जब आतंकियों को कंधार लेकर पहुंचे थे ''अटल के हनुमान'' जसवंत सिंह, विवादों से भरा रहा राजनीतिक सफर

punjabkesari.in Sunday, Sep 27, 2020 - 05:54 PM (IST)

नेशनल डेस्कः अटलकाल में मंत्री और भाजपा के लंबे समय के साथी जसवंत सिंह ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया। वह न केवल मंत्री रहे बल्कि संकट के समय में ढाल बनकर सामने आए। उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी का ‘हनुमान’ भी कहा जाता था। लंबी कद काठी और मुखर व्यक्तित्व वाले जसवंत सिंह सेना में भी सेवाएं दे चुके थे और इसके बाद राजनीति में आ गए। 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद भी भारत आर्थिक प्रतिबंधों के जाल में फंस गया था तब जसवंत सिंह आगे आए और उचित जवाब दिया।

विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री रहे जसवंत
अटल सरकार में वह वित्त मंत्री और विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री के साथ कपड़ा मंत्री भी रहे। राजस्थान ने बाड़मेर जिले के एक गांव जसोल में उनका जन्म हुआ था। उन्होंने सुदूर रेगिस्तान से दिल्ली तक का लंबा सफर तय किया। अजमेर के मेयो कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद वह सेना में चले गए और बाद में 1966 में राजनीति में आ गए।

1980 में पहली बार वह राज्यसभा गए और 1996 में अटल सरकार में वित्त मंत्री बने। बीजेपी की सरकार गिर गई और दो साल बाद जब फिर वाजपेयी की सरकार बनी तो उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। इस उन्होंने पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की बहुत कोशिश की। साल 2000 में उन्हें रक्षा मंत्री का कार्यभार दिया गया। साल 2002 में वह फिर से वित्त मंत्री बने।
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कंधार कांड के बाद उठी उंगलियां
दिसंबर 1999 में इंडियन एअरलाइन्स के अपहृत विमान में सवार यात्रियों के छुड़ाने के लिए तीन खूंखार आतंकवादियों को सरकारी विमान से अफगानिस्तान के कंधार ले जाने से उनकी छवि को धक्का लगा। उस समय जसवंत सिंह विदेश मंत्री थे। इंडियन एअरलाइन्स के विमान (आईसी 814) में सवार 180 से अधिक यात्रियों और चालक दल के सदस्यों को छुड़ाने के बदले भारत को जिन तीन आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा, उनमें मौलाना मसूद अजहर भी शामिल था, जिसने बाद में जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया। आठ दिन तक चले उस अपहरण संकट को खत्म करने के लिए जसवंत सिंह खुद आतंकवादियों को छोड़ने गए तो विवाद खड़ा हो गया। इस घटना के लिए कई बार जसवंत सिंह का मजाक बना।

विवादों से भरा रहा जीवन
जसवंत ऐसे शख्स थे जो राजनीति में आने के बाद कोमा में जाने तक सक्रिय रहे। 2012 में उन्हें बीजेपी में उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया था हालांकि यूपीए कैंडिडेट के सामने उनकी हार हुई। उनकी किताब 'जिन्ना- -इंडिया, पार्टिशन, इंडेपेंडेंस' को लेकर भी वह विवादों में रहे। इसमें उन्होंने जिन्ना की तारीफ की थी। नेहरू-पटेल की आलोचना और जिन्ना की तारीफ की वजह से उन्हें पार्टी से 2009 में निकाल दिया गया। 2014 में उन्हें बाड़मेर से सांसद का टिकट तक नहीं मिला और उन्हें कर्नल सोनाराम के हाथों हार का सामना करना पड़ा।

जसवंत की राजनीति एकदम अलग थी। वह बीजेपी में जरूर थे लेकिन बाबरी प्रकरण पर कभी सामने नहीं आए। संसद पर हमले के बाद राजनीतिक पार्टियां चाहती थीं कि पाकिस्तान से युद्ध हो लेकिन इसे रोकने के लिए जसवंत ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया।


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Yaspal

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