बासपुर की फिजा से गायब हो रही ‘बासमती की महक’

punjabkesari.in Friday, Mar 15, 2019 - 05:48 AM (IST)

बासपुर एक छोटा-सा गांव है, जो जम्मू जिले के आर.एस.पुरा विधानसभा क्षेत्र में स्थित है। यह पाकिस्तान के साथ लगती सीमा से मुश्किल से 2 किलोमीटर पीछे होगा। किसानों की बहुलता वाले इस गांव में कुछ संख्या दुकानदारों, छोटे-मोटे व्यापारियों तथा मजदूरों की है। गांव में एक मंदिर और गुरुद्वारा भी स्थित है, जो यह दर्शाता है कि यहां के लोग मेहनती तथा धार्मिक प्रवृत्ति के हैं।

अपराधों का कोई नामो-निशान नहीं तथा माहौल में लोगों की आपसी सांझ,प्यार तथा सद्भावना की महक घुली हुई महसूस होती है। एक अन्य महक के साथ भी इस क्षेत्र की पहचान जुड़ी हुई है तथा वह है इस धरती से पैदा होने वाली ‘बासमती की महक’। हालात के थपेड़ों, समय के चक्कर, पानी की कमी तथा सब से बढ़ कर सीमावर्ती क्षेत्रों के अति नाजुक माहौल के कारण अब बासमती की महक बासपुर की फिजा से गायब होती जा रही है। इस क्षेत्र तथा आसपास के हालात को जानने-समझने तथा समूचे आर.एस. पुरा क्षेत्र की तस्वीर पर नजर डालने का मौका तब मिला, जब पंजाब केसरी पत्र समूह की टीम 500वें ट्रक की राहत सामग्री वितरित करने के लिए बासपुर गांव में पहुंची थी। 

विदेशों में भी पसंद की जाती है बासमती’ : आर.एस. पुरा के साथ-साथ सांबा, कठुआ तथा जम्मू से संबंधित जमीनों में किसानों द्वारा उगाई जाने वाली बासमती को विदेशों में भी बेहद पसंद किया जाता है। इस क्षेत्र के 45 हजार हैक्टेयर (लगभग 1 लाख 15 हजार एकड़) रकबे में बासमती की खेती की जाती थी लेकिन अब यह रकबा कम होने लगा है। किसी समय आर.एस.पुरा सैक्टर के गांवों (बासपुर, अब्दुलियां, सुचेतगढ़, बिश्नाह, त्रेवा, अरनिया आदि) में पैदा की जाने वाली बासमती की तूती बोलती थी। इसके चावल का आकार, खुशबू तथा स्वाद किसी भी अन्य क्षेत्र में पैदा की जाने वाली बासमती के मुकाबले अलग तथा उत्तम था। यही कारण था कि किसानों से सस्ते भाव में फसल खरीदने के बाद व्यापारियों ने इसके चावल को विभिन्न ब्रांड-नामों से देश-विदेश की मंडियों तथा बाजारों में पहुंचा कर हाथ रंग लिए। आर.एस. पुरा की बासमती अमरीका, कनाडा, आस्ट्रेलिया के स्टोरों में भी पहुंच गई तथा वहां के खपतकारों की पहली पसंद बन गई। 

चिनाब के पानी का असर : जम्मू क्षेत्र की बासमती के जिस बढिय़ा स्वाद, महक तथा गुणवत्ता के कारण इसको हर जगह पसंद किया जाता है, उसका कारण फसल के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला चिनाब नदी का पानी है। जमीन की उपजाऊ शक्ति तथा पानी के पोषक तत्वों ने इस क्षेत्र की बासमती को लोगों की पसंद के शिखर पर पहुंचा दिया। चिनाब के पानी को खेतों तक पहुंचाने में रणबीर कैनाल बड़ी भूमिका निभा रही है। कड़वी हकीकत यह है कि आर.एस. पुरा सैक्टर तथा अन्य क्षेत्रों की जमीनों की सिंचाई के लिए अब इस नहर का पानी बहुत कम समझा जा रहा है। पानी की कमी ने बासमती की खेती पर प्रभाव डाला है तथा धीरे-धीरे इसकी खेती का क्षेत्र कम होने लगा है।

हजारों एकड़ जमीन की फसल उगाने हेतु नहरी पानी की कमी को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया। किसान काफी हद तक बरसात पर निर्भर करते हैं, जो आवश्यकतानुसार कभी नहीं होती। किसी मौसम में बाढ़ तथा किसी में सूखा। गेहूं की मौजूदा फसल भी कई क्षेत्रों में बेमौसमी बारिश के कारण बर्बाद हो गई है। अगर हालात यही रहे तो बासमती की फसल पर संकट गहरा हो सकता है। 

