Kundli Tv- यह है भारत का पहला मंदिर...

punjabkesari.in Friday, Oct 26, 2018 - 03:41 PM (IST)

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भुवनेश्वर में एक समय में मंदिरों की तादाद बहुत अधिक थी जो आज घटते-घटते पांच सौ के करीब रह गई है। यहां का लिंगराज मंदिर विश्वप्रसिद्ध है। धार्मिक मान्यता के अनुसार लिट्टी और वसा नाम के दो भयंकर राक्षसों का देवी पार्वती ने यहीं पर वध किया था तब संग्राम के समय देवी पार्वती को तीव्र प्यास लगने के कारण भगवान शिव ने एक कूप बनाकर सभी पवित्र नदियों को उनके योगदान के लिए बुलाया था जो इस समय बिंदु सरोवर के नाम से प्रसिद्ध है। अनादिकाल से भुवनेश्वर शैव संप्रदाय का मुख्य केंद्र रहा है। काशी की तरह ही यहां शिव मंदिरों की अधिकता है। इसी कारण से इसे लोग ‘गुप्त काशी’ भी कहते हैं। कहीं-कहीं इसे शाम्भव क्षेत्र भी कहा गया है। पुराणों में इसे एकाम्र क्षेत्र कहा गया है। हावड़ा वाल्टेयर लाइन पर कटक खुरदा रोड के बीच में कटक से 18 मील दूर भुवनेश्वर स्थित है जो अपने प्राचीनतम नाम ‘कलिंग’ से भी जाना जाता है।
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लिंगराज मंदिर मंदिर शैव और विष्णु दोनों को समर्पित है। मंदिर का मुख्य विग्रह आठ फुट मोटा तथा करीब एक फुट ऊंचा ग्रेनाइट से बना है जो आधा शिव आधा विष्णु है। यह विग्रह चपटा तथा अगठित है। मूल रूप से बुद-बुद लिंग है। शिला में बुदबुदाकार उठे हुए अंकुर भागों को बुद-बुद लिंग कहा जाता है। यह चक्राकार होने से हरि-हरात्मक लिंग माना जाता है, इसी कारण से यहां हरि-हर मंत्र से पूजा की जाती है। कुछ लोगों की मान्यता है कि यह लिंग त्रिभुजाकार है, इस कारण से इसे हरगौर्यात्मक तथा आकार में बड़ा होने के कारण कालरूद्रात्मक भी कहा जाता है।
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यहां भक्तगणों को शिवलिंग को छूने की छूट है। वे स्वयं इसकी पूजा कर सकते हैं। एक विशेषता यहां की और भी है कि अन्य स्थानों पर मुख्य आयुध के रूप में त्रिशूल का ही अस्तित्व रहता है जबकि यह भारत का पहला मंदिर है जहां मुख्य आयुध धनुष है। यह मंदिर ऊंचे परकोटे के भीतर बना हुआ है। मंदिर में चारों ओर चार द्वार हैं। मुख्य द्वार जो सिंहद्वार कहलाता है, उसमें प्रवेश करने पर भगवान गणेश का मंदिर है। आगे नंदी स्तम्भ है उसके आगे भोग मंडप है। फिर नाट्य मंदिर व मुखशाला है। इसके आगे श्रीमंदिर है। 
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मंदिर की पूजा पद्धति के अनुसार सर्वप्रथम बिन्दु सरोवर में स्नान किया जाता है। फिर वासुदेव के दर्शन किए जाते हैं, इसके पश्चात गणेश पूजा और गोपालनी देवी तथा उसके पश्चात शिवजी के वाहन नंदी की पूजा और फिर लिंगराज की पूजा की जाती है। लिंगराज मंदिर लंबे-चौड़े कैम्पस में स्थित है जिसमें और भी कई मंदिर हैं। पूरा मंदिर कैम्पस स्थापत्य कला की भव्यता से ओत-प्रोत है। सूक्ष्म नक्काशी, उत्कृष्ट मूर्ति-कला का यह मंदिर जीता जागता नमूना है। इस मंदिर में कलिंग और द्रविड़ स्थापत्य कला तथा बौद्धकाल का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। लिंगराज मंदिर में सनातन विधि से पूरे चौबीस घंटे पूजा होती रहती है। 
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Niyati Bhandari

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