अर्धांगिनी होती हैं ऐसी देवीयां, क्या आप में है ये गुण

punjabkesari.in Tuesday, Jul 12, 2016 - 03:09 PM (IST)

चढ़ा वैराग्य का रंग
18वीं विक्रमी शताब्दी की बात है। लालनाथ नाम के एक सज्जन गौना कराके अपने घर जा रहे थे। रास्ते में एक गांव पड़ा लिखमादेसर। वहां महात्मा कुंभनाथ जी रहते थे। लालनाथ उनके दर्शन करने पहुंचे। महात्मा उस समय भक्तों को तरबूज का प्रसाद बांट रहे थे, बोले, ‘‘और है कोई लेनहार?’’
 
लालनाथ ने बड़े आदर से आगे बढ़ कर प्रसाद ले लिया। लालनाथ की पूर्वजन्म की पुण्याई कहें या संत की अहैतुकी कृपा, कुंभनाथ जी के हाथ का प्रसाद खाते ही उन पर वैराग्य का गहरा रंग चढ़ गया। महात्मा के दर्शन तथा सान्निध्य से उनका विवेक जाग उठा, अंदर सोया वैराग्य का अंकुर फूट पड़ा। साथियों ने ताना मारते हुए कहा: ‘‘यही करना था तो फिर विवाह ही क्यों किया?’’ 
 
लालनाथ बोले, ‘‘बेहड़ा लिखिया न टलै दीया अंट बुलाय। विधाता ने जो लिख दिया था वह कैसे टल सकता है? फेरे लेना तो लिखा ही था।’’ 
 
उनकी नवविवाहिता पत्नी भी वहीं लिखमादेसर गांव में एक सिद्ध-स्थान पर तपस्या करने लगी। लालनाथ जी तो ईश्वर की राह पर चले पर उनकी पत्नी भी पीछे नहीं हटी। धन्य हैं ऐसी देवियां जो ईश्वरप्राप्ति के रास्ते चलने वाले अपने पति की सहयोगी बन जाती हैं और स्वयं भी उस रास्ते चल कर अपना मंगल कर लेती हैं। ऐसी पुण्यशाली देवियां, ‘सहधर्मिणी’, ‘अर्धांगिनी’ शब्दों की गरिमा समाज के सामने प्रकट कर देती हैं। 

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