Property Inherited: सुप्रीम कोर्ट की अहम सलाह: महिलाओं का अपनी जायदाद का वसीयत बनाना अब जरूरी, पति भी नहीं कर पाएगा दावा!
punjabkesari.in Thursday, Nov 20, 2025 - 12:39 PM (IST)
नई दिल्ली: देश की महिलाएं ध्यान दें! अगर आप अपनी कमाई या माता-पिता से मिली संपत्ति को सुरक्षित रखना चाहती हैं और चाहते हैं कि मृत्यु के बाद कोई विवाद न हो, तो सुप्रीम कोर्ट की सलाह मानना अब जरूरी है। अदालत ने स्पष्ट कहा है कि वसीयत बनाकर महिलाएं अपनी संपत्ति के अधिकार तय कर सकती हैं, और इस कदम से पति सहित कोई भी अनावश्यक दावे नहीं कर पाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इसी विषय पर बुधवार को महत्वपूर्ण टिप्पणी की और महिलाओं को अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए वसीयत बनाने की सलाह दी।
वसीयत का महत्व
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना वसीयत के, हिंदू महिला की संपत्ति का स्वाभाविक उत्तराधिकारी उसका पति बन जाता है, चाहे वह संपत्ति महिला की खुद की कमाई से हुई हो या माता-पिता से मिली हो। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि समय रहते वसीयत बनाना महिलाओं के लिए सर्वोत्तम उपाय है, ताकि संपत्ति पर विवाद न हो और अनावश्यक मुकदमों से बचा जा सके।
मामला और कानूनी संदर्भ
यह टिप्पणी उस याचिका के सिलसिले में दी गई, जिसमें हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15(1)(b) को चुनौती दी गई थी। इस प्रावधान के तहत, यदि कोई हिंदू महिला बिना वसीयत, संतान और पति के मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति पर पति के वारिसों का अधिकार माता-पिता से ऊपर माना जाएगा।सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन शामिल थे, ने सुनवाई के दौरान कहा कि महिलाओं को अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए वसीयत बनानी चाहिए, चाहे वह संपत्ति स्वयं अर्जित की गई हो या माता-पिता से मिली हो।
केंद्र का पक्ष
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि 1956 में कानून बनाने वालों ने वैज्ञानिक ढांचा तैयार किया था। उन्होंने बताया कि उस समय यह सोचना मुश्किल था कि महिलाएं इतनी बड़ी मात्रा में खुद की कमाई की संपत्ति की मालिक बनेंगी। लेकिन धारा 30 महिलाओं को अपनी संपत्ति अपनी इच्छा अनुसार वसीयत करने का अधिकार देती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी हिंदू महिला की मृत्यु के बाद उसके माता-पिता या उनके वारिस संपत्ति का दावा करें, तो पूर्व-मुकदमे की मध्यस्थता (pre-litigation mediation) जरूरी होगी। इस प्रक्रिया में तय समझौते को अदालत के निर्णय के समान प्रभावशाली माना जाएगा।
