क्या अव्यवस्था की तारीफ करने के लिए कोई आइंस्टीन पैदा होगा

punjabkesari.in Monday, Jun 18, 2018 - 03:07 AM (IST)

ऐसा माना जाता है कि आइंस्टीन ने कभी कहा था, ‘‘यदि एक अव्यवस्थित टेबल एक अव्यवस्थित मन का संकेत है तो एक अव्यवस्थित डैस्क किस चीज का संकेत है?’’ मुझे खेद सहित कहना पड़ता है कि इस सवाल ने मुझे बार-बार कचोटना शुरू कर दिया है। 

मेरा डैस्क तो एकदम साफ-सुथरा, पवित्र तथा किसी प्रकार के भी कागजों से मुक्त होता है। यह बहुत सलीके से लगाया गया होता है और भयभीत करने की हद तक सुव्यवस्थित होता है। जब तक आइंस्टीन ने विपरीत टिप्पणी नहीं की थी, तब तक मैं पूरी तरह इस विश्वास से इतराया हुआ था कि मेरा डैस्क शुभ गुणों, अनुशासन, उच्च बौद्धिकता तथा स्पष्ट चिंतन का प्रमाण था लेकिन अब मैं यह बात पूर्ण विश्वास से नहीं कह सकता। 

इसलिए मुझे एक बेबाक स्वीकारोक्ति करने दें। मैं उस किस्म का व्यक्ति हूं जो अपने पूरे सामान को सलीके से सजा कर रखता है। हर चीज अपनी निर्धारित जगह पर होती है और इसे इधर से उधर नहीं किया जा सकता। यदि मेहमान किन्हीं छोटे-मोटे आभूषणों को थोड़ा-बहुत इधर से उधर कर दें तो मैं आने-बहाने उन्हें फिर से इस ढंग से उनके मूल स्थान पर रख देता हूं जैसे मैं यह काम जानबूझकर न कर रहा होऊं। मेरे साथ 15 वर्ष बिताने के बाद तो मेरे नौकर भी मेरे जैसे हो गए हैं। प्रत्येक पुस्तक, तस्वीर, ऐश-ट्रे, छोटी-मोटी प्रतिमाएं अथवा कोई कटोरा अपने निर्धारित स्थान पर ही होता है। 

उदाहरण के तौर पर देव प्रतिमाएं मेरे बिस्तर के साथ रखे मेज पर सुशोभित होती हैं। ये प्रतिमाएं मुझे माता जी ने तब दी थीं जब 16 वर्ष की आयु में मैं इंगलैंड के लिए रवाना हुआ था और मैंने इन्हें सौभाग्य के प्रतीक मान कर स्वीकार कर लिया था। ये प्रतिमाएं भी सावधानीपूर्वक तय किए गए क्रम में ही होती हैं। भगवान कृष्ण की मूर्ति देवी लक्ष्मी के आगे स्थित होती है जबकि गणेश जी की मूर्ति देवी के बाईं ओर होती है और तीनों के गिर्द रुद्राक्ष की माला होती है। टेबल लैम्प भगवान कृष्ण की मूर्ति से लगभग घड़ी के 2 बजे की स्थिति में होता है जबकि निशा (मेरी पत्नी) की तस्वीर भगवान गणेश की तस्वीर से 10 बजे की स्थिति में होती है। 

अब आप ही मुझे बताएं कि मेरी मन: स्थिति के बारे में इससे क्या पता चलता है? जब मैं 20 वर्ष का था तो मेरी मौसेरी बहन माला ने 1976 में अपनी कैम्ब्रिज यात्रा के दौरान इसका बिल्कुल सटीक उत्तर ढूंढ लिया था, उसने कहा : ‘‘तुम पागल हो।’’ जैसे ही वह मेरे घर में प्रविष्ट होती है वह चीजों को इधर-उधर करना शुरू कर देती है और अन्य मेहमानों  को कहती है: ‘‘अब उसकी हरकतें देखना।’’ जब मैं चीजों को फिर से उनके निर्धारित स्थान पर रखना शुरू कर देता हूं तो वे सभी ठहाके लगाकर हंसते हैं। 

