मौत से भी बुरा! 73 साल की दादी का अमेरिकी टॉर्चर, 30 साल बाद देश ने क्यों बेइज्जत कर निकाला?

punjabkesari.in Friday, Sep 26, 2025 - 01:22 PM (IST)

नेशनल डेस्क। अमेरिका में 30 साल से ज़्यादा समय गुजारने वाली 73 वर्षीय भारतीय महिला हरजीत कौर को जिस तरह से अचानक हिरासत में लेकर निर्वासित (deported) किया गया उसने अमेरिका की इमिग्रेशन नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हरजीत कौर ने पूरी ज़िंदगी मेहनत की ईमानदारी से टैक्स चुकाया और कभी भी इमिग्रेशन चेक-इन डेट नहीं चूकी लेकिन अब वह भारत लौट आई हैं उनके दिल में गहरा दर्द और आंसुओं भरी यादें हैं।

33 साल पहले गई थीं अमेरिका

मूल निवास: हरजीत कौर पंजाब के तरनतारन जिले के पंगोटा गांव की रहने वाली हैं।

प्रवास: वह करीब 33 साल पहले अपने दो बेटों के साथ अमेरिका गई थीं। उनके पति सुखविंदर सिंह का देहांत हो चुका है।

काम: वह कैलिफ़ोर्निया के सैन फ़्रांसिस्को बे एरिया में रहते हुए बर्कले स्थित एक कपड़ों की दुकान पर काम करती थीं। घुटनों की सर्जरी के कारण उन्होंने इसी साल जनवरी में नौकरी छोड़ी थी।

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अचानक हिरासत और निर्वासन

घटना: 8 सितंबर को एक नियमित इमिग्रेशन चेक-इन के दौरान हरजीत कौर को अचानक हिरासत में ले लिया गया। उनके शरण आवेदन पहले ही खारिज हो चुके थे।

अमानवीय निर्वासन: उन्हें मेसा वर्दे इमिग्रेशन प्रोसेसिंग सेंटर, बेकरसफ़ील्ड ले जाया गया। उनके परिवार और वकील को बिना किसी पूर्व सूचना के उन्हें अचानक निर्वासित कर दिया गया।

वकील की नाराज़गी: वकील दीपक आहलूवालिया ने कहा कि जिस तरह 73 साल की एक बुजुर्ग महिला, जिसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था उसके साथ व्यवहार किया गया यह अस्वीकार्य है।

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हिरासत केंद्र में बदतर हालात

हरजीत कौर ने बताया कि हिरासत के दौरान उन्हें बेहद खराब व्यवहार का सामना करना पड़ा:

उन्हें समय पर दवा या सही खाना नहीं मिला।

वकील के अनुसार कई बार उन्हें केवल चीज़ सैंडविच या बर्फ की प्लेट दी गई ताकि वह दवा खा सकें। नकली दांत होने के कारण जब वह बर्फ नहीं खा सकीं और शिकायत की तो गार्ड ने कहा, “ये तुम्हारी गलती है।”

उन्हें पूरे समय न तो बिस्तर मिला और न ही शॉवर लेने की इजाजत। उन्हें केवल खुद को पोंछने के लिए गीले वाइप्स दिए गए।

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"यह मौत से भी बुरा है"

हरजीत कौर को 132 अन्य लोगों के साथ जॉर्जिया से आर्मेनिया होते हुए भारत भेजा गया। हालांकि उनकी उम्र को देखते हुए हथकड़ी और बेड़ियां नहीं लगाई गईं। अब वह दिल्ली होते हुए मोहाली में अपनी बहन के घर रह रही हैं।

भावुक होकर हरजीत कौर ने कहा, “मैं अपने घर तक नहीं जा सकी अपनी चीजें भी समेट नहीं पाई। जो कुछ था वहीं का वहीं रह गया। इस तरह से निर्वासित होना मौत से भी बुरा है।” उन्होंने उन लोगों के लिए भी दुःख व्यक्त किया जिन्होंने अमेरिका जाने के लिए अपनी ज़मीन तक बेच दी थी और अब खाली हाथ लौटे हैं। परिवार अब इस मामले में अलग से शिकायत दर्ज कराने की तैयारी कर रहा है।


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Content Editor

Rohini Oberoi

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