स्त्री की नाभि छूना क्यों माना जाता है अशुभ? जानें इसके पीछे का चौंकाने वाला धार्मिक रहस्य
punjabkesari.in Tuesday, Sep 30, 2025 - 01:44 PM (IST)

नेशनल डेस्क : हिंदू शास्त्रों और पुराणों में मानव शरीर को मंदिर कहा गया है। इसमें हर अंग को किसी न किसी देवता का स्थान माना जाता है। इनमें नाभि का स्थान सर्वोच्च बताया गया है, क्योंकि गर्भावस्था के समय शिशु की नाल नाभि से जुड़ती है। यही जीवन का पहला केंद्र है। आयुर्वेद के अनुसार, नाभि से 72,000 नाड़ियां निकलती हैं जो पूरे शरीर में ऊर्जा और रक्त प्रवाह करती हैं। चरक संहिता में भी नाभि को 'प्राण का मूल स्थान' कहा गया है। इस कारण नाभि को छेड़ना या अशुद्ध भाव से स्पर्श करना शरीर और आत्मा दोनों के लिए दोषकारी माना गया है।
धार्मिक मान्यता: लक्ष्मी का निवास
धर्मशास्त्रों और पुराणों में नाभि को माता लक्ष्मी का स्थान बताया गया है। मान्यता है कि भगवान विष्णु की नाभि से कमल उत्पन्न हुआ था, जिस पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए। श्रीमद्भागवत महापुराण में भी उल्लेख है कि विष्णु की नाभि से निकला कमल ही लोकसमृद्धि का कारण बना। इसी वजह से स्त्री की नाभि को गृहलक्ष्मी की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। विवाह के बाद स्त्री को गृहलक्ष्मी कहा जाता है और उसकी नाभि को धन व सौभाग्य का द्वार समझा जाता है।
क्यों माना जाता है नाभि को छेड़ना दोषकारी?
धार्मिक मान्यता ही नहीं, आयुर्वेद भी बताता है कि नाभि से जुड़े विकार पूरे शरीर पर असर डालते हैं। सुश्रुत संहिता में लिखा है कि यदि नाभि क्षेत्र में असंतुलन होता है तो यह पाचन तंत्र, अग्नि और मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है। शारीरिक दृष्टि से नाभि को छेड़ना संक्रमण और रोग का कारण बन सकता है। वहीं धार्मिक मान्यता के अनुसार ऐसा करने से लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं और घर में दरिद्रता, तनाव और कलह का वातावरण बन सकता है।
अलक्ष्मी का भय
पद्म पुराण में कहा गया है कि जहां स्त्रियों का सम्मान नहीं होता, वहां लक्ष्मी का वास भी नहीं होता। स्त्री की नाभि का अपमान इसी श्रेणी में आता है। इसे अशुद्ध दृष्टि से देखना या छेड़ना न केवल शारीरिक रूप से हानिकारक है बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अशुभ परिणाम लाता है।
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दोष निवारण के उपाय
यदि भूलवश नाभि का अपमान हो गया हो तो शास्त्र इसके उपाय भी बताते हैं:
- शुक्रवार को माता लक्ष्मी को कमल का फूल, दीप और धूप अर्पित करना।
- नाभि पर शुद्ध घी या सरसों का तेल लगाकर "ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः" मंत्र का 108 बार जाप करना।
- कन्याओं को भोजन कराना और उनका आशीर्वाद लेना।
आयुर्वेद भी कहता है कि नाभि पर तेल लगाने से पाचन सुधरता है, शरीर में ऊर्जा संतुलित रहती है और मानसिक शांति बनी रहती है।
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