नज़रिया : तो क्या अमेरिका से ही चीन चले जाएंगे करमापा?

punjabkesari.in Monday, Nov 12, 2018 - 07:21 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): क्या तिब्बतियों के दूसरे सबसे बड़े धर्मगुरु करमापा यानी उग्येन त्रिनले दोरजे चीन चले जाएंगे? यह सवाल आजकल धर्मशाला से लेकर ल्हासा बरास्ता भूटान सब जगह पूछा जा रहा है। सिर्फ बौद्ध धर्म से संबंधित अनुयायिओं में ही नहीं, बल्कि दिल्ली, वॉशिंगटन और बीजिंग की सत्ता के गलियारे भी इस मसले पर कानाफूसी कर रहे हैं। यह अलग बात है कि कहीं से कोई आधिकारिक पुष्टि या बयान नहीं आ रहा। लेकिन जिस तरह से करमापा का अमेरिका प्रवास लंबा खिंचा है, उसके चलते इन चर्चाओं को और अधिक बल मिल रहा है। 
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बता दें कि करमापा पिछले सवा साल से भारत से बाहर हैं और अमेरिका के न्यूजर्सी शहर में रह रहे हैं। ऐसा पहली बार है कि भारत में शरणागत कोई तिब्बती धर्मगुरु इतने अरसे से भारत से बाहर है। आम तौर पर यह अवधि छह माह की समय सीमा से बंधी है। लेकिन करमापा को 14 माह हो गए हैं। पिछली बार जब उनको लेकर ऐसी ही चर्चाएं उठी थीं तो उनके धर्मशाला स्थित कार्यालय से एक चिट्ठी जारी कर कहा गया था कि वे जल्द लौटेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। छह माह और बीत चुके हैं। यहां तक कि करमापा ने लोसर और मोलाम जैसे बौद्ध उत्सव भी अमेरिका में ही मनाए, जबकि सामान्यत: ऐसे अवसर पर दलाई लामा भी धर्मशाला में ही रहते हैं। तो क्या उग्येन त्रिनले दोरजे अमेरिका से ही चीन चले जायेंगे ? यह प्रश्न अब अपना सिर उठाने लगा है ।
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क्यों है करमापा को लेकर विवाद 
करमापा को लेकर पहले ही दिन से विवाद है। गाहे-बगाहे उनके चीनी कनेक्शन को लेकर चर्चा होती रही है। कई बार उनको चीनी जासूस या चीन द्वारा प्लांटेड तक भी कहा गया है। हालांकि, ऐसी बातों पर तिब्बतियों के सर्वोच्च धर्मगुरु दलाई लामा कभी कुछ नहीं बोले, लेकिन इस सबके चलते दोनों के बीच में एक दूरी हमेशा दिखती रही है। करमापा 5 जनवरी 2000 को अचानक धर्मशाला में प्रकट हुए थे। उसके बाद बौद्ध जगत में काफी हलचल हुई थी। उन्हें धर्मशाला के सिद्धबाड़ी में रखा गया। कई दिन तक वहां रहने के बाद अंतत: वहीं उनका दफ्तर बना दिया गया। उस समय उनकी आयु को लेकर बड़ा विवाद हुआ था। निर्वासित समुदाय /सरकार में शक घर कर गया था कि कहीं करमापा नकली तो नहीं ? यहां तक कि उनके शरीर का बाकायदा टेस्ट हुआ था तब, जिसके बाद उन्हें  नाबालिग माना गया था। 


करमापा का जन्म 1985 में हुआ था और जब वे 2000 में भारत आये थे तो शारीरिक बनावट से कहीं से भी नाबालिग नहीं लगते थे। यह शक उनके भारत आगमन के रहस्यमयी तरीके के कारण ही उपजा था। यह संवाददाता उस प्रकरण की पूरी कवरेज कर रहा था। हालात ये थे कि धर्मशाला भारत समेत तमाम देशों खासकर चीन अमेरिका की कथित ख़ुफ़िया गतिविधियों का केंद्र बन गया था। खैर धीरे-धीरे स्थितयां सामान्य हुईं, लेकिन करमापा को लेकर विवाद समाप्त नहीं हुए। करमापा उसके बाद उनके ग्युतो मठ से भारतीय, चीनी करंसी और चीनी मोबाइल सिम बरामद होने को लेकर फिर से निशाने पर आए। मामला अभी तक न तो सुलझा है और न ही बंद हुआ है। उसके बाद ज़मीन की खरीद-फरोख्त को लेकर भी ग्युतो मठ चर्चा में रहा।  

