वैश्विक ‘व्यापार युद्ध’ की आशंकाएं

punjabkesari.in Tuesday, Jun 19, 2018 - 03:36 AM (IST)

हाल ही में 15 जून को अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस, वित्त मंत्री स्टीवन न्यूचिन और व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइजर के साथ 90 मिनट की बैठक के बाद चीन से 50 अरब डॉलर मूल्य के सामान के आयात पर 25 फीसदी शुल्क लगाने को मंजूरी दे दी। इसके बाद चीन ने त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए जवाबी कार्रवाई करते हुए कहा कि वह भी 50 अरब डॉलर मूल्य की अमरीकी वस्तुओं पर 25 फीसदी शुल्क लगाएगा। इससे दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध की आशंका बढ़ गई है। 

गौरतलब है कि पिछले दिनों 9 एवं 10 जून को कनाडा के ब्यूबेक सिटी में जी-7 देशों का 2 दिवसीय शिखर सम्मेलन जहां एक ओर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बयानों और ‘अमरीका फस्र्ट’ के तहत अपनाई जा रही नीतियों की वजह से तमाशा बनकर रह गया, वहीं अब दूसरी ओर दुनिया के अर्थविशेषज्ञ यह कहते हुए दिखाई दिए कि अमरीका ने वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका भी बढ़ा दी है। 

उल्लेखनीय है कि जी-7 के सदस्य देश कनाडा, जर्मनी, इटली, जापान, फ्रांस तथा यूनाइटिड किंगडम जहां पहले ही ट्रम्प की ट्रेड पॉलिसी को लेकर नाखुश थे, वहीं जी-7 सम्मेलन के बाद ट्रम्प के आर्थिक सलाहकार लैरी कुडलो तथा अन्य अमरीकी प्रतिनिधियों द्वारा समझौते को अमरीकी हितों के प्रतिकूल बताते हुए नामंजूर किए जाने से वैश्विक व्यापार की चिंताएं बढ़ गई हैं। चिंताजनक बात यह भी रही कि ग्रुप 7 सम्मेलन के तुरंत बाद अमरीका ने ग्रुप 7 के विभिन्न देशों से अमरीका में आने वाले कुछ आयातों पर नए व्यापारिक प्रतिबंध घोषित करके वैश्विक व्यापार युद्ध के दरवाजे पर दस्तक दी है। 

गौरतलब है कि पिछले एक वर्ष में अमरीका जैसे-जैसे संरक्षणवाद की ओर बढ़ा है, वैसे-वैसे दुनिया के कई विकसित देशों ने उसका अनुसरण किया है और वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंकाएं लगातार बढ़ती गई हैं। अमरीका द्वारा ग्रुप-7 देशों से आयात पर नए प्रतिबंधों से पहले इसी वर्ष 8 मार्च से लगातार अब तक उसने चीन, मैक्सिको, कनाडा, ब्राजील, अर्जेंटीना, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, यूरोपीय संघ के देशों और भारत पर भी आयात प्रतिबंधों की शुुरूआत की है। अमरीका का कहना है कि विश्व व्यापार की समस्या का संबंध चीन से सबसे ज्यादा है। 

चीन अपने उन वायदों पर खरा नहीं उतरा है जो उसने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) के दायरे में आते समय किए थे। चीन ने कहा था कि वह अपने घरेलू बाजार को उदार बनाएगा तथा नियामकीय और मेहनताने के मानकों में सुधार करेगा, लेकिन वर्तमान परिदृश्य बता रहा है कि शेष विश्व के साथ चीन का व्यापार अधिशेष अार्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण है। ट्रम्प लम्बे समय से यह कहते आ रहे हैं कि अमरीका के कारोबारी सांझेदार विभिन्न देश उसे कारोबार में भारी घाटा दे रहे हैं। वस्तुत: ट्रम्प अमरीका के औद्योगिक क्षेत्र को संरक्षण देकर उसमें नई जान फूंकना चाहते हैं। उनकी धारणा है कि वैश्वीकरण दुनिया के कई  इलाकों में नाकाम साबित हो चुका है और यह अमरीकी अर्थव्यवस्था के लिए भी नुक्सानदेह है।

अमरीका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस ने यहां तक कह दिया है कि अमरीका ने दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद से ही यूरोप और एशियाई देशों को भारी रियायतें दी हैं, अब इनके जारी रहने की कोई तुक नहीं है। द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने हाल ही में एन.ई.आर.ए. इक्नॉमिक कंसङ्क्षल्टग के अध्ययन की एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसके मुताबिक इस्पात एवं एल्युमीनियम जैसी कई वस्तुओं पर आयात शुल्क में इजाफा किए जाने से इस क्षेत्र में घरेलू रोजगार और उत्पादन में कुछ बढ़ौतरी हो सकती है। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि अमरीका ने भारत की कई वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ा दिए हैं। अमरीका भारत से इसलिए नाराज है क्योंकि भारत ने कई अमरीकी वस्तुओं पर आयातित शुल्क में उसकी इच्छा के मुताबिक कमी नहीं की है। गौरतलब है कि 15 मार्च को अमरीकी कारोबार प्रतिनिधि (यू.एस.टी.आर.) रॉबर्ट लाइटहाइजर के कार्यालय ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) में भारत के खिलाफ कारोबारी विवाद आपत्तियों के निपटारे हेतु कठोर आवेदन प्रस्तुत किया है। इन कारोबार आपत्तियों में भारत सरकार द्वारा वस्तुओं के निर्यात को लेकर चलाई जाने वाली योजनाएं और निर्यात से जुड़ी इकाइयों की योजनाएं व अन्य ऐसी योजनाएं हैं जो अमरीका के कारोबार पर प्रतिकूल असर डाल रही हैं। 

