दुनिया के लिए चुनौती बना वायु प्रदूषण, अमेरिका सबसे अधिक जिम्मेदार !

punjabkesari.in Thursday, Jan 10, 2019 - 04:56 PM (IST)

-CO2 उत्सर्जन नियंत्रित रखने के प्रयासों में अमेरिका असफल 
-शोधकर्ताओं ने बताए 2 मुख्य कारण

न्यूयार्कः
दुनिया के लिए वायु प्रदूषण बड़ी चुनौती बना हुआ है । वायु प्रदूषण न सिर्फ पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित करता है बल्कि सेहत को भी नुकसान पहुंचाता है। पैरिस जलवायु समझौते को ठुकराने वाले अमेरिका में वायु प्रदूषण को लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं । दुनिया में सबसे विकासशील देशों में अग्रणी देश अमेरिका कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन को नियंत्रित रखने के प्रयासों में असफल माना जा रहा है। रोडियाम समूह के विश्लेषकों का दावा है कि अमेरिका में  वर्ष-दर-वर्ष बढ़ रहे CO2 उत्सर्जन में 3.4 प्रतिशत तक  वृद्धि हुई  है जिसे साल 2010 के बाद दशक की सबसे बड़ी वृद्धि माना जा रहा है।
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कड़ाके की सर्दी और औद्योगिक विकास कारण बढ़ा उत्सर्जन
शोध दल ने इसके लिए कड़ाके की सर्दी और औद्योगिक विकास को मुख्य कारण बताया है। शोधकर्ताओं के अनुसार कड़ाके की सर्दी के चलते तेल और गैस का उपयोग बढ़ जाता है जो CO2 उत्सर्जन में तेजी से वृद्धि करता है। इसके अलावा अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए किए जा रहे औद्योगिक विकास के लिए पर्यावरण नीतियों के खिलाफ कारखानों, विमानों और ट्रकों के अधिक उपयोग से उत्सर्जन में तेजी आती है। अमेरिका में अकेले उद्योगो के कारण ही उत्सर्जन में 5.7 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। शोधकर्ताओं के अनुसार अमेरिका में कोयले के उपयोग में तेजी से गिरावट और बिजली के बढ़ते उपभोग के कारण CO2 उत्सर्जन में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। शोधकर्ताओं का मानना है कि कि अमेरिका में आर्थिक सफलता के लिए औद्योगिक विकास तो किया जा रहेा है लेकिन CO2 उत्सर्जन में वृद्धि को रोकने के लिए कोई कारगार कदम नहीं उठाए जा रहे जिस कारण इसमें तेजी से वृद्धि हो रही है।  इसके अलावा वर्तमान अमेरिकी नीतियां भी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का विरोध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।


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उत्सर्जन में इन चार देशों की है 58 फीसदी हिस्सेदारी
ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक कार्बन डाईऑक्साइड गैस उत्सर्जन के मामले में 27 फीसदी हिस्सेदारी के साथ चीन पहले , अमेरिका 15 फीसदी के साथ दूसरे, यूरोपीय संघ 10 फीसदी के साथ तीसरे व भारत 7 फीसदी हिस्सेदारी के साथ चौथे स्थान पर है। दुनिया के कुल CO2 उत्सर्जन में इन चार देशों की 58 फीसदी हिस्सेदारी है। बाकी सभी देश समग्र रूप से 42 फीसदी उत्सर्जन करते हैं। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक वर्ष 1990 से वर्ष 2010 के बीच कार्बन डाईआक्साइड गैस का उत्सर्जन सबसे ज्यादा हुआ। इन 3 दशकों के दौरान CO2 के उत्सर्जन में 45 फीसदी की वृद्धि हुई। वर्ष 2010 में कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन 33 अरब टन हो गया था। इस अवधि के दौरान यूरोपीय संघ के देशों में 7 प्रतिशत और रूस में 28 प्रतिशत CO2  उत्सर्जन घटा जबकि अमेरिका में  5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जापान में  CO2 उत्सर्जन पहले जैसा ही रहा। 

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भारत की स्थिति भी खराब
अध्ययन में कहा गया है कि CO2 के उत्सर्जन  को लेकर भारत की स्थिति भी खराब है। भारत में यह उत्सर्जन वर्ष 2018 में  औसतन 6.3 फीसदी की दर से जारी रहा। इसका कारण सभी तरह के ईंधनों के इस्तेमाल में वृद्धि है। CO2 उत्सर्जन कम करने के लिए भारत 2020 तक कोयला मुक्त ऊर्जा की रणनीति पर काम कर रहा है। कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन से भारतीय अर्थव्यवस्था को हर साल 210 अरब डॉलर का नुकसान होता है। अमेरिका के बाद जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान भारत को ही झेलना पड़ा है और इसमें आर्थिक और सामाजिक नुकसान दोनों शामिल हैं।

 

 


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Tanuja

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