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क्या जिनपिंग-ट्रम्प में हो गया है कोई समझौता?
बहरहाल, करमापा को लेकर सबसे बड़ी चर्चा अमेरिका और चीन के राष्ट्र प्रमुखों की मुलाक़ात के बाद शुरू हुई। इस साल के मध्य में ट्रम्प और जिनपिंग की मुलकात के बाद यह बात उड़ी थी कि दोनों में करमापा को चीन ट्रांसफर करने को लेकर समझौता हो गया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि उसी नीति के तहत करमापा चीन में ही रुके हुए हैं और अब शायद ही भारत लौटेंगे। दलाई लामा को चुनौती देने वाले चीनी प्रभाग की मानें तो करमापा को उपरोक्त सभी मामलों में फंसने का डर भी दिखाया गया है और उनका ब्रेनवॉश करके उनको चीन भेजे जाने की तैयारी है। हालांकि, इसकी पुष्टि तभी होगी, जब वे अमेरिका से भारत या चीन पहुंचेंगे। चर्चा को हवा इसलिए भी मिल रही है, क्योंकि ताज़ा दावों के विपरीत इस माह भी करमापा भारत नहीं आ रहे, जैसा कि कहा जा रहा था कि नवंबर में तो हर हाल में वे अमेरिका से वापसी करेंगे। ऐसे में सवाल यह है कि क्या करमापा चीन के पाले में चले जायेंगे।

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मोदी-दलाई में भी नहीं हुई मुलाकात 
चीन बौद्ध धर्म जगत के गुरुओं पर प्रभुत्व जमाना चाहता है, यह किसी से छुपा नहीं है। यह भी जग जाहिर है कि दलाई लामा के रहते यह संभव नहीं है। लेकिन पंचेन लामा और अन्य दूसरे धर्मगुरुओं को अपने पास रखकर चीन इस कोशिश में लगातार लगा हुआ है कि अब तिब्बती समुदाय को कोई और मौका नहीं दिया जाए। ऐसे में, अगर करमापा फिर से चीन लौटते हैं तो यह चीन की बड़ी जीत और दलाई लामा को बड़ा झटका होगा। बहरहाल, इन सब कोशिशों के बीच भारत चीन के रिश्ते भी अपनी अहम जगह रखते हैं। खासकर, जिस तरह से मोदी सरकार में प्रधानमंत्री और दलाई लामा के बीच अभी तक साढ़े चार साल के कार्यकाल में कोई मुलाकात नहीं हुई, उसे लेकर कई चर्चाएं स्वभाविक रूप से उभर आयी हैं। मसलन, क्या भारत जानबूझकर ऐसा कर रहा है ? हालांकि, इस बीच भारत ने दलाई लामा को पहली बार अरुणाचल यात्रा पर आधिकारिक रेड कारपेट दिया था। लेकिन कूटनीति के जानकार मान रहे हैं कि भारत दलाई लामा या करमापा को लेकर चीन से कोई विवाद मोल नहीं लेना चाहता। खासकर डोकलाम झगड़े के बाद। 

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करमापा के गुरु भी विवादित 
दरअसल, 17वें करमापा यानी उग्येन त्रिनले दोरजे अकेले ही विवादित नहीं हैं। तिब्बतियों के कग्यू सम्प्रदाय के इस धर्मगुरु के गुरु भी चीन कनेक्शन को लेकर खासे विवादित हैं। दिलचस्प ढंग से वे धर्मशाला के नज़दीक ही बैजनाथ के भट्टू में रहते हैं, लेकिन उनका ज्यादातर वक्त यहां नज़रबंदी और प्रतिबंधों में ही बीता है। करमापा से भी उनकी एकाध ही मुलाकात हुई है, वह भी काफी जांच-परख के बाद एक उत्सव के बहाने। इनका नाम ताई-सी-तू रिंपोचे है और वे अक्सर विवादों में ही रहे हैं। कग्यू सम्प्रदाय में उन्हें करमापा के गुरु का दर्जा हासिल है और उन्होंने ही 1981 में 16वें करमापा रैंगजुंग रिग्पे दोरजे की मृत्यु के बाद उउग्येन त्रिनले दोरजे को 17वां करमापा को चुना था, जो विवादों में रहा था। यानी वही चीन कनेक्शन। वैसे करमापा का आधिकारिक स्थान गंगटोक का रुमटेक मठ है। बरसों वहां जाने को लेकर प्रतिबंधित करमापा अब सिक्किम जाने को स्वतंत्र हैं, लेकिन देखना तो अब यही है कि वे धर्मशाला के सिद्धबाड़ी लौटते हैं या फिर बीजिंग ? 


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vasudha

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