Himachal Rain: हिमाचल में क्यों हो रही तबाही? आखिर क्या है बारिश, भूस्खलन और बादल फटने की असली वजह
punjabkesari.in Friday, Sep 12, 2025 - 06:11 PM (IST)

नेशनल डेस्कः हिमाचल प्रदेश में मॉनसून सीजन अब तक का सबसे विनाशकारी साबित हो रहा है। प्रदेश में लगातार हो रही मूसलाधार बारिश, बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं ने भारी तबाही मचाई है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार, इस सीजन में अब तक 380 लोगों की दर्दनाक मौत हो चुकी है, जबकि 439 लोग घायल हुए हैं। वहीं, 40 लोग अभी भी लापता हैं, जिनकी तलाश जारी है। प्रकृति के इस रौद्र रूप ने प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा आघात पहुंचाया है। अब तक 4306 करोड़ रुपये से अधिक का भारी नुकसान हो चुका है, जिसमें सड़कों, पुलों, घरों और सरकारी संपत्तियों को हुए नुकसान का आकलन शामिल है। 6,734 से ज़्यादा घर क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, जिससे हजारों लोग बेघर हो गए हैं। कुल्लू, मंडी, कांगड़ा जैसे जिले विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं, जहां भूस्खलन और बाढ़ ने जनजीवन को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है।
हिमाचल प्रदेश में हो रही इतनी भारी बारिश, भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाओं के कई कारण हैं, जिनमें प्राकृतिक और मानवीय, दोनों कारक शामिल हैं। यह कोई एक घटना का परिणाम नहीं है, बल्कि कई कारकों का एक साथ काम करने का नतीजा है।
मानसून और पश्चिमी विक्षोभ का मिलना
हिमाचल प्रदेश में मॉनसून के दौरान हिमालय की तलहटी में एक कम दबाव का क्षेत्र (मॉनसून ट्रफ) बनता है। यह ट्रफ अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी भरी हवाओं को अपनी ओर खींचता है। इसी दौरान, भूमध्य सागर से उत्पन्न होने वाले पश्चिमी विक्षोभ भी भारत के उत्तरी हिस्से में आते हैं। जब ये दोनों प्रणालियां एक-दूसरे से मिलती हैं, तो यह वातावरण में हवा के ऊर्ध्वाधर संचलन को बढ़ाती हैं, जिससे बड़े और घने बादल बनते हैं। इसके परिणामस्वरूप कम समय में बहुत ज्यादा और तीव्र बारिश होती है, जो बाढ़ और भूस्खलन को बढ़ावा देती है।
जलवायु परिवर्तन (Climate Change)
वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी से वातावरण में नमी की मात्रा बढ़ रही है। यह अतिरिक्त नमी हवा को गर्म करती है, जिससे बादल बनने की प्रक्रिया और तेज होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा का पैटर्न बदल गया है। अब कम समय में ही बहुत अधिक बारिश हो रही है, जिसे 'अति तीव्र वर्षा' (Intense Rainfall) कहा जाता है। नाजुक पहाड़ी पारिस्थितिकी पर इस तरह की तीव्र बारिश का दबाव बहुत ज्यादा होता है।
हिमालय की भौगोलिक संवेदनशीलता
हिमालय एक युवा और भूवैज्ञानिक रूप से अस्थिर पर्वत श्रृंखला है। यह ढीली और असंगठित चट्टानों और मिट्टी से बनी है, जो इसे भूस्खलन के प्रति बहुत संवेदनशील बनाती है। इन पहाड़ों में जल निकासी की प्राकृतिक व्यवस्था भी बहुत कमजोर है, जिससे भारी बारिश का पानी आसानी से मिट्टी को संतृप्त कर देता है और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
अनियोजित और अनियंत्रित विकास
पिछले कुछ दशकों में हिमाचल में पर्यटन और शहरीकरण के कारण बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हुआ है। नदियों के किनारे और पहाड़ी ढलानों पर बिना किसी वैज्ञानिक योजना के किए गए निर्माण ने पहाड़ों की स्थिरता को बिगाड़ दिया है। सड़कों और राजमार्गों के लिए पहाड़ों की ढलानों को बेतरतीब ढंग से काटा गया है, जिससे मिट्टी ढीली हो गई है और भूस्खलन का खतरा कई गुना बढ़ गया है। कई बार भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में भी निर्माण की अनुमति दी गई है, जो आपदा को सीधे तौर पर निमंत्रण देता है।
वनोन्मूलन (Deforestation)
पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधकर रखती हैं और भूस्खलन को रोकती हैं। निर्माण कार्यों और अन्य मानवीय गतिविधियों के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई हुई है, जिससे मिट्टी का कटाव बढ़ा है और भूस्खलन की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं।
बादल फटने का कारण
बादल फटना, अत्यधिक तीव्र वर्षा की एक घटना है। यह तब होता है जब नमी से भरे बादल पहाड़ों से टकराते हैं और आगे नहीं बढ़ पाते। जब ये बादल एक ही जगह पर रुक जाते हैं, तो उनके अंदर की नमी एक छोटे से क्षेत्र में बहुत कम समय में एक साथ बरस जाती है, जिससे 100 मिमी प्रति घंटे या उससे भी अधिक की दर से बारिश होती है। पहाड़ों की भौगोलिक स्थिति और जलवायु परिवर्तन के कारण हवा का रुख बदलने से बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं।