Kundli Tv- सावन की किस खास पूजा ने श्रीराम को दिलाई थी जीत

punjabkesari.in Saturday, Aug 11, 2018 - 12:01 PM (IST)

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जब सृष्टि की संरचना हुई तब से ही शिवलिंग की पूजा होती आ रही है। पुराणों और शास्त्रों में भी शिवलिंग के महत्व के बारे में कई जगह उल्लेख किया गया है। शिवलिंग की महत्वता के बारे में इस बात से पता चलता है कि श्रीहरि ने भी अपने राम अवतार में रावण पर जीत हासिल करने से पहले रामेश्वरम जो अब हिंदू धर्म के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है, पार्थिव शिवलिंग की स्थापना कर उसकी पूजा-अर्चना की थी। जिस वजह से उन्हें रावण पर जीत हासिल हुई। इसके अलावा शनिदेव ने भी अपने पिता से शक्तियां पाने के लिए पार्थिव शिवलिंग स्थापित कर महादेव की आराधना की थी। तो आईए जानते हैं पार्थिव शिवलिंग की पूजा का महत्व और फायदे-

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मोक्ष का साधन
सनातन परंपरा में जितने भी देवताओं की पूजन विधियां है, उसमें पार्थिव पूजन के द्वारा शिव की साधना-अराधना ही सबसे आसान और अभीष्ट फल देने वाली है। कलयुग में मोक्ष की प्राप्ति और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पार्थिव पूजन सबसे उत्तम माध्यम है। इस पूजन से सभी प्रकार के भय दूर हो जाते हैं।

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करोड़ों यज्ञों के बराबर है पार्थिव शिवलिंग का पूजन
पार्थिव शिवलिंग का पूजन करने से करोड़ों यज्ञों का फल प्राप्त होता है। भगवान शिव सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता हैं और उनकी साधना का यह सबसे सरल-सहज और पावन माध्यम है। जिसके पास कुछ भी नहीं वह शुद्ध मिट्टी का पार्थिव शिवलिंग बनाकर महज बेल पत्र, शमी पत्र आदि अर्पित कर उनकी कृपा प्राप्त कर सकता है।
PunjabKesariदो मासों में अधिक पुण्यदायी है पार्थिव पूजन
देवों के देव महादेव की साधना-अराधना के लिए श्रावण मास और पुरुषोत्तम मास विशेष रूप से फलदायी माने जाते हैं। इन दोनों पावन मास में पार्थिव शिवलिंग निर्माण को दूसरी पूजा-अर्चना के मुकाबले इसलिए विशिष्ट माना जाता है क्योंकि साधक बगैर किसी पंडित या पुरोहित के स्वयं एक शिल्पकार की भांति शिवलिंग का निर्माण करता है। पावन पार्थिव शिवलिंग की पूजा-अर्चना कर मोक्ष का अधिकारी बनता है।
PunjabKesariऐसे बनाते हैं पार्थिव शिवलिंग
पंचतत्वों में भगवान शिव पृथ्वी तत्व के अधिपति हैं, इसलिए उनकी पार्थिव पूजा का विशेष विधान है। पार्थिव लिंग एक या दो तोला शुद्ध मिट्टी लेकर बनाते हैं। इस लिंग को अंगूठे की नाप का बनाया जाता है।भोग और मोक्ष देने वाले इस पार्थिव पूजन को किसी भी नदी, तालाब के किनारे, शिवालय अथवा किसी भी पवित्र स्थान पर किया जा सकता है।
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Jyoti

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