातक को ‘गणेश’ जी की पूजा करनी चाहिए। इस वर्ग के जातक को ॐ गं गणपतये नम:’, ॐ गं गणाधिपतये नत:’ आदि मंत्रों का जाप करना चाहिए। गणेश जी के ऊपर दूब चढ़ाना त्वरित सफलता को प्रदान करता है। गणेश जी का ध्यान, गणेश स्तोत्र आदि पाठ करते रहने से ही (चू, चे तथा चो) अक्षर से प्रारंभ होने वाले नाम के जातकों को सकारात्मक लाभ मिल सकता है।
 
 
द्वितीय दशांश वाले जातकों का नामाक्षर ला, ली, लू माना जाता है। इनका जन्म 30 मार्च से 8 अप्रैल के मध्य होता है अर्थात 30 मार्च से 8 अप्रैल के मध्य जन्म लेने वाले जातक का नाम ला, ली या लू वर्ण से प्रारंभ होकर इनकी राशि ‘मेष’ होती है। ऐसे जातकों को अपना इष्ट ‘शंकर जी’ को बनाना चाहिए।
 
 
ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का रुद्राक्ष की माला पर प्रतिदिन जाप करना, पञ्चाक्षरी स्रोत का पाठ, शिवमहिम्न स्तोत्र का पाठ, शिव चालीसा, शिव सहस्त्रनाम के पाठ में से कोई एक नियमित रूप से करना चाहिए। सोमवार का व्रत करना विशेष लाभप्रद माना जाता है। द्वितीय दशांश में जन्म लेने वाले स्त्री-पुरुष के लिए सोमवार के दिन संभोग करना वर्जित माना जाता है। इन नियमों का पालन करते हुए शंकर जी की आराधना करने वाले के मनोरथ सिद्ध होते हैं।
 
 
तृतीय दशांश वाले जातकों का नामाक्षर ले, लो तथा अ से प्रारंभ होता है। 09 अप्रैल से 18 अप्रैल के मध्य जन्म लेने वाले जातकों का नाम इन्हीं तीन वर्णों से प्रारंभ होता है। ऐसे जातकों के लिए भगवान ‘विष्णु’ की आराधना श्रेष्ठ तथा सफलता सूचक मानी जाती है। 09 अप्रैल से 18 अप्रैल के मध्य जन्म लेने वाले स्त्री-पुरुष को ‘विष्णु’ की आराधना करने से ही मनोरथ की पूर्ति हो सकती है।
 
 
ॐ नमो भगवते नारायणाय नम:’ मंत्र का जाप तथा विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ, विष्णु स्रोत का पाठ, विष्णु यंत्र का धारण करना, गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ, विष्णु चालीसा का पाठ करना श्रेयस्कर माना जाता है। प्रत्येक पूर्णिमा तिथि को सत्यनारायण भगवान की पूजा करने से मनोरथ की सिद्धि होती है। ऐसे जातकों को वीरवार के दिन उपवास रख कर केले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। वीरवार के दिन सम्भोगीय प्रक्रिया पर रोक लगाना हितकर होता है।
 
 
इस प्रकार मेष राशि के जातकों को अपनी मूलाक्षर, जन्मतिथि के अनुसार गणेश, शिवजी एवं विष्णु जी की पूजा करके अभीष्ट को प्राप्त करना चाहिए।
 

—आनंद कुमार अनंत 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Related News