दूसरी ओर बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें लेशमात्र भी यह आभास नहीं होता कि उनका सामान किस निर्धारित स्थान पर होगा? यह तो तय है कि सामान उन्हीं का होता है लेकिन क्या यह अलमारी में होगा या ड्राइनिंग टेबल पर, सीढिय़ों के नीचे होगा या कार की डिग्गी में-इस बारे में वे कुछ भी निश्चय से नहीं कह सकते। इस स्थिति का सबसे अजीब पहलू यह है कि उनके लिए इसका कोई अर्थ नहीं होता। प्रत्यक्ष अफरा-तफरी और अव्यवस्था उनके मन की मौज को बिल्कुल ही विचलित नहीं करती और न ही उनकी आत्मा को परेशान करती है। लेकिन उनकी जगह मैं होऊं तो पूरी रात वस्तुओं को उनके निर्धारित स्थान पर टिकाता रहूंगा। 

अब आप मुझे बताएं कि इससे ऐसे लोगों की मन:स्थिति के बारे में क्या संकेत मिलता है? इसके लिए आइंस्टीन का उत्तर है कि ‘कुछ भी नहीं।’ यानी कि घरेलू साजो-सामान  की अव्यवस्था और इसके मालिक की मन:स्थिति में कोई संबंध नहीं होता। एक व्यक्ति फटेहाल, गैर अनुशासित और अव्यवस्थित होते हुए भी होनहार हो सकता है। दूसरी ओर कोई अन्य व्यक्ति सलीकेदार, संयमित, साफ-सुथरा और अनुशासित होने के बावजूद उल्लू का पट्टा हो सकता है। आप यह बात मानें या न मानें, अमरीकियों ने इस विषय पर एक अध्ययन शुरू किया हुआ है जिसका नाम है ‘मैस एनैलेसिस’ यानी कि अव्यवस्था का विश्लेषण। लेखक इनविन कुल्ला का दावा है कि ‘‘सलीकेदारी जानलेवा और अपवित्र हो सकती है।’’ यानी कि जितना आप मुझे कम पसंद करते हैं उतना ही आपका अधिक प्रतिभाशाली होना तय है। 

न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार 2 भद्र पुरुष फ्रीडमैन और अब्राह्मसन शीघ्र ही एक पुस्तक प्रकाशित करने जा रहे हैं-‘‘ए परफैक्ट मैस : हिडन बैनीफिट ऑफ डिसआर्डर’’ (अव्यवस्था के छिपे हुए लाभ)।  इसमें उन्होंने दावा किया है कि अव्यवस्था अपने आप में गुंजायमान हो सकती है। यह गुंजायमानता बहुत दूर तक प्रभावी हो सकती है। यहां तक कि  विशाल जगत के साथ भी अपने संबंध सूत्र जोड़ सकती है। ऐसा लगता है कि इस सच्चाई का प्रमाण पैंसिलिन के आविष्कारक एलैक्जैंडर फ्लेमिंग के समय से ही मौजूद है क्योंकि उन्होंने पैंसिलिन का आविष्कार ही तब किया था जब उनकी प्रयोगशाला पूरी तरह अव्यवस्थित थी। 

यदि ये सभी बातें सच हैं (और हो भी सकती हैं) तो इससे स्वत:ही यह निष्कर्ष निकलता है कि इस बात का कोई अर्थ नहीं कि आप अपनी ट्यूब में से टुथपेस्ट किस तरीके से निकालते हैं और आपके मेज पर कितने कागज बिखरे हुए हैं या फिर आपकी अलमारी में कपड़े किस तरह ठूंसे हुए हैं। न्यूयार्क टाइम्स का निष्कर्ष है : ‘‘अव्यवस्था यह प्रमाणित करती है कि आप कितने दिलचस्प आदमी हैं।’’ और इसके विपरीत क्या है? यदि आप टुथपेस्ट की ट्यूब को नीचे से दबाते हुए ऊपर की ओर ले जाते हैं या फिर अपने कामकाज को समाप्त करने पर हर बार अपनी मेज पर से कचरा साफ कर देते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि आपकी पैंट और कमीज सलीके से तह लगाकर टांगी गई हो तो आपके व्यवहार का पूर्वानुमान लगाना संभव है और साथ ही आप बोरिंग भी होंगे। 

इसलिए शेष वर्ष के लिए आपके साथ मेरा वायदा है कि मैं अपने कपड़े पूरे बैडरूम में यहां-कहां फैंकता रहूंगा। रोटी के टुकड़े गलीचे पर बिखेरता रहूंगा और रात के समय जब भी फ्रिज खोलने की जरूरत पड़ी तो दूध भी गिराया करूंगा। बात केवल इतनी है कि मेरी इस नई खूबी की प्रशंसा करने के लिए क्या कोई आइंस्टीन अवतरित होगा? मेरे नौकर तो निश्चय ही इसकी प्रशंसा नहीं करेंगे।-करण थापर


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