पाक अधिकृत कश्मीर पर दावे का अब क्या होगा...!

punjabkesari.in Tuesday, Aug 06, 2019 - 04:33 AM (IST)

नई दिल्ली(राजेन्द्र तिवारी): जम्मू-कश्मीर को लेकर करीब दस दिनों से चल रही अटकलें खत्म हो गईं। संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बना दिया गया और 35ए को खत्म कर दिया गया। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित क्षेत्रों में बांट दिया गया - लद्दाख केंद्र शासित क्षेत्र और जम्मू व कश्मीर संभाग केंद्र शासित राज्य। यह सब अनुच्छेद 370 को ही इस्तेमाल करते हुए किया गया है। इसके साथ ही अब जम्मू-कश्मीर का संविधान भी निष्प्रभावी हो गया। 

ऐसा नहीं है कि इस तरह से संवैधानिक आदेश पहली बार निकाले गये हों। पचास के दशक से ही इस तरह से संवैधानिक आदेश जारी होते रहे हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि तब जम्मू-कश्मीर विधानसभा की संस्तुति पर ऐसा किया जाता था, लेकिन इस बार वहां विधानसभा भंग है और केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपाल की संस्तुति का सहारा लिया गया। 

भारतीय जनता पार्टी और उससे पहले जनसंघ का शुरू से यह मुद्दा रहा है। जब पहली बार भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी थी, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि चूंकि हमारी पार्टी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है और इसलिए हम इन मुद्दों को फिलहाल किनारे रखकर चल रहे हैं। अब जब बहुमत मिला, भाजपा नेतृत्व ने चुनाव जीतने के बाद पहले संसद सत्र में ही 370 को निष्प्रभावी बनाने का फैसला कर दिया। इस के पक्ष व विरोध में मजबूत तर्क हो सकते हैं और दोनों तरह के तर्क अपनी-अपनी जगह सही भी हो सकते हैं। लेकिन भाजपा ने यह कदम उठाकर विचारधारा के मामले में दिवालियेपन के शिकार विपक्षी दलों को एक बार फिर चौराहे पर खड़ा कर दिया है। 

बड़ा सवाल है कि क्या ऐसा करके भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर पर अपने दावे को वापस ले लिया है? अभी तक पूरा जम्मू-कश्मीर भारत के नक्शे में दिखाया जाता है और अभी तक जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में पाक अधिकृत क्षेत्रों के लिए 25 सीटें रखी गईं थीं। लेकिन अब जब केंद्र ने जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन कर नये बने दोनों केंद्र शासित क्षेत्रों को निर्धारित कर दिया है तो फिर मुजफ्फराबाद (पाकिस्तान की भाषा में आजाद कश्मीर) और गिलगिट व बाल्टिस्तान स्वत: भारत से सैद्धांतिक रूप से बाहर हो गए प्रतीत होते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो केंद्र सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर रियासत के इन हिस्सों के लिए क्या व्यवस्था की गई है? 

हालांकि आज देशभर में हर जगह इस मुद्दे पर केंद्र को समर्थन मिलता दिखाई दे रहा है। लेकिन इस फैसले के बाद की चुनौतियां बहुत गंभीर हो सकती हैं। पहली चुनौती यह कि क्या यह फैसला लीगल आधार पर खरा उतर सकेगा, दूसरी चुनौती जम्मू-कश्मीर की जनता, वहां की मुख्यधारा की पार्टियों और अलगाववादियों की प्रतिक्रिया और तीसरी चुनौती संयुक्त राष्ट्र व पाकिस्तान को लेकर। फिलहाल केंद्र सरकार ने चाक-चौबंद व्यवस्था कर जम्मू-कश्मीर का मुंह बंद कर रखा है। वहाँ की क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां नेशनल कॉन्फ्रेंस,  पीडीपी, कांग्रेस की स्थानीय इकाई और हाल ही में वजूद में आई पूर्व आईएएस अधिकारी शाह फ़ैसल की पार्टियां सरकार के इस फ़ैसले का विरोध कर रहे हैं। पूरे राज्य में धारा 144 लगी हुई है। इसलिए भीड़ के रूप में इकट्ठा होकर इस फैसले के खिलाफ लोग बाहर नहीं निकल सकते। पर अनंतकाल तक तो यह स्थिति रहेगी नहीं। 

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस फैसले को गैरकानूनी करार दिया है और कहा है कि वह सभी मौजूद विकल्पों का इस्तेमाल करेगा। पिछले दिनों पाक प्रधानमंत्री इमरान खान की अमेरिका यात्रा के दौरान कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता संबंधी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान का भी अब नया अर्थ लगाया जाने लगा है। यह आशंकाएं भी जताई जा रही हैं कि कहीं इस मसले में अमेरिका न कूद पड़े। यदि ऐसा हुआ तो केंद्र सरकार के लिए बहुत मुश्किल होगी। कहावत है कि चले थे हरि भजन को ओटन लगे कपास। अमेरिका कूदा तो भारत की स्थिति इसी कहावत के अनुरूप हो जाएगी।
 


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Pardeep

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