नवांशहर के बासमती-गांव : आर.एस. पुरा (रणबीर सिंह पुरा) को नवांशहर के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण यह है कि महाराजा रणबीर सिंह के राज के दौरान सन् 1800 के आसपास इस शहर का निर्माण बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से किया गया था। महाराजा के दीवान जवाला सहाय ने इसके निर्माण में पूरी नवीनता इस्तेमाल की तथा इसलिए इसका नाम ‘नवांशहर’ ही प्रसिद्ध हो गया।

वर्ष 2015 में भाजपा-पी.डी.पी. गठबंधन की प्रदेश सरकार ने आर.एस.पुरा क्षेत्र के तीन गांवों को ‘बासमती गांव’ घोषित किया था तथा इस मकसद से 3 करोड़ रुपए की राशि भी अलॉट की थी। स्कीम का मकसद कोरोटाना खुर्द, विधिपुर तथा सुचेतगढ़ नामक गांवों को केवल बासमती की फसल के साथ जोडऩा था। इन गांवों के 200 एकड़ रकबे की निशानदेही की गई तथा इस प्रोजैक्ट को विकसित करने का बड़ा जिम्मा शेरे-कश्मीर खेतीबाड़ी यूनिवॢसटी को सौंपा गया था। बाद में गठबंधन की सरकार टूट गई तथा अन्य प्रोजैक्टों की तरह ‘बासमती गांव’ का कार्य भी लटक गया। बासमती की पैदावार के नजरिए से यह भी एक बड़ा झटका था। 

मिलावटखोरों की चोट : इस क्षेत्र की बासमती को क्षति पहुंचाने में अन्य कारणों के साथ-साथ जहां सीमा पार से की जाती गोलीबारी काफी हद तक जिम्मेदार है, वहीं मिलावटखोरों ने भी इसको नुक्सान पहुंचाया है। यहां के चावल में अन्य क्षेत्रों का चावल मिलाकर तथा ऊपर ब्रांड की मोहर लगाकर इसको बेचा जा रहा है। इस कारण स्थानीय फसल की बेकद्री हो रही है तथा किसान नुक्सान सहन कर रहे हैं, जबकि मुनाफा व्यापारी लोग कमा रहे हैं। इस गोरखधंधे में कुछ शैलर वाले, सरकारी अधिकारी तथा निर्यातक भी मिले हुए हैं। इसके साथ ही ब्रांड के नाम पर खपतकारों के साथ भी धोखा हो रहा है तथा उनको बढिय़ा चावल की जगह घटिया चावल बेचा जा रहा है। 

गन्ना हुआ गायब’ : आर.एस. पुरा सैक्टर को बासमती तथा गेहूं के बाद गन्ने की खेती के लिए भी जाना जाता है। देश के  बंटवारे के समय यहां एक बड़ी चीनी मिल थी, जहां आसपास के गांवों के अलावा मौजूदा पाकिस्तानी क्षेत्र के किसान भी अपना गन्ना लेकर आते थे। 1947 के बाद पाकिस्तान की ओर से गन्ना आना बंद हो गया तथा इस तरफ के किसान भी इस फसल से विमुख हो गए। आज स्थिति यह बन गई है कि खेतों में गन्ने की फसल देखने को भी नहीं मिलती। चीनी मिल भी अपना अस्तित्व खो बैठी है। गन्ने को छोडऩे वाले किसान अन्य फसलों की ओर मुड़ गए हैं। बहुत कम जमीन में सब्जियों की खेती की जाती है तथा इस क्षेत्र में बागवानी के प्रति भी किसानों की कोई दिलचस्पी नहीं प्रतीत होती। कुल मिलाकर किसानों का ज्यादा जोर गेहूं पर ही है। 

डोगरी भाषा का बोलबाला : आर.एस. पुरा के साथ-साथ सांबा, कठुआ, अरनिया आदि क्षेत्रों में डोगरी भाषा का बोलबाला है। इस क्षेत्र की 80 प्रतिशत आबादी हिन्दू है तथा ये सभी लोग डोगरी ही बोलते हैं। इस क्षेत्र में दूसरे नम्बर पर पंजाबी बोली जाती है, जबकि लङ्क्षहदी भाषा तथा हिन्दी बोलने वालों की संख्या बहुत कम है। डोगरी भाषा में  बहुत लय तथा लहजे में मिठास होती है तथा इसको समझने में कोई मुश्किल नहीं आती। इसके साथ ही इस क्षेत्र ने बहुत से प्राचीन रीति-रिवाजों, रस्मों, त्यौहारों आदि को संभाल कर रखा हुआ है। सुआनियां में अपने घरों को संवारने -सजाने का बहुत शौक देखने को मिलता है।-जोगिन्द्र संधू


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News