इलेक्शन डायरी: हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने के चक्कर में मद्रास से साफ हुई थी कांग्रेस

punjabkesari.in Monday, Apr 22, 2019 - 10:38 AM (IST)

इलेक्शन डेस्क: पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को हम ‘जय जवान, जय किसान’ के नारे से ही याद करते हैं लेकिन उनके कार्यकाल में भी उनसे एक ऐसी चूक हो गई थी जिसके चलते दक्षिण भारत जल उठा था और तमिलनाडु में हिंसक प्रदर्शन हुए थे। पूरा बवाल हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के तौर पर लागू करने को लेकर हुआ था।
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दरअसल 1950 में जब देश का संविधान लागू हुआ तो देश की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं थी और राज्यों और केंद्र के मध्य आधिकारिक तौर पर अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल होता था। हालांकि जिन राज्यों में हिंदी प्रचलित भाषा थी वहां हिंदी में ही आधिकारिक कामकाज होता था। राष्ट्रीय भाषा पर सहमति बनाने के लिए 15 साल का समय निर्धारित किया गया और यह समय 26 जनवरी 1965 को पूरा हो रहा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इस मामले में बनी कमेटी की सिफारिशों के आधार पर केंद्र सरकार की नौकरियों और अन्य स्थानों पर योग्यता के लिए हिंदी की अनिवार्यता की घोषणा कर दी। 
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हालांकि यह पहले से तय योजना के आधार पर हो रहा था लेकिन शास्त्री जी को इसके विरोध का अंदाजा नहीं था और इस घोषणा के बाद मद्रास में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए। डी.एम.के. ने इसे मुद्दा बनाया और 1967 के चुनाव में कांग्रेस मद्रास से साफ हो गई। 1962 में उसे मद्रास की 41 में से 31 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि 1967 में वह 3 सीटों पर सिमट गई और डी.एम.के. को भारी-भरकम जीत हासिल हुई। 
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Pardeep

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