आखिर क्यों न बने दिल्ली रेप कैपिटल...जब कानून की पेंचीदगियों में उलझा हो इंसाफ

punjabkesari.in Wednesday, Jul 31, 2019 - 05:21 AM (IST)

नई दिल्ली: उन्नाव प्रकरण में जिस तरह एक रेप पीड़िता पहले न्याय की चौखट पर अब अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रही है, उसी तरह करीब 23 हजार रेप पीड़िताएं दिल्ली की विभिन्न अदालतों में न्याय की आस में दर-दर भटक रही हैं। आरोपी जमानत पर बाहर हैं, और सख्त कानून बनने के बाद राजधानी दिल्ली में रेप की वारदातें कम नहीं हो रही हैं।  ये सच दिल्ली का है,जहां रेप पीड़िताओं की आस अक्सर न्याय की चौखट पर दम तोड़ती है। 

क्या कहते हैं दिल्ली पुलिस के आंकड़े:
वर्ष 2014 से अब तक दिल्ली में रेप के 23 हजार मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से अब तक मौजूदा समय में 127 केसों में कोर्ट में ट्रायल पूरा हुआ है और अब तक 22 आरोपियों को सजा मिली है। चौंकाने वाला आंकड़ा ये है कि 23 हजार दर्ज मामलों में से 7121 केसों में आरोपियों को कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है। यही नहीं इसके अलावा अधिकांश केसों में रेप पीड़िताओं ने कोर्ट आना ही छोड़ दिया है। 

आखिर कैसे मिले न्याय, जब गवाही दर गवाही चलती रहे: द्वारका कोर्ट में मीनाक्षी (काल्पनिक नाम) कॉल सेंटरकर्मी ने जज के सामने बयान दिया कि उसके साथ एयरोसिटी के पास गाड़ी में तीन लोगों ने गैंगरेप किया। जिसके बाद उसने अपने बयान पहले पुलिसकर्मी, फिर सीनियर अधिकारियों को और कोर्ट में 3 बार दिए। वह अब तक 9 सालों में 28 बार से ज्यादा कोर्ट आ चुकी है, लेकिन आरोपी केवल 3 बार आए। वह भी जब वे जेल में थे। अब वे जमानत पर बाहर हैं। लड़की का कहना है कि मैं लगातार कोर्ट के चक्कर काट रही हूं, अगर ऐसे ही न्याय मिलता है तो मुझे न्याय नहीं चाहिए। हालांकि उसके इस बयान के बाद उसका केस फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेज दिया गया है। मीनाक्षी ही नहीं, कई रेप पीड़िताओं की कहानी ऐसी ही है, जिसके चलते वे अब कोर्ट नहीं आतीं। 

इसी तरह 21 साल की मानसी की कहानी है। तब वह 14 साल की थी। उसके साथ दो लड़कों ने करावल नगर में गैंगरेप किया था। सात साल बीत गए। अब वह बालिग हो चुकी है, लेकिन उसके केस में आरोपी इसलिए बरी हो गए हैं कि जब पहले आरोपियों को 14 साल की उम्र में पहचाना था, जिसके बाद उनको 3 साल में सजा मिल गई, लेकिन केस हाईकोर्ट चला गया। जहां एक बार फिर रेप पीड़िता को बुलाया गया। जब उसकी गवाही हुई तो उसकी उम्र 19 साल की थी और आरोपियों का चेहरा भी बदल चुका था। जिन्हें पहचाने में थोड़ी सी चूक हुई तो हाईकोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया। जिसके बाद मानसी ने सुप्रीम कोर्ट का न तो रुख किया और न हाईकोर्ट में दोबारा ही अपील की। 

जिन्हें रेप का मतलब तक नहीं पता, उनका क्या?
गत् 2011 से 2019 के बीच दिल्ली पुलिस की केस डायरी में 73 ऐसे केस दर्ज किए गए, जिसमें आरोपी की उम्र 60 साल से ज्यादा और रेप पीड़िता की उम्र महज 5 साल से कम की थी। यानि जब बच्ची के साथ घिनौना काम हुआ तो उसे रेप का मतलब भी नहीं पता था। बस दर्द का अहसास था। ऐसे केसों में जानकर हैरानी होगी कि अभी तक केवल 1 ही मामले में आरोपी को कोर्ट सजा दे सका है, जबकि 12 मामलों में साक्ष्य के अभाव में आरोपी छोड़ दिए गए। इसके अलावा 32 केसों में तो पुलिस की लापरवाही के चलते केस ट्रायल पर भी नहीं आ पाए हैं।

हाईकोर्ट में जब रेप पीड़िताओं का ट्रायल आता है, या तो केस में आरोपी पहले बरी हो जाता है तो रेप पीड़िता आती है, या फिर आरोपी को सजा हो जाती तो वह बचाव में आता है। चूंकि हाईकोर्ट के पास ज्यादा समय और अधिक शक्तियां होती हैं, नतीजतन रेप जैसे केस में अगर जरा सी भी चूक पुलिस केस डायरी या फिर रेप की पीड़िता की गवाही में होती है, तो इसका सीधा लाभ आरोपी को मिलता है। लेकिन अब हाईकोर्ट सख्त है और रेप जैसे केसों में अधिकंाश वह आरोपियों को माफी नहीं दे रही है।-पुनीत मित्तल, सीनियर एडवोकेट, हाईकोर्ट 

ऐसा नहीं है कि रेप पीड़िताओं को न्याय नहीं मिलता। हमारे सामने जब केस आते हैं और हम ट्रायल के दौरान बहस करते हैं तो कई बार पुलिस की केस डायरी में बयान ऐसे होते हैं, जिसका लाभ आरोपी को मिल जाता है और वे बरी हो जाते हैं। ये बात भी सही है कि रेप जैसे संगीन केसों में पीड़िताओं का कोर्ट में आना बार-बार लगा रहता है और ऐसे केसों में ट्रायल कई सालों तक चलता है।-अंकित वर्मा, एडवोकेट 


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Pardeep

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