Sindoor Tradition: किसने लगाया पहला सिंदूर और कैसे शुरू हुई यह परंपरा? जानें सिंदूर के रहस्यमयी इतिहास के बारे में
punjabkesari.in Thursday, Oct 23, 2025 - 12:08 PM (IST)
नेशनल डेस्क। हिंदू धर्म में सिंदूर (Vermillion) को हर विवाहित महिला की पहचान माना जाता है। यह सिर्फ एक शृंगार सामग्री नहीं बल्कि अखंड सौभाग्य, शक्ति और समर्पण का प्रतीक है। हर सुहागन स्त्री विवाह के बाद अपनी मांग में सिंदूर भरती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह परंपरा कब और कैसे शुरू हुई और सबसे पहले सिंदूर किसने लगाया था? आज हम आपको शिव पुराण में वर्णित पौराणिक कथा के आधार पर इस महत्वपूर्ण परंपरा के बारे में बता रहे हैं।
पौराणिक कथा: माता पार्वती ने शुरू की थी ये प्रथा
कई हिंदू धर्म ग्रंथों और शास्त्रों में सिंदूर लगाने के महत्व का वर्णन मिलता है। शिव पुराण में इस परंपरा की शुरुआत का उल्लेख मिलता है:
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घोर तपस्या: शिव पुराण के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए वर्षों तक घोर तपस्या की थी। कहा जाता है कि भगवान शिव के गले में जितनी नरमुंडों की माला है उतने जन्मों तक माँ पार्वती ने तपस्या की थी। (शिव जी के गले में 108 नरमुंडों की माला है)।
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सबसे पहले सिंदूर: जब भगवान शिव ने माँ पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया और उनसे विवाह किया तो माँ पार्वती ने सुहाग के प्रतीक के रूप में सबसे पहले अपनी मांग में सिंदूर लगाया था।
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सौभाग्य का वरदान: माता पार्वती ने तभी यह भी कहा था कि जो स्त्री सिंदूर धारण करेगी उसके पति को दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी।
धार्मिक मतों के अनुसार इसी घटना के बाद से ही सिंदूर लगाने की यह पवित्र परंपरा शुरू हुई।
विशेषज्ञ की राय और महत्व
आचार्य सोमप्रकाश शास्त्री जैसे विद्वानों के अनुसार मांग भरने की यह प्रथा आदिकाल से शुरू हुई है और इसका सीधा संबंध हमारे देवी-देवताओं से है। लक्ष्मी जी और पार्वती जी को अखंड सौभाग्य धारणी माना जाता है जिनका सौभाग्य अटल है।
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दोष निवारण: धार्मिक मान्यता है कि मस्तक पर सिंदूर लगाने से विभिन्न प्रकार के दोष दूर होते हैं।
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विवाह में लाभ: जिस कन्या के विवाह में देरी हो रही हो वह यदि पार्वती मैया का गठजोड़ा शिव परिवार के साथ करे तो उनका विवाह जल्दी होने की मान्यता है।

इस तरह सिंदूर केवल एक रस्म नहीं बल्कि पति-पत्नी के रिश्ते में सुरक्षा, प्रेम और लंबे जीवन की कामना का प्रतीक है जिसे स्वयं माँ पार्वती ने शुरू किया था।