इन आपत्तियों पर भारत सरकार ने कहा है कि उसके द्वारा दी जा रही विभिन्न राहत और सुविधाएं डब्ल्यू.टी.ओ. के तहत ही हैं, लेकिन अमरीका अनुचित और अन्यायपूर्ण ढंग से भारत पर व्यापार प्रतिबंध बढ़ाते हुए दिखाई दे रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अमरीका ने नए व्यापारिक प्रतिबंध लगाकर संरक्षणवाद की डगर पर आगे बढऩे के साथ-साथ वैश्विक व्यापार युद्ध के दरवाजे पर दस्तक दी है। हाल ही में प्रकाशित कई वैश्विक सर्वेक्षणों में कहा जा रहा है कि अमरीकी संरक्षणवाद से भारत के कृषि और उद्योग कारोबार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। ऐसे में पिछले दिनों 19 एवं 20 मार्च को भारत द्वारा खाद्य सुरक्षा और कृषि संबंधी विभिन्न मुद्दों के साथ-साथ सेवा व्यापार के व्यापक उदारीकरण तथा डब्ल्यू.टी.ओ. को पुनर्जीवित करने के मुद्दों पर चर्चा के लिए नई दिल्ली में विश्व व्यापार संगठन के अनौपचारिक लघु मंत्री स्तरीय सम्मेलन से जो सुझाव निकल कर आए हैं, उनकी अहमियत बढ़ गई है। 

नि:संदेह अमरीका सहित विकसित देशों में घरेलू स्तर पर उत्पादन बढ़ाने और स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों को बढ़ावा देने की अंतर्मुखी नीति का परिदृश्य भारत सहित विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) के उद्देश्य के प्रतिकूल है। गौरतलब है कि डब्ल्यू.टी.ओ. दुनिया को वैश्विक गांव बनाने का सपना लिए हुए एक ऐसा वैश्विक संगठन है जो व्यापार एवं वाणिज्य को सहज एवं सुगम बनाने का उद्देश्य रखता है। यद्यपि डब्ल्यू.टी.ओ. 1 जनवरी, 1995 से प्रभावी हुुआ परंतु वास्तव में यह 1947 में स्थापित एक बहुपक्षीय व्यापारिक व्यवस्था प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (गैट) के नए एवं बहुआयामी रूप में अस्तित्व में आया हैै। जहां गैट वार्ताएं वस्तुओं के व्यापार एवं बाजारों में पहुंच के लिए प्रशुल्क संबंधी कटौतियों तक सीमित रही थीं, वहीं इससे आगे बढ़कर डब्ल्यू.टी.ओ. का लक्ष्य वैश्विक व्यापारिक नियमों को अधिक कारगर बनाने के प्रयास के  साथ-साथ सेवाओं एवं कृषि में व्यापार पर वार्ता को व्यापक बनाने का रहा है, किन्तु डब्ल्यू.टी.ओ. के 23 वर्षों बाद विकासशील देशों के करोड़ों लोग यह अनुभव कर रहे हैं कि डब्ल्यू.टी.ओ. के तहत विकासशील देशों का शोषण हो रहा है। 

ऐसे में दुनिया के अर्थविशेषज्ञों का कहना है कि अमरीका के संरक्षणवादी रवैये से निश्चित रूप से वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंकाएं बढ़ रही हैं। अतएव इस बात पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना जरूरी है कि यदि विश्व व्यापार व्यवस्था वैसे काम नहीं करती जैसे कि उसे करना चाहिए तो डब्ल्यू.टी.ओ. ही एक ऐसा संगठन है जहां इसे दुरुस्त किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो दुनिया भर में विनाशकारी व्यापार लड़ाइयां ही 21वीं शताब्दी की हकीकत बन जाएंगी।ऐसे में वैश्विक व्यापार युद्ध की नई चिंताओं के मद्देनजर यह बात आगे बढ़ाई जानी होगी कि डब्ल्यू.टी.ओ. के तहत सदस्य देशों के बीच पूंजी प्रवाह नियंत्रण मुक्त है तो अमरीका सहित विकसित देशों में वस्तुओं एवं सेवाओं का व्यापार तथा श्रम और प्रतिभा प्रवाह भी नियंत्रण मुक्त रहने चाहिएं। यह बात भी आगे बढ़ाई जानी होगी कि विभिन्न देश एक-दूसरे को व्यापारिक हानि पहुंचाने की होड़ लगाने की बजाय डब्ल्यू.टी.ओ. के मंच से ही वैश्वीकरण के दिखाई दे रहे नकारात्मक प्रभावों का उपयुक्त हल निकालें।-डा. जयंतीलाल भंडारी


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