एक और आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़ी है दुनिया!

punjabkesari.in Sunday, Sep 23, 2018 - 01:33 PM (IST)

नई दिल्ली: लीमैन ब्रदर्स के दिवालिया होने और उसके ठीक बाद वैश्विक आर्थिक मंदी के 10 साल बाद एक बार फिर उसी तरह के संकट की आशंका बढ़ती जा रही है। क्या हम एक और आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़े हैं? कोई भी निश्चित तौर पर इस बारे में कुछ नहीं कह सकता लेकिन कुछ ऐसे संकेत हैं जो अर्थशास्त्रियों को परेशान कर रहे हैं।

2008 के आर्थिक संकट से निकलने के लिए दुनिया भर के केन्द्रीय बैंकों ने बड़े पैमाने पर नोट छापे। इनमें से ज्यादातर मुद्रा वित्तीय बाजार में आ गई। करीब 290 ट्रिलियन डॉलर (करीब 2,09,42,350 लाख करोड़ रुपए) वित्तीय बाजार (शेयर बाजार, बॉन्ड्स और दूसरी वित्तीय संपत्तियां) में आ गए। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय बैंकों ने ब्याज दरों को कम रखा तथा निवेशकों ने हाई रिटर्न की खातिर खराब गुणवत्ता के निवेशों को अंजाम दिया। यह एक बड़ा जोखिम है।

विशाल कर्ज, वह भी डॉलर में
उभरते बाजार अमरीकी डॉलर को अपनाने के लिए मजबूर हैं और यह दुनिया की अघोषित इकलौती रिजर्व करंसी है। इसका असर यह हुआ कि दुनिया के सभी बाजारों की अमरीका की मौद्रिक नीति पर निर्भरता बढ़ गई। उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में हाई रिटर्न की आस के लिए निवेशकों ने शॉर्ट-टर्म में बहुत ज्यादा पैसे लगाए। उभरते बाजारों में कर्ज की मात्रा बहुत बढ़ गई। 2008 के विश्व आॢथक संकट के बाद से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बाहरी कर्ज बढ़कर 40 ट्रिलियन डॉलर (करीब 28,88,600 लाख करोड़ रुपए) हो चुका है। कर्ज संकट कितना बड़ा है, इसे इंस्टीच्यूट ऑफ  इंटरनैशनल फाइनांस (आई.आई.एफ.) की इस रिपोर्ट से समझ सकते हैं। 26 बड़े और उभरते बाजारों का संयुक्त कर्ज 2008 में उनकी जी.डी.पी. का 148 प्रतिशत था जो सितम्बर 2017 में बढ़कर 211 प्रतिशत हो गया।

टुकड़ों में नियंत्रण और जटिल निवेश
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लॉ प्रोफैसर कैथरीन जज के मुताबिक 2008 के आर्थिक  संकट के वक्त रैगुलेटरी ढांचे में कमियां थीं। यह ढांचा एकीकृत न होकर टुकड़ों-टुकड़ों में था। कैथरीन के मुताबिक ये चुनौतियां अब भी मौजूद हैं जो जल्द ही एक और संकट की तरफ  ले जा सकती हैं।

अच्छे निवेश की तादाद कम
ज्यादातर संपत्तियां महंगी हैं और बहुत कम अच्छे निवेश उपलब्ध हैं। इसका मतलब है कि बाजार में सुधारात्मक कदमों को उठाए जाने की जरूरत है। स्थिति इतनी नाजुक है कि कोई छोटी- सी घटना भी बड़ा असर डाल सकती है और यहां तो ब्रैग्जिट व यू.एस.-चीन ट्रेड वॉर जैसी बड़ी घटनाएं हो रही हैं। क्या पता, ये दोनों घटनाएं ही दुनिया को एक और आर्थिक संकट में झोंक दें।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

jyoti choudhary

Recommended News

Related News