पहले पति से नहीं हुआ तलाक, फिर भी दूसरे पति से गुजारा भत्ता ले सकती हैं महिलाएं: सुप्रीम कोर्ट

punjabkesari.in Saturday, Feb 08, 2025 - 02:36 PM (IST)

नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि एक महिला को उसके दूसरे पति से गुजारा भत्ता मिल सकता है, भले ही उसका पहला विवाह कानूनी रूप से समाप्त न हुआ हो। यह फैसला दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत हुआ, जिसमें पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार दिया गया है। यह मामला एक महिला से जुड़ा है, जिसने 2005 में अपने पहले पति से एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद अलग होने का निर्णय लिया था। हालांकि, तलाक का कोई औपचारिक आदेश नहीं हुआ था। बाद में महिला ने 2005 में अपने पड़ोसी से शादी की। दोनों के बीच कुछ समय बाद मतभेद हुए, और फरवरी 2006 में फैमिली कोर्ट ने उनके विवाह को रद्द कर दिया। हालांकि, दोनों के बीच सुलह हो गई और उन्होंने फिर से शादी कर ली।

गुजारा भत्ता की मांग

वर्ष 2008 में महिला को एक बेटी हुई, लेकिन फिर से दंपत्ति के बीच विवाद उत्पन्न हो गया। महिला ने दहेज निषेध अधिनियम के तहत अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ शिकायत दर्ज की। इसके बाद, महिला ने अपने और अपनी बेटी के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता मांगने का फैसला किया। फैमिली कोर्ट ने महिला के पक्ष में निर्णय दिया, लेकिन पति ने इसे चुनौती दी। तेलंगाना हाईकोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला सुनाते हुए गुजारा भत्ता देने का आदेश खारिज कर दिया। दूसरे पति का तर्क था कि महिला की पहली शादी अब भी कानूनी रूप से कायम है, इसलिए उसे उसकी कानूनी पत्नी नहीं माना जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय का आदेश पलटते हुए महिला के पक्ष में फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण का अधिकार किसी पत्नी का निजी अधिकार नहीं बल्कि पति का नैतिक और कानूनी कर्तव्य है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सामाजिक कल्याण की दिशा में ऐसे प्रावधानों की व्याख्या को सख्त तरीके से नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे मानवीय उद्देश्य प्रभावित हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे पति को महिला को गुजारा भत्ता देने का आदेश देते हुए कहा कि भरण-पोषण का अधिकार महिला को मिलना चाहिए, चाहे उसका पहला विवाह अभी तक कानूनी रूप से समाप्त न हुआ हो।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का महत्व

यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है। इससे यह स्पष्ट हो गया कि भरण-पोषण का अधिकार सिर्फ वैध विवाह के तहत नहीं होता, बल्कि महिला की सामाजिक और कानूनी स्थिति को ध्यान में रखते हुए उसे यह अधिकार मिल सकता है। इस फैसले से कई महिलाओं को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है, जो अलगाव या विवादों के बावजूद अपने और अपने बच्चों के लिए भरण-पोषण की मांग करती हैं।

 


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Content Editor

Ashutosh Chaubey

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